
Newsletter - October 31, 2025
फोटो: अवैध रूप से काटे गए खैर के पेड़ों के ठूंठ। फोटो: एम राजशेखर
पान मसाला उद्योग के लिए खैर के जंगलों का अंधाधुंध विनाश
कत्था व्यापार से होने वाले भारी मुनाफे और भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से उत्तर प्रदेश के सुहेलवा वन्यजीव अभयारण्य में बड़े पैमाने पर खैर पेड़ों की अवैध कटाई जारी है, जिससे इस अभयारण्य समेत कई अन्य वन धीरे-धीरे विनाश की कगार पर हैं।
वन संरक्षण एक वैश्विक चिंता का विषय है, और नवंबर में ब्राज़ील में हो रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप30) में मेजबान देश ट्रॉपिकल फ़ॉरेस्ट्स फ़ॉरएवर फ़ैसिलिटी (Tropical Forests Forever Facility) के लिए प्रयास कर रहा है। हालांकि, दुनिया भर में वन सिकुड़ रहे हैं, और भारत इस विरोधाभास में फंसा है: देश भले ही समग्र वन आवरण में वृद्धि का दावा करता हो, लेकिन इसके मूल वन बड़े प्रोजेक्टों और लकड़ी की तस्करी दोनों के दबाव में हैं।
पहले चंदन और लाल चंदन तस्करी के केंद्र थे, अब खैर के पेड़ खतरनाक दर से काटे जा रहे हैं। खैर से ही कत्था निकलता है, जो भारत के बढ़ते पान मसाला उद्योग का एक मुख्य घटक है।
यह समस्या उत्तर प्रदेश के सुहेलवा वन्यजीव अभयारण्य में विशेष रूप से गंभीर है, जो कभी बाघों और तेंदुओं का घर था, लेकिन अब खाली हो चुका है। स्थानीय कार्यकर्ता बताते हैं कि यह क्षेत्र अब एक खरगोश भी नहीं दिखता। स्थानीय लोगों के अनुसार, सुहेलवा में खैर की अवैध कटाई वर्ष 2000 के आसपास शुरू हुई और 2008-09 से तेज हो गई। वनों की कटाई के कारण तेजी से बढ़ने वाली और आक्रामक प्रजातियां (जैसे लैंटाना और “कांग्रेस घास”) उन जगहों पर कब्जा कर लेती हैं, जिससे एंटीलोप्स जैसे देशी वन्यजीवों का भोजन कम हो जाता है।
अवैध लकड़ी व्यापार का फैलाव चौंकाने वाला है। इंटरपोल के अनुसार, इसका मूल्य $152 बिलियन (करीब 13.5 लाख करोड़ रुपए) प्रति वर्ष तक है, जो हथियारों, ड्रग्स और मानव तस्करी के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा अवैध व्यापार है। यह व्यापार निवास स्थान को नष्ट करता है, वन-निर्भर समुदायों को असुरक्षित बनाता है, सरकार के राजस्व को कम करता है, और इसमें उच्च लाभ मार्जिन के कारण आपराधिक सिंडिकेट शामिल होते हैं जो अधिकारियों को रिश्वत देते हैं।
पान मसाला की बढ़ती मांग का संबंध 1970 और 80 के दशक की ‘पाउच’ (सैशे) क्रांति से है। पहले लोग पारंपरिक रूप से पान खाते थे, लेकिन पैकेटबंद पान मसाला अधिक व्यसनी और सुविधाजनक हो गया। जैसे-जैसे पान मसाला की मांग बढ़ी, खैर की मांग भी बढ़ी। 1995 तक, 14-15 कंपनियां खैर की नीलामी में शामिल होने लगी थीं। इस प्रतिस्पर्धा के चलते, फर्मों ने कर चोरी की और अनुमति से अधिक पेड़ काटने के लिए वन विभाग के साथ मिलीभगत की।
उत्पादन बढ़ने के साथ, सबसे पहले मौजूदा कारखानों के पास के खैर के स्टॉक समाप्त हुए, और यह व्यापार 2008-09 तक पूरी तरह से सुहेलवा जैसे तराई आर्क लैंडस्केप तक पहुँच गया। अब, लकड़ी तस्कर उत्तर प्रदेश से जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर की ओर रुख कर रहे हैं।
खैर का व्यापार जबरदस्त रूप से लाभदायक है। बिचौलिये लकड़ी काटने वालों को लगभग 1,000 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर देते हैं, जिसे कत्था कारखाने 3,000-5,000 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर में खरीदते हैं। एक क्यूबिक मीटर खैर 189 किलोग्राम कत्था पैदा करता है, जिसे कारखाने 2,000 रुपए/किलो तक में बेच सकते हैं, जिससे प्रति क्यूबिक मीटर 3,78,000 रुपए का मुनाफा होता है। अंतिम उपभोक्ता मूल्य के आधार पर, एक क्यूबिक मीटर खैर का अंतिम मूल्य 6.61 लाख से 8.97 लाख रुपए के बीच हो सकता है।
अवैध कटाई के बने रहने के कई कारण हैं:
नीतिगत बदलाव: 2008 में, उत्तर प्रदेश ने लॉगिंग के लिए राज्य के एकाधिकार को समाप्त कर दिया और एक खुली पहुँच प्रणाली (open access system) शुरू की, जिससे व्यापारी और बिचौलिए व्यापार में शामिल हो गए।
सरकारी मूल्य निर्धारण और राजस्व हानि: यूपी वन निगम खैर की बोली कीमत मात्र 72,000 रुपए प्रति क्यूबिक मीटर निर्धारित करता है। यह बाजार मूल्य का एक अंश है, जिससे राज्य का राजस्व कम होता है और तस्करों को अत्यधिक मुनाफा होता है। यदि अवैध रूप से काटी गई लकड़ी पकड़ी जाती है, तो कम जुर्माना दर (72,000 रुपए/क्यूबिक मीटर) का भुगतान करके उसे छुड़ाना आसान होता है।
