बिहार में डेंगू की मार, मामले रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचे
बिहार में इस साल डेंगू का ज़बरदस्त प्रकोप दिख रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 10 अक्टूबर तक ही 9,235 मामले सामने आ चुके थे। अक्टूबर के महीने में पहले 10 दिनों में ही करीब 2,500 केस सामने आये। बिहार में सितंबर के महीने में 6 हज़ार से अधिक मामले दर्ज हुए थे जो 2022 में इसी महीने में सामने आए डेंगू के मामलों से करीब 3 गुना अधिक है।
देश के दूसरे राज्यों दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल और उत्तराखंड में भी डेंगू के मार रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बॉर्न डिज़ीज़ के मुताबिक इस साल पूरे देश में करीब 1 लाख मामले सितंबर के मध्य तक सामने आ चुके थे। पिछले साल डेंगू के कुल मामलों की संख्या सवा दो लाख से ऊपर रही थी।
उधर पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में भी इस साल अब तक डेंगू के 2 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज किये जा चुके हैं और सितंबर के अंत तक मरने वालों की संख्या 1000 से अधिक हो गई।
इस साल सामान्य से कम रहा मानसून, कुल 94% ही बरसा
इस साल 30 सितंबर को खत्म हुए मॉनसून सीज़न के बाद मौसम विभाग द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि देश में बारिश सामान्य से 6% प्रतिशत कम हुई। मौसम विभाग के मुताबिक इस साल एल निनो प्रभाव के कारण मॉनसून में कमी अपेक्षित थी लेकिन कुछ सकारात्मक कारणों की वजह से इस कमी की भरपाई हुई और 1 जून से 30 सितंबर के बीच कुल मॉनसून 94% दर्ज किया गया। मौसम विभाग ने अक्टूबर में सामान्य से अधिक तापमान की चेतावनी भी दी है।
चरम मौसमी आपदाओं की मार, 6 साल में हर रोज़ 20,000 बच्चे विस्थापित
नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक चरम मौसमी घटनाओं से हर घंटे 16 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर क्षति हो रही है यानी करीब 130 करोड़ रुपए। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक 1970 के बाद से अब तक एक्सट्रीम वेदर डिजास्टर्स के कारण होने वाली क्षति 7 गुना बढ़ गई है।
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट बताती है कि मौसम संबंधी आपदाओं के कारण पिछले 6 सालों में 13.4 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं जिनमें से 32 प्रतिशत यानी करीब 4.3 करोड़ बच्चे हैं। यह बात यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रन्स फंड (यूनिसेफ) ने 6 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट में कही है। इसका मतलब है कि 2016-21 के बीच 20,000 बच्चे मौसमी आपदाओं के कारण हर रोज़ विस्थापित हुए। रिपोर्ट कहती है कि हर 10 विस्थापितों में से 3 बच्चे हैं और सबसे अधिक विस्थापन चक्रवाती तूफानों और बाढ़ की घटनाओं के कारण झेलना पड़ा है।
ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर को क्लाइमेट प्रभावों से $300 बिलियन का नुकसान
बिगड़ते क्लाइमेट प्रभावों के कारण पूरी दुनिया में इंफ्रास्ट्रक्चर को हर साल 300 बिलियन डॉलर (यानी 24 लाख करोड़ रुपए) की क्षति हो रही है। कोअलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (सीडीआरआई) की द्विवार्षिकी रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
अगर स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में होने वाले नुकसान को जोड़ दें तो यह नुकसान 845 बिलियन डालर यानी (70 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंच जाता है। यह संख्या 2021-22 में दुनिया के जीडीपी में हुए इजाफे के सातवें हिस्से के बराबर है।
