भारत 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है, जिसके लिए कोयले को चरणबद्ध तरीके से समाप्त (फेज आउट) करने की आवश्यकता है। इस एनर्जी ट्रांजिशन का कोयला श्रमिकों की आजीविका पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। यह प्रभाव विशेष रूप से झारखंड जैसे राज्यों में गंभीर होगा, जहां भारत की एक चौथाई से अधिक कोयले की खानें हैं।
झारखंड में ऊर्जा परिवर्तन के प्रभावों और कोयला श्रमिकों की वैकल्पिक आजीविका को लेकर दिल्ली स्थित थिंक-टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस सर्वे में पता चला कि ज़्यादातर श्रमिकों आसपास की खदान बंद होने, रोज़गार के दूसरे विकल्पों और कोयला उत्पादन कम करने जैसे मुद्दों पर जानकारी नहीं है। करीब 85% कोयला श्रमिक वैकल्पिक रोज़गार के लिए ट्रेनिंग चाहते हैं।
यह रिपोर्ट राज्य में कोयला खदानों और थर्मल ऊर्जा संयंत्रों में काम कर रहे 6,000 संगठित और असंगठित श्रमिकों के सर्वेक्षण पर आधारित है।
कोयले पर भारी निर्भरता
देश में 65% बिजली का उत्पादन कोयला बिजली संयंत्रों से होता है। 2021 में एक अध्ययन में पाया गया कि भारत के करीब 40 प्रतिशत जिले किसी न किसी रूप में कोयले पर निर्भर हैं। अध्ययन के मुताबिक भारत के 159 जिलों में कोयला खनन और बिजली क्षेत्रों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 36 लाख लोग कार्यरत हैं।
अध्ययन के अनुसार, भारत के 199 जिलों में लगभग पांच लाख ऐसे पेंशनभोगी हैं, जिनकी पेंशन कोयला उद्योग पर निर्भर है।
वहीं 2021 में ही किए गए एक और अध्ययन में कहा गया कि कोल फेजआउट से कोयला खनन, परिवहन, बिजली, स्पंज आयरन, स्टील और ईंट-निर्माण के क्षेत्रों में कार्यरत 1.3 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित होंगे। इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों पर पड़ेगा।
खनन क्षेत्र से जुड़े लोगों की वैकल्पिक आजीविका सुनिश्चित किए बिना खदानों को बंद करने से हजारों लोग प्रभावित होंगे। इसलिए, ज्यादातर श्रमिक और स्थानीय व्यवसायी नहीं चाहते कि कोयला खदानें बंद हों। उन्हें चिंता है कि वैकल्पिक रोजगार हासिल करने संभावनाएं कम हैं और उनका भविष्य अनिश्चित होगा।
श्रमिकों और स्थानीय व्यवसायियों के अलावा ट्रक चालक, रिपेयरिंग की दुकानें, अनौपचारिक श्रमिक आदि कई रोजगार हैं जो खनन पर निर्भर हैं। कोयला खदानों के आसपास के क्षेत्रों की पूरी अर्थव्यवस्था उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है।
क्या कहते हैं कोयला मजदूर
क्लाइमेट ट्रेंड्स के सर्वेक्षण में दो तरह के मत उभर कर आए, एक जिनका मानना है कि भारत में निकट भविष्य में कोल फेजआउट नहीं होगा, और दूसरे जो मानते हैं कि देश को तत्काल एक जस्ट ट्रांजिशन योजना बनाने की जरूरत है। सर्वे में ज्यादातर श्रमिकों का यही मानना रहा कि झारखंड में कोल फेजडाउन नहीं होगा। इससे यह भी पता चलता है कि ज्यादातर श्रमिकों ने आजीविका के किसी वैकल्पिक स्रोत के बारे में नहीं सोचा है। इसलिए इनके लिए जस्ट ट्रांजिशन योजना का महत्व और बढ़ जाता है।
लगभग 59% श्रमिकों को अपने आसपास की कोयला खदानों के बंद होने की कोई जानकारी नहीं थी, वहीं 87% बिजली संयंत्रों के बंद होने के बारे में नहीं जानते थे। केवल 14% श्रमिकों को भविष्य में कोयले का उत्पादन कम करने की सरकार की योजना के बारे में पता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला खनन से जुड़े 35% श्रमिक ऐसे हैं जिनके पास रोजगार बंद होने की स्थिति में घर चलाने के लिए कोई बचत नहीं है; लगभग 85% श्रमिकों ने वैकल्पिक रोजगार के लिए स्किलिंग या रीस्किलिंग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने की इच्छा जताई।
कौशल का अभाव
लगभग 45% श्रमिकों का मानना था कि उनके पास अपनी पसंद के वैकल्पिक क्षेत्र में काम करने के लिए जरूरी कौशल नहीं है। 94 फीसदी श्रमिकों ने बताया कि उन्होंने कभी किसी प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग नहीं लिया।
ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि इन श्रमिकों के वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था कैसे होगी?
हालांकि कई नीति निर्माता मानते हैं कि कोयला श्रमिकों को नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में पुनर्वासित किया जा सकता है, झारखंड में नवीकरणीय क्षेत्र की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। इसके अलावा, नवीकरणीय क्षेत्र में जिस प्रकार के कौशल की जरूरत है वह कोयला श्रमिकों में कम है। केवल 24% श्रमिकों ने नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित प्रशिक्षण में भाग लिया है।
अध्ययन में कोयला श्रमिकों ने वैकल्पिक रोजगार के लिए कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, अन्य खनिजों के लिए खनन, निर्माण, शिक्षा और सेवा जैसे क्षेत्रों का रुख करने का संकेत दिया; 32% श्रमिकों की पहली पसंद कृषि है; 30% ने मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को अपनी दूसरी पसंद के रूप में चुना और 27% ने अन्य खनिजों के खनन को अपनी तीसरी पसंद के रूप में चुना। वहीं झारखंड की अर्थव्यवस्था के अनुकूल उद्योगों में कृषि-वानिकी, पर्यटन और हस्तशिल्प शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैकल्पिक आजीविका के लिए श्रमिकों की पसंद के हिसाब से देखा जाना चाहिए कि झारखंड की अर्थव्यवस्था के अनुसार क्या उन क्षेत्रों में उन्हें रोजगार दे पाना संभव है।
जरूरी है कि राज्य में उभरते क्षेत्रों की पहचान की जाए और देखा जाए कि वह कोयला श्रमिकों को कितने रोजगार दे सकते हैं।
रिपोर्ट कहती है कि 82% श्रमिक वैकल्पिक आजीविका के अवसरों की तलाश में झारखंड के भीतर प्रवास करने को भी तैयार हैं।
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