भ्रष्टाचार और कर्मचारियों की कमी: वन विभाग में कर्मचारियों की भारी कमी है (जैसे, 7 बीट के लिए 4 गार्ड)। विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है; एक रिपोर्ट में पाया गया कि परमिट प्राप्त करने में बिचौलियों के कुल खर्च का 93% अनौपचारिक भुगतानों में चला जाता है। अवैध रूप से कटी गई खैर का मूल्य कानूनी रूप से कटी गई खैर से आधा होता है।
पौधारोपण की विफलता: वन विभाग ने मांग का अनुमान नहीं लगाया और खैर को वृक्षारोपण में नहीं उगाया, जबकि खैर 30 वर्षों में परिपक्व हो जाता है (सागौन/साल 100-120 वर्ष लेते हैं)।
इन संस्थागत विफलताओं के कारण, उत्तर प्रदेश में खैर का स्टॉक तेजी से गिर गया है। एक सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी का अनुमान है कि यूपी में अब खैर का केवल 5-7% स्टॉक ही बचा है। आज, अधिकांश कत्था हिमाचल प्रदेश (40-60%) और जम्मू-कश्मीर (20%) से आता है। इस व्यापार के कारण हिंसा भी हुई है; 2021 में, खैर की अवैध कटाई के खिलाफ काम करने वाले एक स्थानीय कार्यकर्ता नन्हे चौहान की कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी।
इस रिपोर्ट को विस्तार से अंग्रेज़ी में यहां पढ़ सकते हैं।
फोटो: Lionel Borie/Pixabay
नवंबर में सामान्य से कम रहेगा अधिकतम तापमान: आईएमडी
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा है कि नवंबर में देश के अधिकांश हिस्सों, विशेषकर उत्तर-पश्चिम, मध्य और पश्चिम भारत, में अधिकतम तापमान सामान्य से कम रह सकता है। हालांकि, न्यूनतम तापमान अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से अधिक रहने की संभावना है। केवल उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ इलाकों में न्यूनतम तापमान सामान्य या उससे कम रह सकता है।
आईएमडी महानिदेशक मृृत्युञ्जय महापात्रा ने बताया कि हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक हो सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कमज़ोर ला नीना परिस्थितियां बनी हुई हैं, जो फरवरी 2026 तक जारी रह सकती हैं। नवंबर में उत्तर-पश्चिम और दक्षिण भारत के कुछ भागों को छोड़कर देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा की संभावना है।
दो असफल प्रयासों के बाद दिल्ली सरकार ने रोकी क्लाउड सीडिंग
दिल्ली में कृत्रिम वर्षा कराने के लिए किए गए क्लाउड सीडिंग (क्लाउड सीडिंग) प्रयोग दो असफल प्रयासों के बाद फिलहाल रोक दिए गए हैं। ये परीक्षण आईआईटी कानपुर और दिल्ली सरकार के सहयोग से मंगलवार को बुराड़ी, करोलबाग और मयूर विहार क्षेत्रों में किए गए थे।
आईआईटी कानपुर के निदेशक मनींद्र अग्रवाल ने बताया कि बादलों में नमी का स्तर सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत था, जबकि प्रभावी सीडिंग के लिए कम से कम 30 से 50 प्रतिशत नमी चाहिए। इसी कारण वर्षा नहीं हो सकी। हालांकि, परीक्षण से मिली जानकारी ने हवा की गुणवत्ता में 6–10% सुधार दिखाया और इससे भविष्य की तैयारियों में मदद मिलेगी। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि नमी बढ़ने पर फिर से ट्रायल किया जाएगा। आईआईटी कानपुर ने स्पष्ट किया कि यह तकनीक मानव और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है और केवल आपात स्थिति में ही अपनाई जाती है।
वहीं एक रिपोर्ट में आईआईटी-दिल्ली ने बताया है कि पर्याप्त नमी और सैचुरेशन की कमी के कारण दिल्ली का सर्दियों का वातावरण क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं है।
चक्रवात मोंथा का खौफ: 9 की मौत, हजारों हेक्टेयर फसल तबाह
भीषण चक्रवाती तूफान मोंथा मंगलवार की रात आंध्र प्रदेश के काकीनाडा तट से टकराया जिससे आंध्र प्रदेश में कम से तीन लोगों की मौत की पुष्टि की है। राज्य के लगभग 18 लाख लोग प्रभावित हुए हैं, जबकि 2.14 लाख एकड़ में फसल बरबाद हुई है। वहीं तेलंगाना में मोंथा के कारण भारी वर्षा से जुड़ी घटनाओं में अबतक 6 लोगों की मौत हो चुकी है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फसल और कृषि क्षेत्र को सबसे अधिक क्षति हुई है – आंध्र प्रदेश के 15 जिलों में लगभग 1.12 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई है, जिसमें धान, मक्का व मूंग जैसे मुख्य फसलें शामिल हैं। इसके साथ ही 2,294 कि.मी. सड़कें क्षतिग्रस्त हुईं, बिजली-निगम प्रभावित हुए और पेड़-खंभे उखड़ गए।