रिपोर्ट में कहा गया है: एक्सट्रीम वेदर से उत्पन्न ख़तरे आपदा संकट, संपत्ति की क्षति और सेवाओं में बाधा को बढ़ाते हैं और इससे मौजूदा ढांचे के काम बंद हो सकता है। रिपोर्ट में इस बात को रेखांकित किया गया है कि सालाना औसत क्षति (एएएल) का 30% जियोलॉजिकल हेजार्ड (बाढ़, इरोज़न और भूकंप जैसी आपदाएं) के कारण है लेकिन 70% क्षति के लिए क्लाइमेट हैजार्ड ज़िम्मेदार हैं।
सीडीआरआई दुनिया भर के देशों का एक साझा कार्यक्रम है जिसका लॉन्च 2019 में संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट एक्शन समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया।
यूरोपीय संघ के नए जलवायु प्रमुख ने रखा जेट फ्यूल पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव
डच राजनेता वोपके होकेस्ट्रा को यूरोपीय संघ का जलवायु प्रमुख चुने गए हैं। होकेस्ट्रा ने विमान के ईंधन समेत जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा है। उन्होंने कहा है कि इस टैक्स से लॉस एंड डैमेज फंड के लिए आवश्यक वित्त पैदा किया जा सकता है।
होकेस्ट्रा ने कहा कि यह अजीब है कि वाहनों की रीफ्यूलिंग पर 50-60 प्रतिशत टैक्स लगता है जबकि विमानों की रीफ्यूलिंग पर कोई टैक्स नहीं लगता।
दिलचस्प है कि होकेस्ट्रा पहले तेल की बड़ी कंपनी शेल से जुड़े रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन का प्रयोग जितनी जल्दी बंद कर दिया जाए उतना अच्छा होगा।
हालांकि जानकारों का कहना है कि होकेस्ट्रा के प्रस्ताव को बड़े पैमाने पर देशों का समर्थन मिलना मुश्किल है।
पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली सब्सिडी के खिलाफ बोले विश्व बैंक प्रमुख
विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा ने कृषि, जीवाश्म ईंधन और मछली पालन समेत कई क्षेत्रों में दी जा रही सब्सिडी को घटाने की अपील की है। माराकेश (मोरक्को) में विश्व बैंक और आईएमएफ की एक प्रेस वार्ता में बंगा ने कहा कि पूरी दुनिया में सरकारें कुल 1.25 लाख करोड़ डॉलर मूल्य की सब्सिडी इन क्षेत्रों में दे रही है जिसके कारण कुल 5 से 6 लाख करोड़ डॉलर मूल्य के पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं।
जलवायु परिवर्तन प्रभावों से लड़ने के लिए फंड की ज़रूरत है। बंगा ने कहा कि सभी सब्सिडी बंद नहीं की जा सकती क्योंकि सामाजिक सरोकारों के लिए कुछ सब्सिडी ‘मिशन-क्रिटिकल’ हैं लेकिन सरकारों द्वारा सवा लाख करोड़ डॉलर की सब्सिडी को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता।
जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों का कहना है कि बंगा ने जो कहा वह दिशा तो ठीक है लेकिन किसकी सब्सिडी कितनी कम होनी चाहिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा है जो समता और समानता (इक्विटी) के सिद्धांत से भी जुड़ा है।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क में ग्लोबल राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह कहते हैं, “गरीबों और किसानों को मिल रही सब्सिडी को विकासशील देशों में नहीं हटाया जा सकता उनको कुछ ना कुछ सहयोग देना ही होगा और यह बात काफी हद तक अब विकसित देशों के लिए भी सही है क्योंकि बढ़ते एनर्जी प्राइस के कारण कॉस्ट ऑफ लिविंग काफी बढ़ गई है।”
सिंह ने कहा, “हमें यह देखना चाहिए कि जो बड़ी कॉरपोरेशन्स हैं, विशेष रूप से तेल और गैस कंपनियां, वे इन सब्सिडीज से भरपूर मुनाफा कमा रही हैं और क्लाइमेट एक्शन के लिए तैयार नहीं है। समस्या को हल करने के लिए उसे पहचानना और तह तक जाना ज़रूरी है।”
