Vol 1, Dec 2022 | प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के नए दुष्प्रभाव हुए उजागर

Newsletter - December 10, 2022

पिघलते ग्लेशियर: लद्दाख में द्रास क्षेत्र के 77 ग्लेशियर पिछले 20 साल में औसतन सवा मीटर पतले हो गए हैं। फोटो - Bernard Gagnon_wikimediaCommons

रिसर्च: पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियरों पर ग्लोबल वॉर्मिंग और ब्लैक कार्बन का बढ़ता प्रभाव

एशिया के वॉटर टावर कहे जाने वाले हिमालयी ग्लेशियरों पर ग्लोबल वॉर्मिंग का संकट लगातार बढ़ रहा है। एक नये अध्ययन में पता चला है कि ब्लैक कार्बन और वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं और उनकी सफेदी घट रही है। वैज्ञानिकों ने लद्दाख के द्रास क्षेत्र में 77 ग्लेशियरों का उपग्रह से मिले आंकड़ों के आधार पर मूल्यांकन किया और पाया कि 2000 से 2020 के बीच ये सभी ग्लेशियर औसतन 1.27 मीटर पतले हो गए हैं। 

यह भी पाया गया है कि बढ़ते तापमान के अलावा द्रास के इस क्षेत्र में ब्लैक कार्बन 330 नैनोग्राम से बढ़कर 680 नैनोग्राम हो गया है। वेब पत्रिका मोंगाबे हिन्दी में आप ग्लोबल वॉर्मिंग और ब्लैक कार्बन के ग्लेशियरों पर पड़ रहे प्रभाव के बारे में विस्तृत रिपोर्ट पढ़ सकते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र समर्थिक रिपोर्ट ने कहा – ग्रेट बैरियर रीफ को संकटग्रस्ट विश्व धरोहर घोषित किया जाये

दुनिया की सबसे विशाल मूंगे की दीवार (जिसे ग्रेट बैरियर रीफ कहा जाता है) के लिये संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से चलाये गये अभियान ने निष्कर्ष निकाला है कि दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली को “विश्व की संकटग्रस्त धरोहरों” की सूची में रखा जाना चाहिये। इस साल मार्च में ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के पास स्थित इस मूंगे की दीवार पर 10 दिन का अध्ययन किया गया था और उस मिशन की रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि जलवायु परिवर्तन उन विलक्षण खूबियों के लिये ख़तरा पैदा कर रहा है जिनकी वजह से 1981 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया था। 

ग्रेट बैरियर रीफ क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट के समानांतर है और मूंगे की इस विशाल दीवार की लंबाई करीब 1200 मील और मोटाई 10 से 90 मील तक है। मिशन ने अपनी रिपोर्ट में 22 सिफारिशें की है जिनमें 10 प्राथमिकता वाले ऐसे महत्वपूर्ण कदम सुझाये हैं जिन्हें आपातकालीन स्थिति मान कर उठाया जाना होगा। हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने संयुक्त राष्ट्र और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के इस सुझाव का विरोध किया है कि ग्रेट बैरियर रीफ को संकटग्रस्त विश्व धरोहर माना जाये। जानकारों के मुताबिक संकटग्रस्त लिस्ट में शामिल करने से  ग्रेट बैरियर रीफ की निगरानी बढ़ेगी और पर्यावरण संरक्षण के कड़े कदम उठाने होंगे और इस कारण विकास परियोजनाओं और प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ सकता है जो राजनीतिक रूप से ऑस्ट्रेलियाई सरकार के लिये परेशान करने वाली बात होगी। 

गरीब देशों में चक्रवातों से बढ़ रहा हृदय रोग! 

क्या बढ़ते चक्रवाती तूफानों और उसके कारण हो रही विनाश लीला का असर इंसान के स्वास्थ्य पर इतना अधिक हो सकता है कि वह हृदय रोग का शिकार होने लगे। एक नई रिसर्च बताती है कि गरीब देशों में बार-बार आ रहे चक्रवाती तूफान और इस कारण विस्थापन और क्षति से होने वाले तनाव की वजह से हृदय रोग बढ़ रहे हैं। यह रिसर्च अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के मैलकम स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने किया है। 

इस शोधकर्ताओं ने पाया कि ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात के प्रभाव सार्वजनिक स्वास्थ्य और हृदय रोगों से कही आगे तक पहुंचते हैं। ये चक्रवात मानसिक स्थिति, श्वसन, संक्रामक और परजीवी रोगों तक को फैलाते हैं। शोधकर्ता ने कहा कि अक्सर लंबे समय तक चलने वाले मानसिक रोगों को कमतर आंका जाता है और इस पर अधिक गहनता से अध्ययन करने की आवश्यकता है। 

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 10 करोड़ से अधिक लोग इस साल जबरन विस्थापित हुये 