मौसम विभाग ने यह बताया है कि मोंथा अब एक निम्न-दबाव क्षेत्र में बदल गया है। (प्रभावित इलाकों में राहत-बचाव कार्य तीव्र गति से जारी हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने प्रभावित परिवारों को तत्काल सहायता देने और बुनियादी सेवाओं को जल्द बहाल करने के निर्देश दिए हैं। इस आपदा के बीच प्रशासन ने किसानों को फोटो अपलोड कर फसल हानि दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं, ताकि राज्य आपदा प्रतिकार निधि (एसडीआरएफ) के अंतर्गत उचित मुआवजा किया जा सके।
मेलिसा तूफ़ान से तबाही जारी, मृतकों की संख्या 44 पर पहुँची
कैरिबियन क्षेत्र में आए चक्रवाती तूफान ‘मेलिसा’ ने अब तक कम-से-कम 44 लोगों की जान ले ली है और भारी तबाही मचाई है।
घटित नुकसान में व्यापक रूप से जमैका प्रभावित हुआ है, जहाँ तूफान ने मंगलवार को भयंकर कैटेगरी 5 की शक्ति के साथ लैंडफॉल किया था — यह किसी भी तूफान द्वारा सीधे आक्रमित किए गए इस देश का अब-तक का सबसे शक्तिशाली तूफान था। जमैका की सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री ने बताया कि उन्हें अब तक 19 मौतों की पुष्टि हुई है, लेकिन राहत-बचाव कार्य जारी है। देश में लगभग 70 % से अधिक लोग बिजली सेवा से वंचित हैं, जबकि सड़कों, भवनों की छतों और पेड़ों को भारी नुकसान हुआ है।
हेती में भी मौतों की संख्या कम नहीं; वहां तेज बारिश ने नदियों का किनारा तोड़ दिया और कई इलाकों में सड़कें, पुल और यातायात मार्ग बह गए। विनाश के दायरे का आकलन करते हुए मौसमविद् संस्था AccuWeather ने अनुमान है कि यह तूफान ‘वेस्टर्न कैरिबियन’ में अब तक दर्ज की गई तीसरी सबसे शक्तिशाली और सबसे धीरे आगे बढ़ने वाली व्यवस्था बन गया है, जिसने खतरों को और बढ़ा दिया। अमेरिका और अन्य सहयोगी देश जल्द ही राहत-भ्रष्ट टीम भेजने की तैयारी में हैं, जबकि स्थानीय सशस्त्र बल चेतावनी जारी रखते हुए प्रभावित इलाकों में पहुँचने के लिए स्थिति को नियंत्रित कर रहे हैं। इस तूफान ने एक बार फिर बढ़ते मानवीय और आर्थिक जोखिम को उजागर किया है – विशेषकर जलवायु परिवर्तन की गति बढ़ने के बीच।
जलवायु निष्क्रियता हर साल ले रही है लाखों जिंदगियाँ: डब्ल्यूएचओ-लैंसेट रिपोर्ट की चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और द लैंसेट की संयुक्त रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन पर जारी निष्क्रियता (क्लाइमेट इनएक्शन) हर साल लाखों लोगों की जान ले रही है और यह मानव स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और आजीविका पर गहरा खतरा बन चुकी है।
‘लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2025’ के अनुसार, स्वास्थ्य पर असर डालने वाले 20 में से 12 प्रमुख संकेतक रिकॉर्ड स्तर के ख़तरे पर पहुँच गए हैं। रिपोर्ट बताती है कि जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता और जलवायु अनुकूलन की विफलता ने वैश्विक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाला है। डब्ल्यूएचओ के अधिकारी डॉ. जेरेमी फरार ने कहा, “जलवायु संकट वास्तव में स्वास्थ्य संकट है। तापमान में हर छोटा इजाफा जीवन और आजीविका की कीमत पर होता है।”
रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि 1990 के दशक से गर्मी से जुड़ी मौतों में 23% की वृद्धि हुई है — हर साल लगभग 5.46 लाख लोग गर्मी से मर रहे हैं। वर्ष 2024 में, औसतन हर व्यक्ति 16 दिन अत्यधिक गर्मी झेलने को मजबूर हुआ जो जलवायु परिवर्तन के बिना संभव नहीं थी।
आर्थिक मोर्चे पर भी झटका बड़ा है — 2024 में गर्मी के कारण 640 अरब श्रम घंटों का नुकसान हुआ, जिससे 1.09 ट्रिलियन डॉलर की उत्पादकता हानि हुई।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 15 देशों ने स्वास्थ्य बजट से अधिक पैसा जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर खर्च किया, जो 2023 में कुल 956 अरब डॉलर रही। फिर भी रिपोर्ट उम्मीद देती है — 2010 से 2022 के बीच कोयला आधारित प्रदूषण में कमी से हर साल 1.6 लाख असमय मौतें टलीं और नवीकरणीय ऊर्जा से 1.6 करोड़ रोजगार बने।
भारत में हिमनद झीलों का क्षेत्रफल 27% बढ़ा: सीडब्ल्यूसी
भारत में हिमनद झीलों (ग्लेशियल लेक्स) का क्षेत्रफल 2011 से जुलाई 2025 के बीच 27% से अधिक बढ़ गया है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश की 55 प्रमुख हिमनद झीलों का कुल जल क्षेत्र 1,952 हेक्टेयर से बढ़कर 2,496 हेक्टेयर हो गया। मॉनिटरिंग में शामिल झीलें लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में स्थित हैं।
सीडब्ल्यूसी ने बताया कि कुल मिलाकर हिमालयी क्षेत्र में झीलों का क्षेत्रफल 6% बढ़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, यह वृद्धि उपग्रह चित्रों के विश्लेषण से मापी गई है और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी गंभीर चेतावनी मानी जा रही है।