जलवायु परिवर्तन: 15 सालों बाद भी तैयार नहीं हैं कई राज्यों के एक्शन प्लान
केंद्र सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन पर विशेषज्ञ समिति (ईसीसीसी) की स्थापना के 15 साल बाद भी कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अनुकूलन और शमन के लिए कोई रोडमैप तैयार नहीं किया है, सूचना के अधिकार (आरटीआई) से प्राप्त जानकारी में यह पता चला है।
साल 2007 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने ईसीसीसी का गठन किया था और उसके अगले साल एक राष्ट्रीय एक्शन प्लान जारी किया था। 2009 में केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से राज्य-स्तरीय एक्शन प्लान (एसएपीसीसी) बनाने के लिए कहा था। तबसे लेकर ईसीसीसी की 12 बैठकें हो चुकीं हैं, और पिछली आठ बैठकों के विवरण से पता चलता है कि ज्यादातर राज्यों में इन नीतियों लेकर स्पष्टता नहीं है, और जिन्होंने ऐसी नीतियां बनाई भी हैं उनके मसौदे अभी तक लंबित हैं। कर्नाटक का एक्शन प्लान पिछले दो साल से समिति के पास लंबित है। वहीं गुजरात, तमिलनाडु, गोवा, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य 2014 में जारी दिशानिर्देश अभीतक नहीं अपनाए हैं।
पिछले महीने 21 सितंबर को हुई बैठक में समिति ने राज्यों को फिर से इन दिशानिर्देशों की याद दिलाई।
भारत के सेमीकंडक्टर हब बनने की योजना पर जलवायु आपदा का खतरा: मूडीज़
दुनिया में बढ़ते राजनैतिक तनाव के कारण पश्चिमी देश चीन से दूरी बना रहे हैं। ऐसे में भारत अपने आप को इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग के एक “भरोसेमंद” विकल्प के रूप में पेश किया है। इसी दिशा में भारत ने घरेलू सेमीकंडक्टर निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। लेकिन रेटिंग एजेंसी मूडीज़ के रिस्क मैनेजमेंट सोल्युशन ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से भारत की योजनाएं खटाई में पड़ सकती हैं।
मूडीज़ ने एक ब्लॉग में कहा है कि भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में आत्मनिर्भरता लाने की नीतियों पर काम कर रहा है, लेकिन 2050 तक देश में बाढ़ का खतरा दोगुना बढ़ जाएगा। सेमीकंडक्टर इस समय वैश्विक बाजार में सबसे महत्वपूर्ण वस्तुओं में से एक हैं। यदि इनकी आपूर्ति ठप होती है कारों से लेकर कम्प्यूटरों तक की प्रोडक्शन लाइनें रुक जाएंगीं।
अमेरिकी चिप निर्माता माइक्रोन ने 23 सितंबर को गुजरात के साणंद औद्योगिक क्षेत्र में 2.75 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर परीक्षण और पैकेजिंग संयंत्र के पहले चरण का निर्माण शुरू किया है।
एक नए शोध से जापान के दो पर्वतों के ऊपर बादलों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का पता चला है। जापान के माउंट फ़ूजी और माउंट ओयामा के आसपास के बादलों में छोटे प्लास्टिक के टुकड़ों का स्तर चिंताजनक है, और यह उजागर करता है कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण कैसे लंबी दूरी तक फैल सकता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो सकता है और साथ ही “प्लास्टिक वर्षा” के माध्यम से फसलें और पानी संक्रमित हो सकते हैं।
यह शोध इन्वायरेंमेंटल कैमिस्ट्री लेटर्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ और लेखकों का विश्वास है कि बादलों में प्लास्टिक की मौजूदगी पता करने वाला यह पहला शोध है। शोधकर्ताओं द्वारा एकत्र किए गए नमूनों में प्लास्टिक इतना अधिक था कि ऐसा माना जा रहा है कि प्लास्टिक में से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से बादलों का निर्माण हुआ।
