एक और चेतावनी: IPCC की ताज़ा रिपोर्ट ने मानवता पर मंडरा रहे ख़तरे को फिर से ज़ाहिर किया है। वक़्त निकला जा रहा है लेकिन विश्व के तमाम बड़े देश अब भी सच से मुंह छुपा रहे हैं। फोटो - Shutterstock

कार्बन उत्सर्जन नहीं घटा तो समंदर में समा जायेंगे कई शहर: IPCC

एक साल के भीतर जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ पैनल (IPCC) की एक और रिपोर्ट आ गई है। समुद्र और क्रायोस्फियर पर क्लाइमेट चेंज के असर को बताने वाली यह रिपोर्ट भी मानवता के लिये कड़ी चेतावनी लेकर आई है।  रिपोर्ट के मुताबिक इसी रफ्तार से धरती की तापमान वृद्धि होती रही तो सदी के अंत तक समुद्र का जल स्तर 1.1 मीटर तक ऊपर उठ सकता है। इससे मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और सूरत जैसे शहरों के डूबने का ख़तरा है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में करीब 140 करोड़ लोगों को विस्थापित करना पड़ेगा। अगर तापमान वृद्धि को 2 डिग्री के भीतर भी रखा गया तो भी समुद्र सतह में 30 से 60 सेंटीमीटर की बढ़त होगी।

इस हालात से बचने के लिये सभी देशों को कार्बन उत्सर्जन में तेज़ी से और भारी कटौती करनी होगी। पिछले साल अक्टूबर में प्रकाशित हुई IPCC रिपोर्ट में कहा गया था कि 2030 तक दुनिया को 2010 के उत्सर्जन के मुकाबले 45% उत्सर्जन घटाने होंगे और साल 2050 तक दुनिया को कार्बन न्यूट्रल (नेट इमीशन ज़ीरो) करना होगा। आज चीन, अमेरिका, भारत, रूस और यूरोपियन यूनियन सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों में हैं।

संयुक्त राष्ट्र से शिकायत करने वाले किशोरों में उत्तराखंड की रिद्धिमा पांडे भी

स्वीडन की छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने क्लाइमेट चेंज को लेकर विश्व नेताओं के साथ पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। लेकिन ग्रेटा इस जंग में अकेली नहीं हैं।  दुनिया के 16 छात्रों ने बाल अधिकारों के हनन के लिये संयुक्त राष्ट्र में विशेष रूप से 5 देशों – अर्जेंटीना, ब्राज़ील, फ्रांस, जर्मनी और टर्की – के खिलाफ शिकायत की। इनमें से एक उत्तराखंड की 11 वर्षीय छात्रा रिद्धिमा पांडे भी हैं। रिद्धिमा भी आने वाले वक्त में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षेत्र में जागरूकता फैलाना चाहती है।

अमेरिका और कनाडा में पक्षी ख़तरे में

उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में चिड़ियों की तमाम प्रजातियां खतरे में हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 1970 से अब तक, यानी पिछले 50 साल में अमेरिका और कनाडा में कुल पक्षियों का कोई 29% यानी करीब 300 पक्षी कम हो गये हैं। पक्षियों की संख्या में यह कमी हर तरह के हैबिटेट – चरागाह, समुद्र तट या फिर मरुस्थल – में हो रही है। हालांकि इस शोध में पक्षियों की घटती संख्या का कोई एक स्पष्ट और निर्णायक कारण तो नहीं बताया गया है लेकिन उनके बसेरे (हैबिटेट) में इंसानी अतिक्रमण को वजह माना गया है।

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