फोटो: Filmbetrachter/Pixabay
क्लाइमेट एक्शन में देरी कर रहे हैं देश: यूएन रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आकलन में पाया गया है कि दुनिया के देश जलवायु परिवर्तन पर जरूरी कदम उठाने में देरी कर रहे हैं। ‘ग्लोबल सिंथेसिस रिपोर्ट’ के अनुसार, पेरिस समझौते के 195 सदस्य देशों में से अब तक केवल 64 देशों ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) अपडेट किए हैं। चीन और भारत ने अभी तक अपने संशोधित एनडीसी औपचारिक रूप से जमा नहीं किए हैं, जबकि अमेरिका के पिछले प्रशासन द्वारा किए गए वादों को पूरा करने पर भी संदेह बना हुआ है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक जमा किए गए अपडेट साल 2019 के वैश्विक उत्सर्जन के केवल 30 प्रतिशत हिस्से को कवर करते हैं। इन लक्ष्यों के अनुसार, 2035 तक उत्सर्जन में लगभग 10 प्रतिशत की कमी आएगी, जबकि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए 57 प्रतिशत कमी की आवश्यकता है।
कॉप30 में हो सकता है 1.3 ट्रिलियन डॉलर के फाइनेंस का समझौता
भारत सहित 35 देशों के वित्त मंत्रियों के गठबंधन ने क्लाइमेट फाइनेंस के लिए हर साल 1.3 ट्रिलियन डॉलर जुटाने की पांच सूत्रीय रणनीति पेश की है। यह घोषणा अगले महीने ब्राज़ील में होने वाले कॉप30 सम्मेलन से पहले वाशिंगटन, डीसी में 15 अक्टूबर को की गई। रिपोर्ट में रियायती (कंसेशनल) फाइनेंस बढ़ाने, बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार, घरेलू क्षमता निर्माण, निजी पूंजी जुटाने और नियामक ढांचे को मजबूत करने का सुझाव दिया गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, विकासशील देशों को 2030 तक जलवायु लक्ष्यों के लिए हर साल 2.4 ट्रिलियन डॉलर और 2035 तक 3.3 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी। वर्तमान खर्च के मुकाबले यह छह गुना वृद्धि होगी। रिपोर्ट ‘बाकू टू बेलेम रोडमैप फॉर 1.3टी’ नाम से जारी की गई है, जिसे भारत सहित 35 देशों का समर्थन प्राप्त है।
अडॉप्टेशन, रेज़िलिएंस में निवेश से पैदा होंगी 28 करोड़ नौकरियां: रिपोर्ट
एक नई रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर विकासशील देशों में रेज़िलिएंस पर निवेश किया जाए तो 2035 तक 28 करोड़ से अधिक नए रोजगार पैदा हो सकते हैं। यह रिपोर्ट ;रिटर्न्स ऑन रेज़िलिएंस’ नाम से कॉप30 महासम्मेलन से पहले जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि ऐसे निवेश से न केवल नौकरियां बढ़ेंगी, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी बड़ा फायदा होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु अनुकूलन (अडॉप्टेशन) में किया गया निवेश अपनी लागत से कम से कम चार गुना ज्यादा लाभ देता है और इस पर औसतन हर साल 25% का मुनाफा मिलता है। इससे 2030 तक 1.3 ट्रिलियन डॉलर का बाजार तैयार हो सकता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अब कार्रवाई नहीं की गई तो 2050 तक दुनिया की अर्थव्यवस्था में 18–23% तक की गिरावट आ सकती है।
भारत सबसे बड़े वन कार्बन सिंक वाले शीर्ष 10 देशों में: एफएओ
संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के उन दस देशों में शामिल है जिनके पास सबसे बड़े वन कार्बन सिंक हैं। वर्ष 2021 से 2025 के बीच भारत के जंगल हर साल लगभग 15 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित (अब्सॉर्ब) कर रहे हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस अवधि में विश्व के जंगलों ने हर साल करीब 0.8 अरब टन CO2 को हटाया, जबकि वनों की कटाई से 2.8 अरब टन CO2 का उत्सर्जन हुआ। यूरोप और एशिया सबसे मजबूत कार्बन सिंक रहे, जबकि अमेरिका और अफ्रीका में वनों की कटाई से सबसे अधिक उत्सर्जन हुआ।
रूस सबसे बड़ा कार्बन सिंक वाला देश है, उसके बाद चीन, अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और बेलारूस का स्थान है। ये दस देश मिलकर विश्व के कुल वन कार्बन अवशोषण का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं। एफएओ ने कहा कि एक दशक पहले की तुलना में अब वैश्विक स्तर पर वन कार्बन अवशोषण घटकर 1.4 अरब टन से 0.8 अरब टन रह गया है।
भारत में वायु प्रदूषण से 2022 में 17 लाख मौतें, जीडीपी का 9.5% आर्थिक नुकसान: द लैंसेट
भारत में प्रदूषित हवा ने न सिर्फ लोगों की साँसें छीनीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी गहरा झटका दिया है। द लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में सूक्ष्म कणीय प्रदूषण (PM2.5) के कारण भारत में करीब 17 लाख लोगों की मृत्यु हुई।