प्लास्टिक प्रदूषण पाँच मिलीमीटर से छोटे प्लास्टिक कणों से बना होता है जो क्षरण के दौरान प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों से निकलते हैं। निष्कर्ष इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे माइक्रोप्लास्टिक अत्यधिक गतिशील हैं और हवा और पर्यावरण के माध्यम से लंबी दूरी तय कर सकते हैं।
स्टॉकहोम सेंटर में पेट्रोल और डीजल कारों पर लगेगा प्रतिबंध
स्टॉकहोम ने वायु प्रदूषण और शोर को कम करने के लिए अपने केंद्र में पेट्रोल और डीजल कारों पर प्रतिबंध लगाने की योजना की घोषणा की है। यह प्रतिबंघ 2025 से लागू होगा। स्टॉकहोम के आंतरिक शहर क्षेत्र के 20 ब्लॉक्स में, जो इसके वित्त और मुख्य शॉपिंग जिलों तक फैले हुए हैं, केवल इलेक्ट्रिक वाहनों को ही अनुमति होगी।
हालांकि इसका उद्देश्य मुख्य रूप से केवल पूरी तरह से इलेक्ट्रिक कारों को अनुमति देना है, प्लग-इन हाइब्रिड इंजन वाली बड़ी वैन को भी अनुमति दी जाएगी, और एम्बुलेंस और पुलिस कारों के साथ-साथ उन कारों के लिए अपवाद बनाए जाएंगे जिनमें ड्राइवर या यात्री के पास विकलांग हैं।
ध्वनि प्रदूषण: ईद और गणेश चतुर्थी पर दर्ज किए गए 80 मामले
पुलिस ने पुणे में गणेश चतुर्थी और ईद के दौरान ध्वनि प्रदूषण के 80 मामले दर्ज किए। यह मामले व्यक्तिगत लोगों और पर्व के आयोजकों के खिलाफ दर्ज हुए। देर रात तक हुए आयोजन और लाउड स्पीकरों (डीजे) के प्रयोग से ध्वनि प्रदूषण के लिए तय नियमों को तोड़ने के लिए पुलिस ने केस दर्ज किए।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी के तय मानकों के हिसाब से आवासीय क्षेत्रों में शोर का स्तर दिन में 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए। कमर्शियल इलाकों में यह स्तर क्रमशः 65 और 55 डेसिबल है। पुलिस के मुताबिक कई जगह मानकों को तोड़ा गया और शहर में लगे 100 से अधिक रीडिंग रिकॉर्डरों में उल्लंघन पाया गया।
ग्रेट बैरियर रीफ पर प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है भूजल
वैज्ञानिकों ने यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल ग्रेट बैरियर रीफ के आसपास एक महत्वपूर्ण खोज की है जिससे पता चला है कि भूमिगत जल स्रोतों के माध्यम से रीफ में भारी प्रदूषण हो रहा है। नए शोध से संकेत मिलता है कि ग्रेट बैरियर रीफ के आसपास के पानी में लगभग एक-तिहाई घुली हुई अकार्बनिक नाइट्रोजन और दो-तिहाई घुली हुई अकार्बनिक फास्फोरस भूमिगत स्रोतों से उत्पन्न होती है। यह बात इस शोध से पहले अज्ञात थी।
ग्रेट बैरियर रीफ यानी मूंगे की विशाल दीवार ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है कई प्रजातियों और जैव विविधता का भंडार है। यह करीब 3.48 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली है और इसकी कुल लंबाई 2,300 किलोमीटर है। इसमें मूंगे के 400 प्रकार और मछलियों की 1,500 प्रजातियों के अलावा 4,000 तरह के स्नेल और मोलेस्क हैं।
खेतों से रीफ में प्रवाहित होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास सरकारों और एजेंसियों के लिए प्राथमिक चिंता का विषय रहा हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाली विरंजन या ब्लीचिंग के खिलाफ रीफ की सहन शक्ति और क्षमता को बढ़ाने के लिए पानी की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है।
ग्रीन हाइड्रोजन तकनीक के विकास पर 400 करोड़ खर्च करेगी सरकार