संयुक्त राष्ट्र के डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) के मुताबिक साल 2022 में 10 करोड़ से अधिक लोग जबरन विस्थापित किये गये।  इन लोगों को विस्थापित होने के बाद न तो सम्मानजनक काम मिला और न ही  आय का कोई स्थायी ज़रिया। रिपोर्ट बताती है कि साल 2021 के अंत में ही करीब 6 करोड़ लोगों को अपने देश की सीमाओं के भीतर ही संघर्ष, हिंसा, आपदा और जलावायु परिवर्तन जनित कारणों से विस्थापित हो चुके थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंरिक पलायन रोकने के लिये लम्बी अवधि के विकास कार्यक्रम बनाने होंगे। विश्व बैंक के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक पूरी दुनिया में करीब 21.6 करोड़ लोगों को अपने देश के भीतर एक जगह से दूसरी जगह पलायन करना पड़ सकता है। 

नियमों में बदलाव: केंद्र सरकार ने समुद्र तट में अस्थाई निर्माण के लिये कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन में ढील दी है। फोटो - Rakesh_wikimediacommons

टूरिज्म को बढ़ाने के इरादे से संवेदनशील समुद्र तटीय क्षेत्र में अस्थायी निर्माण के बदले नियम

केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी कर इस बात की अनुमति दी है कि मॉनसून के अलावा साल के बाकी महीनों में अस्थायी झोपड़े या खोमचे और ढांचे उन समुद्र तटों पर खड़े किये जा सकते हैं जहां ज्वार आता हो। नये नोटिफिकेशन के मुताबिक सरकार ने समुद्र तटों पर सेंडबार यानी रेत की प्राकृतिक बाढ़ जैसी संरचना को हटाने की अनुमति भी दी है। सरकार ने कोस्टल रेग्युलेशन ज़ोन नियमों में बदलाव के तहत ये घोषणा की है जिसके पीछे पर्यटन को बढ़ाने का इरादा है हालांकि पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि संवेदनशील समुद्र तटीय इलाकों के लिये बनाये गये नियमों के महत्व को समझने की ज़रूरत है। 

धरती के इकोसिस्टम को बचाने के लिये 2025 तक निवेश को पहुंचाना होगा 384 बिलयन डॉलर प्रतिवर्ष  

कनाडा के मॉन्ट्रियल में जैव विविधता संरक्षण पर वार्ता के लिये 190 से अधिक देशों के सम्मेलन से ठीक पहले संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में जैव विविधता कार्यक्रमों के लिये फाइनेंस की कमी को रेखांकित करती एक रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु संकट को साधने के लिये साल 2025 तक जिन प्रकृति आधारित कार्यक्रमों को लागू किया जाना है उनमें वित्त प्रवाह दोगुना करना होगा। 

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से दुनिया के तमाम इकोसिस्टम बचाने हैं तो उनको संरक्षित करने के लिये बड़ी धनराशि व निवेश चाहिये। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम (यूएनईपी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये साल 2025 तक इस तरह के कुल सालाना निवेश 384 बिलियन डॉलर हो जाने चाहिये। यह अभी हो रहे निवेश से लगभग दोगुना है। इसी हफ्ते कनाडा में चल रहे  जैवविवधता सम्मेलन में इस रिपोर्ट के निष्कर्षों को रखा जायेगा। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मत्स्य पालन, कृषि और जीवाश्म ईंधन के लिये अभी 500 बिलयन से 1 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष की सब्सिडी दी जा रही है जो कि बायोडायवर्सिटी को क्षति पहुंचा सकती है। 

कनाडा में यह सम्मेलन 7 से 19 दिसंबर तक हो रहा है जहं भारत ने “लिविंग इन हारमॉनी विथ नेचर” को अपनी थीम बनाया है। भारत दुनिया के 100 देशों के साथ साल 2030 तक धरती की 30% भूमि और 30% समुद्र को संरक्षित करने का लक्ष्य आगे बढ़ा रहा है। 

 “कुछ भी हो” केरल सरकार खड़ी रहेगी अडानी के प्रोजेक्ट के साथ

मछुआरों के तीखे विरोध केरल में कम्युनिस्ट सरकार का कहना है कि “कुछ भी हो” वह गौतम अडानी ग्रुप के 90 करोड़ डॉलर के प्रोजेक्ट के साथ खड़ी रहेगी। केरल सरकार के जहाजरानी मंत्री अहमद देवरकोविल ने यह बात कही है। पिछले चार महीने से मछुआरा समुदाय ने त्रिवेन्द्रम के पास निर्माणाधीन विझिंजम पोर्ट प्रोजेक्ट पर काम रोका हुआ है। मछुआरा समुदाय ने पोर्ट पर एक अस्थायी तम्बू लगा दिया है और यह विरोध प्रदर्शन कैथोलिक पादरियों की अगुवाई में हो रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इतने विशाल पोर्ट के बनने से तट का क्षरण होगा और मछुआरों की रोज़ी खत्म हो जायेगी। राज्य सरकार ( जो कि पोर्ट की लागत का दो-तिहाई भार उठा रही है) ने इन आरोपों का खंडन किया है। पिछले हफ्ते करीब 100 लोग यहां हुई झड़पों में घायल हुये जिनमें 64 पुलिसकर्मी थे। 