रिपोर्ट बताती है कि यह संख्या वर्ष 2010 की तुलना में लगभग 38 प्रतिशत अधिक है। इन मौतों में से करीब 44 प्रतिशत मामलों का कारण जीवाश्म ईंधनों – विशेषकर कोयले – का दहन रहा। केवल कोयले से जुड़े प्रदूषण ने ही लगभग 3.9 लाख लोगों की जान ली।
वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य प्रभावों का आर्थिक बोझ भी भयावह है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को 2022 में वायु प्रदूषण के चलते 339.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर, यानी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 9.5 प्रतिशत नुकसान हुआ।
ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू प्रदूषण से मृत्यु दर शहरी इलाकों की तुलना में अधिक पाई गई – ग्रामीण भारत में प्रति एक लाख आबादी पर औसतन 125 मौतें दर्ज की गईं, जबकि शहरी इलाकों में यह दर 99 रही।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2024 में हर भारतीय को औसतन 19.8 दिन की गर्मी की लहरों का सामना करना पड़ा, जिनमें से 6.6 दिन सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े थे। इसका सबसे बड़ा असर कृषि और निर्माण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर पड़ा है।
लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत को इस संकट से उबरना है तो उसे स्वच्छ वायु नीति को स्वास्थ्य और आर्थिक विकास की रणनीतियों के साथ जोड़ना होगा। रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वायु प्रदूषण अब सिर्फ पर्यावरणीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था का संकट बन चुका है।
दिल्ली: वायु गुणवत्ता में मामूली सुधार, लेकिन बीमारी बढ़ा रहा प्रदूषण
दिल्ली में वायु गुणवत्ता में मामूली सुधार हुआ है। गुरुवार को ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रही हवा शुक्रवार को घटकर ‘खराब’ स्तर पर पहुंच गई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, सुबह 9 बजे शहर का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 268 दर्ज किया गया, जो एक दिन पहले 373 था। वज़ीरपुर में सबसे अधिक 355 और बवाना में 349 एक्यूआई दर्ज हुआ।
गुरुवार को घने धुंध के कारण विजिबिलिटी कम हो गई थी और लोगों ने आंखों में जलन व सांस लेने में परेशानी की शिकायत की थी। मौसम विभाग के अनुसार, पूर्वी हवाओं और बढ़ी नमी के कारण प्रदूषण सतह के पास जमा हो गया था। शुक्रवार को न्यूनतम तापमान 21.6 डिग्री सेल्सियस और आर्द्रता 98 प्रतिशत रही।
डॉक्टरों के अनुसार, प्रदूषित हवा के कारण लोगों में खांसी, सांस लेने में तकलीफ, सीने में जकड़न और आंखों में जलन जैसी समस्याएं बढ़ गई हैं। अस्पतालों में अस्थमा और एलर्जी के मरीजों की संख्या में भी तेज़ वृद्धि दर्ज की जा रही है।
भारत में वायु प्रदूषण से बढ़ रहा है मस्तिष्क रोगों का खतरा, SoGA 2025 रिपोर्ट में गंभीर चेतावनी
वायु प्रदूषण अब केवल फेफड़ों या हृदय तक सीमित खतरा नहीं रहा – यह धीरे-धीरे मानव मस्तिष्क को भी नुकसान पहुँचा रहा है।
ताज़ा ‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2025 (SoGA 2025)’ रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्रदूषित हवा के कारण भारत में डिमेंशिया और अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दुनियाभर में 6.26 लाख डिमेंशिया-संबंधी मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी थीं, और करोड़ों लोगों ने ‘स्वस्थ जीवन के वर्ष’ खो दिए। भारत में यह समस्या और गंभीर है क्योंकि देश में प्रदूषण का स्तर अत्यधिक है और बुज़ुर्ग आबादी तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, लंबे समय तक पीएम2.5 कणों के संपर्क में रहना मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर सकता है, जिससे स्मृति ह्रास और संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट देखी जा रही है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में 2023 में वायु प्रदूषण से लगभग 20 लाख लोगों की मौत हुई – इनमें से 89 प्रतिशत मौतें गैर-संचारी रोगों (NCDs) जैसे हृदय रोग, डायबिटीज और डिमेंशिया से जुड़ी थीं। यह आंकड़ा 2000 के मुकाबले लगभग 43 प्रतिशत अधिक है।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि भारत ने प्रदूषण नियंत्रण और स्वच्छ ऊर्जा नीतियों पर तुरंत ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले वर्षों में ‘मस्तिष्क स्वास्थ्य संकट (Brain Health Crisis)’ और गंभीर रूप ले सकता है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने छोटे उद्योगों के लिए नियामक प्रक्रियाएं आसान कीं; ‘व्हाइट कैटेगरी’ में अब 86 क्षेत्र शामिल
