अधिकांश स्टार्टअप बेहतर पूर्वानुमान के लिए एआई का सहारा ले रहे हैं। फोटो: रिद्धि टंडन

क्या भारतीय स्टार्टअप्स भर पाएंगे मौसम पूर्वानुमान में अहम कमी?

कार्बनकॉपी की इस शृंखला के दूसरे भाग में जानिए कैसे भारत में मौसम की भविष्यवाणी से जुड़ी खामियों को भरने के लिए स्टार्टअप्स और निजी कंपनियां नई तकनीक का सहारा ले रही हैं। लेकिन इनके सामने कई बड़े सवाल भी खड़े हैं — क्या ये मॉडल आईएमडी के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर काम कर पाएंगे?

कार्बनकॉपी की इस सीरीज़ के पहले हिस्से में हमने समझा कि क्यों भारत के मौसम पूर्वानुमान अक्सर कमज़ोर साबित होते हैं। सैटेलाइट, रडार और डेटा नेटवर्क में बड़े निवेश के बावजूद, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) अभी भी कई बार तेज़ बारिश, अचानक आने वाली बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं की तीव्रता का सही अनुमान लगाने में नाकाम रहता है — खासकर हिमालय जैसे जटिल भौगोलिक क्षेत्रों में। वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश का पूर्वानुमान बनाना पहले ही अधिक कठिन है, जबकि हीटवेव या चक्रवात का अनुमान लगाना अपेक्षाकृत आसान होता है।

दुनिया के बेहतरीन मॉडल भी स्थानीय चरम मौसमी घटनाओं (हाइपरलोकल एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स) को सटीकता से नहीं पकड़ पाते। यह भारत को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा करता है। 150 साल से काम कर रहा आईएमडी देश में मौसम और जलवायु डेटा की रीढ़ बना हुआ है। चक्रवात पूर्वानुमान में इसकी प्रगति ने हज़ारों जानें बचाई हैं। 2012 में शुरू किए गए ‘मिशन मॉनसून’ जैसे प्रयासों से मानसून पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार की उम्मीद है।

लेकिन सबसे मुश्किल चुनौतियों के लिए नई तकनीक, ताज़े डेटा स्रोत और तेज़ी से काम करने वाले टूल्स की ज़रूरत है।

स्टार्टअप्स का प्रवेश: पूरक की भूमिका, प्रतिस्थापन नहीं

यहीं पर भारतीय स्टार्टअप्स मैदान में उतर रहे हैं। ये आईएमडी की जगह नहीं ले सकते लेकिन काफी हद तक उसके सहयोगी की भूमिका निभा सकते हैं। कुछ कंपनियां एआई आधारित सिस्टम बना रही हैं जो गांव या शहर स्तर पर भविष्यवाणियों को और सटीक बनाते हैं। कुछ हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट लॉन्च कर रही हैं या थर्मल मैपिंग से हीट आइलैंड और बाढ़ जोखिम ट्रैक कर रही हैं।

यह सब मिलकर खुद को ‘फोर्स मल्टीप्लायर्स’ की तरह पेश कर रहे हैं — ऐसी ताकत जो राष्ट्रीय तंत्र की कमियों को भर सकती है।

सीरीज़ के इस दूसरे हिस्से में हम देखेंगे कि कैसे निजी खिलाड़ी — शुरुआती स्टार्टअप्स से लेकर नासा के साथ काम कर रही स्पेस-टेक कंपनियां — भारत में पूर्वानुमान की परिभाषा बदल रहे हैं। इनका वादा है — तेज़ी, सटीकता और नए तरह के डेटा। लेकिन चुनौतियां भी हैं। स्टार्टअप्स अभी नए हैं, उनके मॉडल किसी एक शहर में काम कर सकते हैं पर पूरे देश में नहीं। साथ ही व्यावसायिक दबाव उन्हें पब्लिक वार्निंग सिस्टम की बजाय प्राइवेट क्लाइंट्स पर ध्यान देने को मजबूर कर सकता है।

मूल सवाल यह है कि क्या यह स्टार्टअप्स सिर्फ नए प्रयोगों (इनोवेशंस) तक सीमित रहेंगे या भारत के वृहद पूर्वानुमान पारिस्थितिकी तंत्र में इस तरह घुलमिल पाएंगे कि सचमुच लोगों की जान बचा सकें।

