नेपाल के रसुवागढ़ी-टिमुरे क्षेत्र में 8 जुलाई 2025 को अचानक आई भीषण बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। चीन की सीमा पर तिब्बत क्षेत्र में लेहेन्दे (लखनदेई) नदी में अप्रत्याशित जलवृद्धि के कारण भोटे कोशी नदी का बहाव अचानक बहुत तेज हो गया, जिससे आई बाढ़ में कम से कम 9 लोगों की मौत हो गई और 19 अभी भी लापता हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार यह बाढ़ तिब्बत की एक सुप्राग्लेशियल झील के फटने से आई, जिसे उपग्रह चित्रों ने भी पुष्टि की है।
बाढ़ में नेपाल-चीन को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण फ्रेंडशिप ब्रिज और रसुवागढ़ी चेकपोस्ट पर स्थित मितेरी पुल बह गए। इसके चलते कैलाश मानसरोवर यात्रा भी बाधित हो गई है। ट्रेकिंग एजेंसीज एसोसिएशन ऑफ नेपाल (टीएएएन) ने चीनी सरकार से वैकल्पिक मार्ग – तातोपानी, कोराला और हिल्सा – खोलने की मांग की है और नेपाल सरकार से वीज़ा प्रक्रिया को तेज करने का अनुरोध किया है।
बाढ़ के कारण 1,100 मीटर से अधिक सड़क बर्बाद हो चुकी है, 10 हाइड्रोपॉवर परियोजनाएं ध्वस्त हुई हैं, और स्थानीय ड्राइ पोर्ट भी ठप पड़ा है। संचार और बिजली सेवा बाधित है, जिससे बचाव कार्यों में कठिनाई हो रही है।
अब तक 150 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है, जिनमें 127 विदेशी नागरिक हैं, लेकिन खराब भूभाग और भारी उपकरणों की अनुपलब्धता राहत कार्यों को धीमा कर रही है।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लैश फ्लड, यानी अचनाक आनेवाली बाढ़ की चेतावनी देना बेहद मुश्किल होता है, और जलवायु परिवर्तन के कारण यह और मुश्किल होता जा रहा है, फिर भी एक रिपोर्ट के अनुसार, यह हादसा नेपाल और चीन के बीच रियलटाइम डाटा साझा न होने के कारण बिना चेतावनी के हुआ।
जब तक नेपाली अधिकारी सतर्क होते, बाढ़ का पानी बेट्रावती तक पहुंच चुका था। आउटलुक की एक रिपोर्ट के अनुसार, इससे यह स्पष्ट होता है कि नेपाल जैसे हिमालयी देशों में अर्ली वार्निंग सिस्टम (पूर्व चेतावनी प्रणाली) और सीमा-पार समन्वय की तत्काल जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों का तेजी से पिघलना, अनियमित मानसून और बेतरतीब बारिश के कारण ऐसे हादसों की की संख्या बढ़ रही है और यह अधिक गंभीर भी हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते सायरन और रिवर गेज जैसी चेतावनी प्रणालियों में उपयुक्त निवेश नहीं किया गया, तो भविष्य की बाढ़ें और अधिक विनाशकारी होंगी।
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