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लिए अनुसंधान और विकास रोडमैप जारी किया है। ग्रीन हाइड्रोजन के वाणिज्यिक उपयोग को सुगम बनाने के लिए सरकार 400 करोड़ रुपए खर्च करेगी।
इस रोडमैप में ऐसे मैटेरियल, तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर जोर दिया गया है जिससे ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन, स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट आसानी से हो सके। सरकार का कहना है कि इस रोडमैप में भारत को ग्रीन हाइड्रोजन तकनीक के शिखर पर ले जाने के लिए अनुसंधान पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
अक्षय ऊर्जा कंपनियों के शेयरों में आई भारी गिरावट
पिछले कुछ महीनों में जीवाश्म ईंधन कंपनियों के मुकाबले अक्षय ऊर्जा कंपनियों के शेयरों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। दुनिया की 100 सबसे बड़ी सौर, पवन और अक्षय ऊर्जा कंपनियों का सूचकांक एस&पी ग्लोबल क्लीन एनर्जी इंडेक्स, पिछले दो महीनों में 20.2 प्रतिशत गिर गया। वहीं बड़ी तेल और गैस कंपनियों के सूचकांक एस&पी 500 एनर्जी इंडेक्स में 6% का इज़ाफ़ा हुआ है।
अक्षय ऊर्जा कंपनियां बढ़ती ब्याज दरों से परेशान हैं, क्योंकि कई कंपनियां प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ही लंबी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट साइन कर बिजली की कीमतें तय कर लेती हैं। ऐसे में ब्याज दर बढ़ने पर उनके द्वारा लिया गया कर्ज महंगा हो जाता है, और उनका मुनाफा गिर जाता है। जिसकी भरपाई वह कीमतें बढाकर नहीं कर सकतीं।
एस&पी ग्लोबल क्लीन एनर्जी इंडेक्स 2013 के बाद अपने सबसे खराब प्रदर्शन की राह पर है।
एनर्जी ट्रांज़िशन: सरकार ने तय कीं आवश्यक खनिजों की रॉयल्टी दरें
केंद्रीय कैबिनेट ने क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए आवश्यक खनिजों (क्रिटिकल मिनरल्स) के खनन के लिए रॉयल्टी रेट तय कर दिए हैं।
लिथियम के खनन के लिए माइनिंग कंपनियों को लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में चल रही कीमतों का 3 प्रतिशत रॉयल्टी के रूप में देना होगा। नायोबियम के खनन के लिए रॉयल्टी दर औसत बिक्री मूल्य का 3 प्रतिशत तय की गई है; और आरईई, यानी रेयर अर्थ एलिमेंट्स के लिए रेयर अर्थ ऑक्साइड के औसत बिक्री मूल्य का 1 प्रतिशत रॉयल्टी के तौर पर देना होगा।
आरईई के तहत लगभग खनिज आते हैं, और देश के एनर्जी ट्रांज़िशन में लिथियम और नयोबियम समेत इनकी अहम भूमिका है।
पिछली तिमाही के मुकाबले सौर परियोजनाओं की नीलामी में मामूली इज़ाफ़ा
पिछले महीने समाप्त हुई इस साल की तीसरी तिमाही में देश में जारी किए गए सोलर टेंडरों में पिछले साल के मुकाबले 5% का इज़ाफ़ा हुआ है। हालांकि पिछली तिमाही के मुकाबले इनमें कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। सरकार ने अगले पांच साल तक हर साल 50 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ने का लक्ष्य रखा है, ताकि 2030 तक 500 गीगावाट ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य पूरा हो सके। लेकिन फिर भी सौर निविदाओं में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है।
जहां 2022 की तीसरी तिमाही के मुकाबले इस साल की तीसरी तिमाही में सोलर परियोजनाओं की नीलामी में 86% की बढ़ोत्तरी हुई, वहीं पिछली तिमाही के मुकाबले यह बढ़त केवल 4% थी।
ईवी बैटरी पर जारी रहेगा 18% जीएसटी, उद्योग की मांग खारिज
इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कम नहीं होगा, क्योंकि जीएसटी काउंसिल की फिटमेंट कमेटी ने उद्योग की इस मांग को खारिज कर दिया है। ईवी उद्योग की मांग थी कि बैटरी पर जीएसटी 18% से घटाकर 5% किया जाए। हालांकि फिटमेंट कमेटी ने पुराना रेट जारी रखने का सुझाव दिया है।
कमेटी ने कहा है कि लिथियम-आयन बैटरियों का प्रयोग ईवी के आलावा भी कई चीजों में होता है, जैसे मोबाइल फ़ोन, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि।
गौरतलब है कि इलेक्ट्रिक वाहनों पर 5% जीएसटी लगता है, लेकिन लिथियम-आयन बैटरी और चार्जिंग स्टेशनों पर 18% जीएसटी लगता है।
इस निर्णय के बावजूद ईवी इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि उद्योग का विकास होता रहेगा, भले ही इसकी दर में थोड़ी कमी आ जाए। साथ ही ईवी का प्रयोग तेजी से बढ़ाने के लिए उन्होंने सरकार से मदद भी मांगी है। वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार इलेक्ट्रिक कारों की लोकल मैन्युफैक्चरिंग को समर्थन देने की नीति पर काम कर रही है।
बंगलुरु में इलेक्ट्रिक कार में लगी आग, सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ीं
हाल ही में बंगलुरु में आग की लपटों में घिरी एक इलेक्ट्रिक कार का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होगया। गनीमत यह रही कि इस घटना में कोई हताहत नहीं हुआ। लेकिन इसने फिर से ईवी में आग लगने के खतरों की ओर ध्यान खींचा है।
हालांकि सैद्धांतिक रूप से ईवी में आग लगने की संभावना कम होती है, इस तरह की घटनाओं से अक्सर लोगों में इनकी सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ जाती है। आम तौर पर इन घटनाओं के पीछे बैटरी की अधिक एनर्जी डेंसिटी को कारण बताया जाता है। चूंकि बैटरी में छोटी सी जगह में बहुत एनर्जी स्टोर होती है, बैटरी पैक को नुकसान पहुंचने से शार्ट-सर्किट हो सकता है जो आग का कारण बनता है। दुर्घटना, खराबी या ओवरहीटिंग के कारण भी बैटरी में आग लग सकती है।
कारों की अपेक्षा इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों में आग लगने का खतरा अधिक होता है। ईवी की आग पर काबू पाने के लिए बैटरी पर सावधानीपूर्वक पानी डाला जाना चाहिए।
ईवी के बढ़ते प्रयोग के साथ होंगे पार्किंग स्थलों में बदलाव
दुनियाभर में ईवी का प्रयोग बढ़ने के साथ ही चार्जिंग स्टेशनों की उपलब्धता पर चर्चा होती रही है। लेकिन इस बदलाव का असर पार्किंग स्थलों पर भी होगा और उनमें भी परिवर्तन करने पड़ेंगें।
इसमें सबसे बड़ा कारक है इलेक्ट्रिक वाहनों का भारी वजन और बड़ा आकार। लंदन के इंस्टीट्यूशन ऑफ स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स ने कार पार्किंग की संशोधित डिजाइन के लिए गाइड भी प्रकाशित किया है। इसमें मल्टीलेवल और अंडरग्राउंड पार्किंग की संशोधित डिजाइन और रखरखाव की जानकारी है।
साथ ही पार्किंग में आग से बचाव के मापदंड भी बदलेंगे। जिनका पालन केवल नए नहीं बल्कि पुराने पार्किंग स्थलों को भी करना होगा।
अमेरिका स्थित थिंक टैंक ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) )का अनुमान है कि साफ ऊर्जा की ओर बढ़ते हुए 2050 तक कोयला क्षेत्र में 10 लाख से अधिक नौकरियां कम होंगी भले ही देश कोयले के प्रयोग को और फेज़ आउट न भी करें। इसलिये उन समुदायों को भरपूर सहयोग करना होगा जिनका रोज़गार कोयले से जुड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन में कोयला क्षेत्र में काम कर रहे सबसे अधिक लोगों की नौकरी खत्म होगी। जीईएम का कहना है कि अगर धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक रोकने के लिये कोयला फेज़ आउट की योजनाओं को लागू किया गया तो खदानों में वर्तमान क्षमता के 10% के बराबर श्रमिकों की ही ज़रूरत रह जायेगी।
