सबसे लंबे और घातक गर्मियों के मौसम से जूझ रहा है भारत: आईएमडी

साल 2024 पिछले 15 वर्षों में सबसे तीव्र और सबसे अधिक हीटवेव वाले दिनों वाला वर्ष बनने जा रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चला है कि देश के 36 उपविभागों में से 14 में 1 मार्च से 9 जून के बीच 15 से अधिक हीटवेव वाले दिन दर्ज किए गए हैं। आम तौर पर मध्य और उत्तर पश्चिम भारत में प्रति वर्ष औसतन लगभग 6-8 लू वाले दिन अपेक्षित होते हैं। लेकिन इस साल पड़ रही अत्यधिक गर्मी के पैमाने और विस्तार से जलवायु वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं। 

सबसे अधिक हीटवेव वाले (27) दिन ओडिशा  में दर्ज किए गए हैं, इसके बाद राजस्थान (23), गंगीय पश्चिम बंगाल (21), हरियाणा (20), चंडीगढ़ (20), दिल्ली (20) और पश्चिम उत्तर प्रदेश (20) का स्थान रहा। यहां तक ​​कि पहाड़ी क्षेत्र भी हीटवेव से नहीं बचे हैं। जम्मू और कश्मीर में छह दिन, हिमाचल प्रदेश (12), और उत्तराखंड में दो दिन हीटवेव देखी गई। केरल और तमिलनाडु जैसे तटीय क्षेत्रों में क्रमशः पांच और चौदह गर्मी हीटवेव वाले दिन दर्ज किए गए हैं।

आईएमडी अधिकारियों का कहना है कि न्यूनतम तापमान अधिक है और रातों को भी गर्मी से राहत नहीं मिल रही है, इसलिए हीटवेव का घातक प्रभाव बढ़ रहा है

आईएमडी ने कहा कि बुधवार तक उत्तर भारत के कई हिस्सों में भीषण हीटवेव की स्थिति जारी रहेगी, और उसके बाद उत्तर पश्चिम भारत की ओर आने वाले पश्चिमी विक्षोभ के कारण धीरे-धीरे राहत मिलेगी। देश का एक बड़ा हिस्सा भीषण गर्मी की चपेट में है। प्रयागराज में अधिकतम तापमान 47.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि उच्च हिमालय में स्थित नुब्रा में 26.2 डिग्री दर्ज किया गया।

मौसम विभाग ने कहा कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और बिहार में अधिकांश स्थानों पर अधिकतम तापमान सामान्य से काफी ऊपर (5.1 डिग्री सेल्सियस या अधिक) था। मसूरी, शिमला और रानीखेत जैसे हिल स्टेशनों में तापमान सामान्य से कई डिग्री अधिक दर्ज किया गया है। 

विभाग ने कहा कि 12 से 18 जून के बीच मानसून की प्रगति न के बराबर हुई, जिसके कारण जून में औसत से 20 प्रतिशत कम वर्षा हुई है।

अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने गुरुवार को कहा कि पिछले साल वैश्विक तापमान लगातार रिकॉर्ड-स्तर पर रहा। मई 2024 को रिकॉर्ड पर सबसे गर्म मई के रूप में रैंकिंग दी गई थी। महासागरों के तापमान ने भी लगातार 14वें महीने में रिकॉर्ड ऊंचाई दर्ज की।

आईएमडी के महानिदेशक एम महापात्र ने कहा कि हीटवेव का ताजा दौर मुख्य रूप से एक प्रतिचक्रवात के कारण होने की उम्मीद है, जिसके कारण उत्तर पश्चिम भारत में गर्म हवा कम हो रही है। केंद्रीय कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने हीटवेव की स्थिति और जंगल की आग से निपटने के उपायों की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति (एनसीएमसी) की एक बैठक की। उत्तराखंड में जंगल की आग बुझाने के लिए वायुसेना के हेलीकॉप्टर बांबी बकेट ऑपरेशन चला रहे हैं।

तीन महीनों में हीटवेव ने लीं दर्जनों जानें

यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के अनुसार, मई 2024 अब तक का सबसे गर्म मई का महीना था। पिछले 12 महीनों — जून 2023 से मई 2024 — में से हर ने उस महीने का तापमान रिकॉर्ड तोड़ा है। उत्तर पश्चिम भारत और मध्य क्षेत्र के कुछ हिस्से मई में प्रचंड गर्मी की चपेट में रहे, कई राज्यों में गर्मी से होनेवाली मौतों की सूचना मिली। 

समाचार एजेंसी पीटीआई ने स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया  था कि भारत में मार्च से मई तक लगभग 25,000 हीटस्ट्रोक के मामले रिपोर्ट हुए और गर्मी से संबंधित बीमारियों के कारण 56 मौतें दर्ज की गईं। इन आंकड़ों में मतदान के दौरान भीषण गर्मी से होनेवाली चुनाव कर्मियों की मौतें शामिल नहीं हैं। आंकड़ों के अनुसार केवल अंतिम चरण के दर्जन ही लगभग 33 चुनाव कर्मियों की मौत हुई।