एआई और ग्रैन्युलर डेटा पर फोकस

ज़्यादातर स्टार्टअप्स का दावा साफ़ है — आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) वो कर सकता है जो केवल भौतिक मॉडल नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए ClimateAi ऐसा क्लाइमेट रिस्क मॉडल बनाता है जो कंपनियों को लंबी अवधि की व्यवधान योजनाएँ बनाने में मदद करता है। इसके संस्थापक हिमांशु गुप्ता का कहना है कि यह मॉडल समझ सकता है कि कैसे वैश्विक घटनाएं जैसे एल नीनो, ला नीना, मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (एमजेओ) और दक्षिणी प्रशांत मानसून, भारतीय मानसून को प्रभावित करते हैं। उनके अनुसार एआई-आधारित टेक्नोलॉजी को अपडेट करना सस्ता और तेज़ है।
कुछ स्टार्टअप्स हाइपरलोकल इनसाइट्स पर काम कर रहे हैं।

SatLeo Labs, अहमदाबाद स्थित एक स्टार्टअप, सैटेलाइट सेंसर से इन्फ्रारेड बैंड कैप्चर कर सतह तापमान में छोटे-छोटे बदलाव पकड़ता है। इस ‘थर्मल इंटेलिजेंस’ को एआई से प्रोसेस करके हीट आइलैंड्स की मैपिंग करता है और लैंडफिल आग जैसे जोखिमों की चेतावनी देता है। यह कर्नाटक के तुमकुरु नगर निगम के साथ पहले से काम कर रहा है।

शैक्षणिक संस्थान भी एआई समाधान तलाश रहे हैं। आईआईटी कानपुर के कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी में प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी और उनकी टीम फिजिकल मॉडल, सांख्यिकीय तरीकों और मशीन लर्निंग को जोड़ने पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि जितना अधिक लोकल डेटा उपलब्ध होगा, मॉडल उतना सटीक होगा।

प्रोफेसर त्रिपाठी बताते हैं कि वर्तमान आईएमडी मॉडल 6 वर्ग किमी तक के इलाके का ही पूर्वानुमान दे सकते हैं, जो पहाड़ी इलाकों में पर्याप्त नहीं है जहां थोड़ी दूरी पर भी मौसम बदल जाता है। स्टार्टअप्स का वादा है कि वे यह अंतर खत्म कर देंगे।

एआई से आगे: स्पेस-टेक का नया प्रयोग

एआई से आगे बढ़कर कुछ कंपनियां पृथ्वी को देखने के नए तरीके खोज रही हैं। बेंगलुरु की Pixxel हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट्स का नेटवर्क बना रही है। ये सैटेलाइट्स कई तरंगदैर्घ्य पर डेटा कैप्चर कर सतह की सामग्री और वनस्पति की विस्तृत तस्वीर देते हैं।

हालांकि Pixxel का ध्यान शॉर्ट-टर्म मौसम पूर्वानुमान पर नहीं है। इसके सीईओ अवैस अहमद के अनुसार उनका फोकस है ‘क्लाइमेट इंटेलिजेंस’ — लंबी अवधि की पर्यावरणीय चुनौतियों की निगरानी और राष्ट्रीय स्तर पर पृथ्वी अवलोकन की क्षमता को मजबूत करना। अहमद का दावा है कि उनकी तकनीक मीथेन उत्सर्जन और अन्य वायुमंडलीय प्रदूषकों को सूक्ष्म स्तर पर ट्रैक कर सकती है, जो पारंपरिक सैटेलाइट नहीं कर पाते।

इनके ग्राहक कौन हैं?

ये स्टार्टअप्स फिलहाल आम जनता को सीधे मौसम पूर्वानुमान नहीं दे रहे। उनका डेटा मुख्य रूप से सरकारों और कंपनियों को बेचा जाता है। खुद आईएमडी ने गूगल के साथ समझौता किया है ताकि क्षेत्रीय स्तर पर चक्रवात से जुड़ी जानकारी साझा की जा सके और शॉर्ट-टर्म बारिश पूर्वानुमान (नाउकास्टिंग) तकनीक विकसित हो सके।

भारत का IN-SPACe (इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथॉराइज़ेशन सेंटर) ने हाल ही में Pixxel समेत कई कंपनियों के साथ साझेदारी की घोषणा की है ताकि जलवायु परिवर्तन निगरानी, आपदा प्रबंधन, कृषि, शहरी योजना और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वदेशी वाणिज्यिक पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट बनाया जा सके।