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने ‘व्हाइट कैटेगरी’ (White Category) में शामिल उद्योगों की सूची का विस्तार करके न्यूनतम प्रदूषण क्षमता वाले उद्योगों के लिए नियमों में बड़ी ढील दी है। यह घोषणा 17 अक्टूबर को वायु अधिनियम (Air Act) और जल अधिनियम (Water Act) के तहत जारी अलग-अलग अधिसूचनाओं के माध्यम से की गई है। मंत्रालय ने इस श्रेणी के उद्योगों की संख्या 54 से बढ़ाकर 86 कर दी है।
इस विस्तार का अर्थ है कि इन ‘व्हाइट कैटेगरी’ उद्योगों को अब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) या प्रदूषण नियंत्रण समितियों (PCCs) से स्थापना के लिए सहमति यानी Consent to Establish (CTE) और संचालन के लिए सहमति यानी Consent to Operate (CTO) प्राप्त करने की अनिवार्य शर्त से छूट मिल गई है। यह छूट उन उद्योगों को दी जाती है जिनका प्रदूषण सूचकांक स्कोर 20 (नवंबर 2024 के अनुसार) या 25 (जुलाई 2025 के अनुसार) तक होता है।
नए शामिल किए गए क्षेत्रों में अब सीमेंट उत्पाद निर्माण (एस्बेस्टस का उपयोग किए बिना) जैसे कि पाइप, खंभे और टाइल्स (<1 टीपीडी) शामिल हैं, जो पहले ‘ग्रीन कैटेगरी’ में थे। इसके अलावा, हाथ से डिटर्जेंट पाउडर निर्माण (स्टीम बॉइलिंग या बॉयलर के बिना) और बेकरी व खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ (0.5 टन प्रति दिन से अधिक लेकिन 1 टन प्रति दिन से कम क्षमता वाली), जो केवल स्वच्छ ईंधन (बिजली/गैसीय ईंधन) का उपयोग करती हैं और जिन्हें टर्मिनल एसटीपी से जुड़े नगरपालिका सीवरेज सिस्टम में निर्वहन की अनुमति है, भी इस सूची में हैं।
कंप्रेस्ड बायो गैस संयंत्र (नगर निगम के ठोस कचरे या पशु अपशिष्ट जैसे फीडस्टॉक पर आधारित, जो कोई अपशिष्ट जल नहीं छोड़ते) भी इस नई सूची का हिस्सा हैं। नवंबर 2024 में जारी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के तहत, इन इकाइयों को बोर्डों को स्व-घोषणा के रूप में अपने संचालन की सूचना देनी होगी। उन्हें कोई सहमति शुल्क नहीं देना होगा।
हालांकि, औद्योगिक प्रदूषण के एक विशेषज्ञ ने इस कदम पर टिप्पणी करते हुए कहा कि छोटे उद्योगों का समग्र प्रदूषण पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका आकलन करना कठिन है। उनके अनुसार, सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि सहमति न लेने पर भी उद्योगों की प्रभावी ढंग से निगरानी की जा रही है या नहीं।
भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नवीकरणीय उत्पादक: सरकार
भारत अब दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक देश बन गया है। केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने मंगलवार को बताया कि देश की नवीकरणीय क्षमता 2014 के 81 गीगावाट से बढ़कर अब 257 गीगावाट हो गई है। उन्होंने कहा कि भारत की सौर क्षमता 2.8 गीगावाट से बढ़कर 128 गीगावाट, सौर मॉड्यूल निर्माण क्षमता 2 गीगावाट से बढ़कर 110 गीगावाट और सौर सेल निर्माण ‘शून्य’ से 27 गीगावाट तक पहुंची है।
जोशी ने बताया कि वर्ष 2025-26 के अंत तक 6 गीगावाट नई पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी जाएगी, जो अब तक की सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि होगी। वर्तमान में भारत के पास 54 गीगावाट पवन क्षमता है और 30 गीगावाट निर्माणाधीन है। सरकार का लक्ष्य 2030 तक पवन ऊर्जा से 100 गीगावाट उत्पादन का है। तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश मिलकर देश की कुल पवन क्षमता का लगभग आधा हिस्सा योगदान करते हैं।
भारत ने आईएसए आमसभा में पेश की नई वैश्विक सौर पहलें, राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा – ऊर्जा संक्रमण हो समावेशी
भारत ने दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की आठवीं आम सभा में कई नए वैश्विक सौर कार्यक्रमों की घोषणा की जिनका उद्देश्य सौर ऊर्जा को अधिक टिकाऊ, सुलभ और समावेशी बनाना है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सभा का उद्घाटन करते हुए कहा कि ‘ऊर्जा संक्रमण तभी सार्थक होगा जब इसमें कोई महिला, किसान, गांव या द्वीप पीछे न छूटे’।