भीषण गर्मी: जलाशयों में जलस्तर घटकर हुआ 22%

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश के 150 मुख्य जलाशयों की मॉनिटरिंग में पता चला है कि इनमें 39.765 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी बचा है, जो इन जलाशयों की कुल भंडारण क्षमता का सिर्फ 22 प्रतिशत है

पिछले हफ्ते इन जलाशयों में 23 प्रतिशत पानी बचा था। तापमान बढ़ने के साथ ही पिछले तीन महीनों में जलाशयों के स्तर में हर हफ्ते गिरावट देखी जा रही है।

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) का डेटा बताता है कि दक्षिणी क्षेत्र भारी नुकसान झेल रहा है और यहां केवल 13 प्रतिशत पानी बचा है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु सहित इस क्षेत्र में 53.334 बीसीएम की कुल क्षमता वाले 42 जलाशय हैं। इन जलाशयों में मौजूदा भंडारण 7.114 बीसीएम है, जो चिंताजनक रूप से कम है। पिछले साल इसी अवधि के दौरान इनमें 23 प्रतिशत पानी बचा था।

मॉनिटर किए गए 150 जलाशयों की कुल भंडारण क्षमता 178.784 बीसीएम है, जो देश की कुल भंडारण क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 69.35 प्रतिशत है। इस हफ्ते का लाइव स्टोरेज पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान उपलब्ध स्टोरेज का 79 प्रतिशत (50.549 बीसीएम) और दस साल के औसत (42.727 बीसीएम) का 93 प्रतिशत है। असम, ओडिशा, झारखंड और गुजरात में पिछले साल की तुलना में बेहतर जल भंडारण दिखा। इसके विपरीत, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कई दक्षिणी राज्यों में भंडारण का स्तर गिरा है।

वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में लोग भीषण गर्मी के बीच पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। बुधवार को भी टैंकरों से पानी भरने के लिए कतारें देखी गईं।

मुंबई में 100 मिमी वर्षा लेकिन इसकी 7 झीलों में पानी का भंडार 6% से कम 

मुंबई में इस साल मानसून जल्दी आ गया और अंधेरी सबवे समेत निचले इलाकों में जलभराव की खबर आई। कुछ घंटों के अंतराल में वर्ली, दादर, विक्रोहली, पवई और घाटकोपर में 100 मिमी से अधिक बारिश हुई, जबकि बांद्रा और सांताक्रूज़ सहित पश्चिमी उपनगरों के कुछ हिस्सों में रविवार देर रात 80 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई।

हालाँकि, मुंबई को जल आपूर्ति करने वाली सात झीलों में ज्यादा बारिश नहीं हुई और सोमवार सुबह उनका कुल भंडार 84,155 मिलियन लीटर या आवश्यक क्षमता का 5.8% ही था जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार पिछले साल इसी तारीख को यहां ज़रूरी क्षमता का 10.3% और 2022 में 14% पानी था। 

मौसम विभाग ने कहा कि सामान्य प्रगति के बाद, मानसून रुक गया है। अगले 8-10 दिनों में ज्यादा आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं है, इस कारण उत्तर भारत में मॉनसून पहुंचने में देरी होगी जिस वजह से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाकों में अत्यधिक तापमान और लू चल रही है।

भारत में एक्सट्रीम हीटवेव के पीछे मानव-जनित जलवायु परिवर्तन: रिपोर्ट

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि इस साल मई में भारत में चलने वाली हीटवेव का तापमान, देश में पहले देखी गई सबसे गर्म हीटवेव की तुलना में लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जलवायु वैज्ञानिकों के एक स्वतंत्र ग्रुप ‘क्लाइमामीटर’ द्वारा किए इस अध्ययन में 26 मई से 29 मई के बीच मध्य और उत्तरी भारत के प्रमुख हिस्सों में चलने वाली भीषण हीटवेव की जांच की गई।

इस दौरान देश के 37 से अधिक शहरों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया। भारत और दक्षिणी पाकिस्तान में लू के कारण रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया, जो नई दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में 45.2 डिग्री सेल्सियस से 49.1 डिग्री सेल्सियस तक रहा।

रिपोर्ट में विश्लेषण किया गया है कि 2001 से 2023 के बीच मई की हीटवेव के दौरान भारत में उच्च तापमान से जुड़ी घटनाओं में क्या बदलाव आया है, और यदि यही घटनाएं 1979 से 2001 के बीच हुई होतीं तो वे कैसी दिखतीं।

रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में बदलाव से पता चला है कि पहले की तुलना में वर्तमान जलवायु में इसी तरह की घटनाओं ने तापमान को कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ाया है। तापमान के आंकड़ों से पता चला कि उत्तर पश्चिम भारत और पाकिस्तान के दक्षिणी हिस्सों के कुछ क्षेत्रों में पहले की तुलना में 5 डिग्री सेल्सियस तक अधिक गर्मी देखी गई। 

फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के डेविड फरांडा ने कहा, “क्लाइमामीटर के निष्कर्ष से पता चलता है कि जीवाश्म ईंधन के कारण भारत में हीटवेव असहनीय तापमान तक पहुंच रही हैं।”