निजी कंपनियाँ भी बड़ा बाज़ार हैं। ClimateAi ने भारत में आईटीसी के साथ साझेदारी कर फसल-विशेष जलवायु जोखिम पूर्वानुमान बनाए हैं और किसानों के लिए मौसम आधारित फसल मार्गदर्शन व क्रॉप कैलेंडर तैयार किया है। आईटीसी ने नवंबर 2023 में MAARS नामक ऐप लॉन्च किया जो किसानों और आईटीसी के एग्री-बिजनेस को मदद करता है।

निवेशक भी इन तकनीकों पर दांव लगा रहे हैं। SatLeo ने हाल ही में 28 करोड़ रुपए की प्री-सीड फंडिंग जुटाई, जबकि Pixxel ने अब तक 95 मिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित किया है। Grandview Research के अनुसार, भारत का निजी मौसम पूर्वानुमान बाज़ार फिलहाल 114.9 मिलियन डॉलर का है और 2030 तक यह 174.3 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

सीमाएं और चुनौतियां

हालांकि ये प्रयास उत्साहजनक हैं, चुनौतियां भी हैं। अधिकांश तकनीकें हीट, उत्सर्जन या लैंड-यूज़ पर केंद्रित हैं, जो बारिश की तुलना में मॉडल करना आसान है। आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर कृष्ण अचुताराव कहते हैं कि ‘चरम गर्मी घटनाओं का अनुमान लगाना आसान है क्योंकि तापमान में बदलाव बारिश की तुलना में कम तीव्र होता है। लेकिन चरम बारिश के मॉडलिंग की सटीकता अभी सीमित है।’

कई स्टार्टअप्स साइलो में काम कर रहे हैं। SatLeo फिलहाल सिर्फ सतह तापमान पर काम करता है, अन्य डेटा सेट शामिल नहीं करता। Pixxel हालांकि अपने हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा को LiDAR, SAR और ग्राउंड डेटा के साथ मिलाता है।

सबसे बड़ी चुनौती है भरोसे की कमी। कंपनियों के क्लाइंट ज्यादातर कॉर्पोरेट हैं, जो सप्लाई चेन इनसाइट चाहते हैं, न कि सरकारी एजेंसियाँ जो जन-निकासी प्रबंधन करती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि निजीकरण का समन्वय सावधानी से होना चाहिए ताकि पूर्वानुमान खंडित न हो जाए।

विशेषज्ञों की राय

ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि स्टार्टअप्स उपयोगी हैं, लेकिन सिर्फ पूरक के रूप में। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने एआई और प्राइवेट पार्टनरशिप का स्वागत किया है और बताया कि आईएमडी के 1901 से डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड मशीन लर्निंग के लिए खज़ाना साबित हो सकते हैं। महापात्रा कहते हैं कि पूर्व चेतावनी किसी प्राइवेट एजेंसी या पब्लिक सेक्टर एजेंसियों से जारी नहीं होनी चाहिए बल्कि एक ही जगह (भारत मौसम विज्ञान विभाग) से जारी होनी चाहिए ताकि कोई कन्फ्यूज़न न हो।

पूर्व पृथ्वी विज्ञान सचिव डॉ. माधवन राजीवन का कहना है स्टार्ट अप्स को समझना होगा कि उनकी भूमिका एक सहयोगी की ही हो सकती है। उनके मुताबिक, “निजी खिलाड़ी डेटा को बेहतर बना सकते हैं या अतिरिक्त डेटा सेट दे सकते हैं, लेकिन आईएमडी को रिप्लेस नहीं कर पाएंगे।”

प्रोफेसर त्रिपाठी का मानना है कि इन मॉडलों का डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिए, खासकर ग्लोबल साउथ देशों के लिए जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे ज्यादा है। लेकिन वह चेतावनी भी देते हैं कि तकनीक से अकेले जलवायु संकट हल नहीं होगा — ऊर्जा निर्भरता, संसाधन उपयोग और खपत के पैटर्न में बदलाव भी उतने ही ज़रूरी हैं।

निष्कर्ष

निजी स्टार्टअप्स भारत को तेज़, सटीक और गहराई में जाने वाले इनसाइट्स दे रहे हैं। लेकिन इनकी सीमाएं भी वास्तविक हैं — जैसे सटीकता का राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाण न होना और व्यावसायिक हितों के कारण डेटा का आम जनता तक न पहुंच पाना। असली परीक्षा यही होगी कि क्या ये स्टार्टअप्स अपने नवाचारों को भारत के राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान सिस्टम में इस तरह जोड़ पाएंगे कि यह सिर्फ खास ग्राहकों के लिए नहीं बल्कि पूरी जनता की सुरक्षा के लिए कारगर साबित हो।

+ posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.