इस मौके पर भारत ने सनराइज (सोलर अपसाइक्लिंग नेटवर्क फॉर रीसाइक्लिंग, इनोवेशन एंड स्टेकहोल्डर इंगेजमेंट) पहल की घोषणा की, जो पुराने सौर पैनलों और उपकरणों को रिसाइकिल कर सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी।
इसके साथ ही ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (OSOWOG) परियोजना को भी आगे बढ़ाने की रूपरेखा पेश की गई, जिसका लक्ष्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीच सौर ग्रिड नेटवर्क को जोड़ना है।
आईएसए ने भारत में एक ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) स्थापित करने की योजना भी साझा की, जो “सोलर सिलिकॉन वैली” के रूप में शोध, प्रशिक्षण और डिजिटल नवाचार का केंद्र बनेगा।
वहीं, SIDS प्रोक्योरमेंट प्लेटफॉर्म नामक एक नई योजना 16 छोटे द्वीप देशों के लिए शुरू की गई है, ताकि वे सौर तकनीक की सामूहिक खरीद और क्षमता निर्माण कर सकें।
आईएसए के अनुसार, अब तक सदस्य देशों ने 1,000 गीगावाट से अधिक सौर क्षमता जोड़ी है। नई घोषणाएं इस मिशन को ‘प्रयोग’ से ‘विस्तार’ की दिशा में ले जाने का संकेत देती हैं, जिससे भारत ने एक बार फिर वैश्विक सौर नेतृत्व में अपनी भूमिका को मजबूत किया है।
भारत की बिजली उत्पादन क्षमता 500 गीगावाट के पार, नवीकरणीय की हिस्सेदारी 50% से अधिक
भारत की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 500 गीगावाट के पार पहुंच गई है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक है। ऊर्जा मंत्रालय ने बुधवार को बताया कि यह उपलब्धि ऊर्जा क्षेत्र में वर्षों से जारी नीतिगत सहयोग, निवेश और टीमवर्क का परिणाम है।
मंत्रालय के अनुसार, 30 सितंबर 2025 तक देश की कुल स्थापित क्षमता 500.89 गीगावाट हो गई है, जो 2014 में 249 गीगावाट थी। इसमें 256.09 गीगावाट गैर-जीवाश्म स्रोतों — जैसे नवीकरणीय, जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा — से है, जो कुल क्षमता का लगभग 51 प्रतिशत है। जीवाश्म ईंधन आधारित उत्पादन 244.80 गीगावाट यानी 49 प्रतिशत है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 28 गीगावाट गैर-जीवाश्म और 5.1 गीगावाट जीवाश्म क्षमता जोड़ी गई।
जलवायु परिवर्तन के कारण पवन ऊर्जा उत्पादन हो सकता है प्रभावित
जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में हवा की गति धीमी हो रही है, जिससे तापमान बढ़ने, प्रदूषण बढ़ने और नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन बाधित होने का खतरा है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, ‘ग्लोबल स्टिलिंग’ नामक यह घटना तब होती है जब लंबे समय तक हवा स्थिर रहती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 1960 से 2010 तक हवा की गति घटी, 2010 के बाद थोड़ी बढ़ी, लेकिन भविष्य में इसके फिर से घटने की संभावना है।
इससे पवन ऊर्जा उत्पादन प्रभावित हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां 20% वैश्विक टर्बाइन स्थित हैं। यूरोप में 2100 तक उत्पादन में 10% कमी आने का अनुमान है। विशेषज्ञों का कहना है कि कमजोर हवाएं न केवल ऊर्जा आपूर्ति घटाती हैं, बल्कि गर्मी की लहरों और प्रदूषण को भी बढ़ा सकती हैं।
ईवी सब्सिडी घटाने की तैयारी में चीन, वैश्विक बाज़ार पर पड़ेगा असर
चीन सरकार अपनी नई पंचवर्षीय योजना (2026–2030) में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को रणनीतिक उद्योगों की सूची से बाहर रखने की तैयारी में है, जिससे विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में ईवी पर दी जाने वाली सब्सिडी घटाई या समाप्त की जा सकती है।
यह संकेत है कि सरकार अब इस क्षेत्र को बाजार के भरोसे छोड़ना चाहती है, ताकि अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और उत्पादन में संतुलन लाया जा सके। फिलहाल चीन में 150 से अधिक ईवी निर्माता हैं, जिनमें पुनर्गठन की संभावना है।
विश्लेषकों का कहना है कि अगर सब्सिडी में कटौती होती है, तो घरेलू बिक्री और निर्यात दोनों घट सकते हैं। इससे उन वैश्विक बाजारों को राहत मिल सकती है जहां सस्ते चीनी ईवी की भरमार है, और यूरोप, एशिया तथा अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में अन्य कार निर्माताओं के लिए नए अवसर खुल सकते हैं।
ट्रंप की नीतियों के चलते ईवी रेस में चीन से पिछड़ रहा अमेरिका
