फोटो: Markus Distelrath/Pixabay

चरम मौसम से सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत छठे स्थान पर

पिछले एक दशक में चरम मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में भारत छठे स्थान पर है। जर्मनवॉच द्वारा जारी क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2025 के अनुसार, 1993 से 2022 के बीच भारत ने 400 से अधिक चरम मौसम की घटनाओं का सामना किया, जिसके परिणामस्वरूप 80,000 लोगों की मौत हुई और 180 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। यह दुनियाभर में इस तरह की घटनाओं से होने वाली मौतों का 10% और कुल आर्थिक क्षति का 4.3% हिस्सा है।

जर्मनवॉच द्वारा जारी यह इंडेक्स अंतर्राष्ट्रीय आपदा डेटाबेस में रिकॉर्ड चरम मौसमी घटनाओं और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा जारी आर्थिक आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि पिछले 30 वर्षों में दुनिया ने 9,400 से भी ज्यादा चरम मौसमी आपदाओं का सामना किया है। रिपोर्ट यह भी कहा गया है कि इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए उपलब्ध क्लाइमेट फाइनेंस पर्याप्त नहीं है। 

ला निना के बावजूद इतिहास की सबसे गर्म जनवरी 

वर्ष 2025 की जनवरी इतिहास की अब तक सबसे गर्म जनवरी दर्ज की गई है। यूरोपियन क्लाइमेट एजेंसी इस बात की पुष्टि की है कि जनवरी का औसत तापमान 13.23 डिग्री दर्ज किया गया जो पिछले साल दर्ज किये गए इस महीने के तापमान से 0.09 डिग्री अधिक दर्ज किया गया। वर्ष 1991-2020 के बीच दर्ज औसत तापमान से यह 0.79 डिग्री अधिक है। जनवरी का यह सर्वाधिक तापमान इस वक्त सक्रिय हो रहे ला निना के बावजूद दर्ज किया गया है। ला निना एक मौसमी कारक है जो अल निनो के विपरीत वातावरण को ठंडा करता है।  

बीते वर्ष 2024 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने धरती पर सबसे गर्म वर्ष घोषित किया था। महासागरों के गर्म होने की रफ्तार भी काफी तेज़ हो गई है और जलवायु परिवर्तन संकेतक एक गंभीर संकट की ओर इशारा कर रहे हैं। 

तापमान वृद्धि 2 डिग्री पर रोकना अब एक ‘मृत लक्ष्य’ 

वैश्विक तापमान वृद्धि की दर अब इतना तेज़ हो गई है कि अगले 20 सालों में धरती 2 डिग्री तापमान वृद्धि के उस बैरियर को पार कर जायेगी जिस पर धरती को सदी के इस अंत तक रोकने की बातें पिछले कई दशकों से की जा रही हैं। प्रसिद्ध जलवायु वैज्ञानिक प्रोफेसर जेम्स हैनसन के अनुसार, ग्लोबल वॉर्मिंग की गति को काफी कम आंका गया है। उनका कहना है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर  2 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान वृद्धि का लक्ष्य अब “मृत” है।

हैनसेन और उनके सहकर्मियों द्वारा किए गए एक नए विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकला है कि दो मोर्चों पर ग्लोबल वॉर्मिंग प्रभाव की अनदेखी की गई है। पहला पानी के जहाजों से होने वाला प्रदूषण जिससे सूरज की गर्मी ट्रैप होती है और दूसरा जीवाश्म ईंधन के प्रति क्लाइमेट की संवेदनशीलता। जेम्स हैनसन वह वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 1988 में ही क्लाइमेट चेंज के ख़तरे को लेकर चेतावनी दी थी। 

फ़रवरी की गर्मी करेगी रबी की फसल को बर्बाद, हिमाचल में सेब कारोबारी परेशान 

भारत में फरवरी में औसत से अधिक तापमान देखने को मिल सकता है। इसका असर गेहूं और रेपसीड यानी सरसों आदि की फसल पर पड़ सकता है क्योंकि फरवरी के महीने में कुछ दिन ऐसे हो सकते हैं जब अधिकतम तापमान औसत से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो। ऐसे में इन राज्यों में जहां गेहूं उगाया जाता है वहां फसलों को खतरा हो सकता है।

भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है। लेकिन 2022 से लगातार फसल खराब हो रही है और लगातार तीन वर्षों तक खराब फसल की पैदावार के बाद महंगे आयात से बचने के लिए 2025 में बंपर फसल की उम्मीद कर रहा है। आपको याद होगा कि 2023 में धरती पर सबसे गर्म मार्च का महीना था और फिर पिछले साल 2024 में वॉर्मेस्ट फरवरी रिकॉर्ड की गई। 

उधर लंबे समय तक सूखे मौसम ने शिमला में सेब किसान चिंतित हैं। इसकी फ़सल पर असर पड़ना तय लग रहा है। सेब की पारंपरिक किस्मों के लिए ठंडा मौसम (7 डिग्री सेल्सियस से नीचे ) कम से कम 1,200 से 1,600 घंटे का होना चाहिए और जल्द फसल देने वाली वैरायटी के लिए 600 घंटे तक होना चाहिए लेकिन इस मौसम में यह नहीं हुआ है। राज्य में लगभग 90 प्रतिशत सेब बागवान अभी भी पारंपरिक किस्मों पर निर्भर हैं, जबकि बाकी ने घने वृक्षारोपण को अपनाया है। किसानों का कहना है कि सर्दियों की बर्फ सेब की क्वालिटी को सुधारने के साथ कीड़ों को भी मारती है लेकिन विपरीत मौसम ने किसानों के लिए समस्या खड़ी कर दी है। 

जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास जंगल में आग लगने से चार बारूदी सुरंग विस्फोट 

रविवार को जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास जंगल में आग लगने से कम से कम चार बारूदी सुरंगें फट गईं, लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ। अधिकारियों ने बताया कि मेंढर उपमंडल के बालाकोट सेक्टर में दोपहर के वक्त लगी आग से  बारूदी सुरंगें फट गईं। सीमापार से घुसपैठ करने से रोकने के लिए सेना बाधा प्रणाली के रूप में एलओसी के साथ लगे इलाकों में यह बारूदी सुरंगे लगाती है। अधिकारियों ने कहा कि आग लगने का कारण तुरंत पता नहीं चल पाया है, सेना, पुलिस और स्थानीय स्वयंसेवियों ने कई घंटों के संयुक्त प्रयासों के बाद आग पर काबू पा लिया।

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