भारत के करीब 40% ज़िलों की अर्थव्यवस्था किसी न किसी रूप में कोयले से जुड़ी है और अप्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आज करीब 36 लाख लोग कोयला क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इस कारण साफ ऊर्जा की ओर बढ़ते हुए जस्ट ट्रांजिशन यानी न्यायपूर्ण परिवर्तन की बड़ी ज़रूरत है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए आप कॉर्बनकॉपी की इस पॉडकास्ट सीरीज़ को सुन सकते हैं।
चीन के बाद रूस ने किया जीवाश्म ईंधन फेजआउट का विरोध
रूस ने चेतावनी दी है कि वह कॉप28 के दौरान जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करने के किसी भी वैश्विक समझौते का विरोध करेगा।
गौरतलब है कुछ समय पहले चीन ने भी कहा था कि जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करना व्यावहारिक नहीं होगा। रूस और चीन के इस रुख के साथ ही इस साल जलवायु महासम्मेलन के दौरान जीवाश्म ईंधन फेजआउट पर एक समझौते की उम्मीद बहुत कम है।
अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश चाहते हैं कि कॉप28 के पहले जीवाश्म ईंधन फेजआउट का एक टाइमलाइन बनाया जाए। हालांकि रूस ने संयुक्त राष्ट्र में दिए एक वक्तव्य में कहा है, “हम ऐसे किसी भी प्रावधान या स्थिति का विरोध करते हैं जो किसी भी तरह से भेदभाव करता है या किसी विशिष्ट ऊर्जा स्रोत या जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करने का आह्वान करता है।”
2030 तक बंद हो जीवाश्म ईंधन एक्सप्लोरेशन: यूएन रिपोर्ट
साल 2030 तक जीवाश्म ईंधन का एक्सप्लोरेशन, यानी खनन अथवा निष्कर्षण के लिए तेल, कोयले और गैस की खोज बंद हो जानी चाहिए, आगामी जलवायु सम्मलेन से पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट में यह प्रस्ताव किया गया है। यूएन की ग्लोबल स्टॉकटेक सिंथेसिस रिपोर्ट में यह भी प्रस्तावित है कि 2030 तक गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिए दी जाने वाली सहायता 200 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर हर साल 400 बिलियन डॉलर कर दी जाए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न देश 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने से अभी भी “बहुत दूर” हैं, और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए बहुत अधिक कार्रवाई की जरूरत है।
यह रिपोर्ट दुबई में नवंबर के अंत में शुरू होने वाले कॉप28 सम्मेलन में चर्चाओं का आधार बनेगी।
पोप फ्रांसिस ने जीवाश्म ईंधन कंपनियों को ग्रीनवॉशिंग के लिए लताड़ा
पोप फ्रांसिस ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अबतक का सबसे कड़ा रुख अपनाते हुए जीवाश्म ईंधन कंपनियों को फटकार लगाई है, और दुनियाभर के देशों से तुरंत अक्षय ऊर्जा में ट्रांज़िशन करने के लिए कहा है।
“लॉडेट डीयम” या “ईश्वर की स्तुति” नामक दस्तावेज़ में, पोप ने नई जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं को ग्रीनवॉश करने के लिए तेल और गैस कंपनियों की आलोचना की और कहा कि जलवायु संकट से निपटने के लिए पश्चिमी देशों को और अधिक महत्वाकांक्षी प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि “यदि वैश्विक तापमान में एक डिग्री के दसवें हिस्से की वृद्धि भी रोकी जाती है तो इससे कई लोगों की पीड़ा कम होगी”।
पोप फ्रांसिस ने कहा कि “जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बंद करके साफ़ ऊर्जा की ओर ट्रांज़िशन की गति पर्याप्त नहीं है”।