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ट्रंप प्रशासन की पेट्रोल इंजन को समर्थन देने वाली नीतियों के चलते अमेरिका वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) प्रतिस्पर्धा में चीन से काफी पीछे रह सकता है। निवेश में तेज गिरावट से ईवी परियोजनाओं की गति धीमी पड़ सकती है और उद्योग में इनोवेशन कम हो सकता है। आलोचक कहते हैं कि समर्थन घटने से चीन की बढ़त और मजबूत होगी और यूरोप में 2035 से अंतर्दहन इंजन (आईसीई) पर प्रतिबंध को लेकर संदेह उत्पन्न हो सकता है। वोल्वो के सीईओ हाकन सैमुएलसन ने कहा कि प्रतिस्पर्धा के लिए विकास तेज होना जरूरी है; संकेत कमजोर पड़े तो सब कुछ धीमा हो जाएगा।
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 108% बढ़ी
देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री अब तेजी पकड़ रही है। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशंस (FADA) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री 91,726 यूनिट रही, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 108% अधिक है। यह संख्या पूरे वित्त वर्ष 2024-25 में बिकी लगभग 1.1 लाख इलेक्ट्रिक कारों का 86% है। इससे पता चलता है कि देश में इलेक्ट्रिक वाहन अडॉप्शन तेजी से बढ़ रहा है।
अब इलेक्ट्रिक कारों का हिस्सा कुल यात्री वाहन बिक्री में लगभग 5% तक पहुंच गया है, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 के अंत में यह केवल 2.6% था। विशेषज्ञों के अनुसार, यह रुझान बताता है कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाजार लगातार मजबूत हो रहा है।
भारतीय रिफाइनरों ने अस्थाई रूप से रोकी रूसी तेल खरीद, अमेरिका से आयात संभव
भारत सरकार ने कहा है कि उसकी कच्चे तेल की खरीद देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्रोतों से सस्ती दरों पर आपूर्ति पर आधारित है, और वह अमेरिका द्वारा रूसी तेल कंपनियों लुकोइल और रोसनेफ्ट पर लगाए गए नए प्रतिबंधों के प्रभावों का अध्ययन कर रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि भारत वैश्विक बाज़ार की स्थिति को देखते हुए अपने निर्णय लेता है। उन्होंने कहा कि भारत की प्राथमिकता 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करना है। सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारतीय रिफाइनरों ने रूसी तेल की नई खरीद अस्थायी रूप से रोक दी है और अमेरिका से तेल आयात पर विचार कर रहे हैं।
जलवायु कानूनों को लेकर तेल कंपनी एक्सॉनमोबिल ने कैलिफ़ोर्निया पर किया मुकदमा
ऑइल कंपनी एक्सॉनमोबिल ने दो जलवायु-प्रकटीकरण कानूनों को प्रथम संशोधन (फ्री स्पीच) का उल्लंघन करार देते हुए कैलिफोर्निया पर मुकदमा दायर किया है। कंपनी के अनुसार, 2023 में पारित हुए सीनेट बिल 253 तथा सीनेट बिल 261 उन्हें ऐसे रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क के अंतर्गत लाते हैं, जिनके द्वारा उन्हें अपने उत्सर्जन एवं जलवायु-जोखिमों की ऐसी जानकारी देनी होगी, जिसके लिए वह सहमत नहीं है।
पहले बिल के तहत बड़ी कंपनियों को गोदामों, आपूर्ति-शृंखलाओं और उत्पाद उपयोग से प्रभावित ‘Scope 3’ जैसे अप्रत्यक्ष उत्सर्जन सार्वजनिक करना होगा – जिसे एक्सॉन बहुत विवादित मान रहा है। दूसरा सीनेट कानून कंपनी को यह बताने को कहता है कि जलवायु परिवर्तन उनकी बिज़नेस को कितना जोखिम दे सकता है – एक्सॉन का दावा है कि इससे उन्हें “अनिश्चित भविष्य” की भविष्यवाणी करनी पड़ेगी। कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूसम के कार्यालय ने कंपनी की इस शिकायत पर प्रतिक्रिया दी कि यह ‘पृथ्वी के सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक द्वारा पारदर्शिता के विरोध’ जैसा है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला बड़े पैमाने पर ‘कारपोरेट जलवायु जवाबदेही” और “उद्योग-मीडिया-नियम समन्वय’ की दिशा में एक अहम मुक़ाबला है। कैलिफ़ोर्निया की ओर से कहा गया है कि यह कानून ‘ग्रीनवॉशिंग’ को रोकने तथा उपभोक्ताओं – निवेशक-समुदाय को सही जानकारी देने के लिए हैं।
भारत: सितंबर में कच्चे तेल का उत्पादन 0.8% घटा
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2025 में भारत का कच्चे तेल और कंडेनसेट उत्पादन 2.3 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 0.8% कम है।
सितंबर में भारतीय रिफाइनरियों ने कुल 21 एमएमटी कच्चे तेल की प्रोसेसिंग की, जो पिछले वर्ष से 0.8% कम है। इसमें से सार्वजनिक क्षेत्र और संयुक्त उपक्रम रिफाइनरियों ने 14.2 एमएमटी, जबकि निजी रिफाइनरियों ने 6.8 एमएमटी संसाधित किया। पेट्रोलियम उत्पादों का कुल उत्पादन 22 एमएमटी रहा, जो साल-दर-साल 3.3% घटा। उत्पाद मिश्रण में डीजल 42.6%, पेट्रोल 18.3%, नैप्था 6.1%, एटीएफ 5.6%, और एलपीजी 4.3% शामिल रहे।