शहरी क्षेत्रों में बदलावों से पता चला है कि नई दिल्ली, जालंधर और लरकाना (पाकिस्तान) पहले की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा 53.2 डिग्री सेल्सियस की गलत रीडिंग में संशोधन करने के बाद आंकड़े रिपोर्ट के इस विश्लेषण से मेल खाते हैं।

हालांकि वर्षा में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं दिखा, लेकिन हवा की गति में बदलाव के संकेत मिले, जिससे दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्रों में हवा की गति 4 किमी/घंटा तक बढ़ सकती है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि पहले इसी तरह की घटनाएं मुख्य रूप से नवंबर और दिसंबर में होती थीं, जबकि वर्तमान जलवायु में ये ज्यादातर फरवरी और मई में हो रही हैं।

रिपोर्ट में हीटवेव को काफी हद तक एक अनोखी घटना के रूप में देखा गया, जिसके लिए ज्यादातर मानव जनित जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हालांकि इसमें यह भी कहा गया कि तेजी से बढ़ते ग्रीनहॉउस गैस उत्सर्जन के साथ-साथ, प्राकृतक रूप से होने वाली अल नीनो घटना का भी हीटवेव पर प्रभाव पड़ा।

हीटवेव और जलवायु परिवर्तन के संबंध को लेकर दी जा चुकी है चेतावनी

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) असेसमेंट रिपोर्ट 6 (एआर6) में भारत में हीटवेव और जलवायु परिवर्तन के बीच स्पष्ट संबंध बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हीटवेव को बढ़ाने में जलवायु परिवर्तन विभिन्न तरीकों से योगदान दे रहा है।

आईपीसीसी की रिपोर्टों से पता चला है कि कैसे जलवायु परिवर्तन से भूमि की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे तापमान और वर्षा प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप आर्कटिक क्षेत्रों में बर्फ के आवरण में कमी होती है और सर्दियों में तापमान बढ़ता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उपजाऊ मौसम के दौरान गर्मी कम होने के साथ-साथ वर्षा में वृद्धि देखी जा सकती है।

बढ़ते शहरीकरण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण शहर और आसपास के इलाकों में गर्मी बढ़ सकती है, खासकर हीटवेव के दौरान, जिससे दिन के तापमान की तुलना में रात के तापमान पर अधिक प्रभाव पड़ता है। 

आईपीसीसी की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एशिया में 20वीं सदी के बाद से सतही हवा का तापमान बढ़ रहा है, जिससे पूरे क्षेत्र में हीटवेव का खतरा बढ़ गया है। विशेष रूप से भारत में, हिंद महासागर के बेसिन के गर्म हो जाने और बार-बार होने वाली अल-नीनो की घटना के कारण हीटवेव के दिनों की संख्या और अवधि में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके परिणामस्वरूप कृषि और मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। भारत जैसे क्षेत्रों में पहले से ही गर्म शहरों में ग्लोबल वार्मिंग और जनसंख्या वृद्धि के संयोजन से गर्मी का जोखिम बढ़ रहा है, जिससे इन शहरों के आसपास के इलाकों के तापमान में भी वृद्धि हो रही है।

अगले पांच में से कोई एक साल टूटेगा 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान वृद्धि का बैरियर 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कहा कि इस बात की 80  प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच वर्षों में से एक वर्ष ऐसा होगा जिसमें औद्योगिक युग की शुरुआत की तुलना में कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि रिकॉर्ड की जायेगी। डब्लूएमओ का ये भी कहना है कि 86 प्रतिशत संभावना है कि इन पांच में से कम से कम एक वर्ष 2023 को पछाड़कर एक नया तापमान रिकॉर्ड बनाएगा, जो वर्तमान में सबसे गर्म वर्ष है। डब्लूएमओ के वैश्विक अपडेट में कहा गया है कि इस बात की 47 प्रतिशत संभावना है कि 2024-28 के बीच के पांच सालों वैश्विक औसत तापमान प्री इंडस्ट्रियल युग की तुलना में 1.5 डिग्री ऊपर होगा। पिछले साल की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि 2023-2027 के बीच ऐसा होने की एक प्रतिशत संभावना है। 

दुनिया के सभी देशों के बीच 2015 में हुई पेरिस संधि के तहत यह सहमति हुई थी कि वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री से पर्याप्त नीचे रखा जायेगा और प्राथमिकता होगी कि यह 1.5 डिग्री से नीचे रोका जाये ताकि सूखे, अत्यधिक बारिश, बाढ, समुद्र सतह में वृद्धि और चक्रवात के साथ हीटवेव जैसी चरम मौसमी घटनाओं को रोका जा सके। 

प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों के एक समूह, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार, दुनिया को तापमान वृद्धि को 1.5 तक सीमित करने के लिए 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम से कम 43 प्रतिशत (2019 के स्तर की तुलना में) और 2035 तक कम से कम 60 प्रतिशत कम करने की आवश्यकता है।

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