जानलेवा प्रदूषण: 2015 में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में पीएम2.5 कणों के संपर्क में आने के कारण 40 प्रतिशत बच्चे मृत पैदा हुए। फोटो - _ki.nzica_flickr

वायु प्रदूषण से हर साल गर्भ में ही दम तोड़ देते हैं करीब 10 लाख बच्चे: अध्ययन

एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में हर साल लगभग दस लाख बच्चे गर्भ में मर जाते हैं। 

अबतक जाना जाता रहा है कि वायु प्रदूषण से मृत बच्चे पैदा होना का जोखिम बढ़ जाता है, लेकिन गर्भावस्था में ही बच्चों की मृत्यु का आकलन करने वाला यह पहला शोध है। नए अध्ययन के अनुसार, पिछले 10 एक सालों से इस समस्या से निबटने के बीजिंग के प्रयासों के बावजूद, चीन में सूक्ष्म पर्टिकुलेट मैटर हर साल गर्भ में 64,000 बच्चों की जान ले लेते हैं। 

137 देशों के विश्लेषण से पता चला है कि 2015 में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में 2.5 माइक्रोन (पीएम2.5) से छोटे कणों के संपर्क में आने के कारण 40 प्रतिशत बच्चे मृत पैदा हुए। यह कण ज्यादातर जीवाश्म ईंधन जलने से उत्पन्न होते हैं। 

अध्ययन में पाया गया कि 2015 में पीएम 2.5 के कारण 217,000 गर्भस्थ शिशुओं की मौत के साथ भारत इस मामले में पहले स्थान पर था, दूसरे स्थान पर पाकिस्तान, तीसरे पर नाइजीरिया और चीन चौथे स्थान पर था। 

2015 में जिन देशों का अध्ययन किया गया उनमें 20 लाख से अधिक ऐसे मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्देशित स्तर 10μg/m3 से अधिक पीएम2.5 के संपर्क में आने से हुईं।

शोध: वायु प्रदूषण से बढ़ता है कई दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा

एक अध्ययन के अनुसार, यातायात संबंधी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से कई दीर्घकालिक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े होने को लेकर किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है, जो इंग्लैंड में 3.6 लाख से अधिक लोगों पर किया गया है। 

फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि यातायात संबंधी वायु प्रदूषण — पीएम2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड — के उच्च स्तर  से कम से कम दो दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है।

सबसे अधिक खतरा न्यूरो, सांस और दिल की बीमारियों तथा मानसिक समस्याओं जैसे अवसाद और चिंता के एक साथ होने का पाया गया।  

किंग्स कॉलेज लंदन में रिसर्च एसोसिएट और शोध की लेखक एमी रोनाल्डसन के मुताबिक, “हमारे शोध ने संकेत दिया है कि जो लोग उच्च यातायात-संबंधी वायु प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं, उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याओं के एक साथ होने का खतरा अधिक होता है”

सीपीसीबी ने 131 शहरों में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग के लिए केंद्रीय निधि के  इस्तेमाल पर लगाई रोक

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देश में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग के लिए केंद्र सरकार का फंड प्रयोग करने पर पाबंदी लगा दी है

एचटी के अनुसार सीपीसीबी ने 131 नॉन-अटेनमेंट शहरों (यानी ऐसे शहर जो 5 वर्षों के लिए वायु गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते) से कहा है कि वह केंद्रीय निधि का उपयोग करके वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों की खरीद बंद करें।

सीपीसीबी के आदेश से ऐसे शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी प्रभावित होगी जिनके पास रीयल-टाइम मॉनिटरिंग के साधन कम हैं। विशेषकर गंगा के मैदानों (आईजीपी क्षेत्र) में, जहां उच्च वायु प्रदूषण स्तर रिकॉर्ड किया जाता है।

आईजीपी क्षेत्र में कुछ शहरों में दो से पांच रीयल टाइम मॉनिटर हैं। उदाहरण के लिए, कानपुर में चार मॉनिटर हैं; पंजाब के बठिंडा में एक स्टेशन है; पूरे झारखंड में एक स्टेशन है; गुरुग्राम और फरीदाबाद में केवल चार स्टेशन हैं।

वायु गुणवत्ता आयोग ने दिल्ली-एनसीआर में लगे प्रतिबंधों को हटाया, लेकिन डीजल ऑटो हुए बैन

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के चरण तीन को समाप्त कर दिया है, जिसका अर्थ है निर्माण, विध्वंस और बीएस-IV पेट्रोल और बीएस-III डीजल वाहनों पर लगे प्रतिबंध को अब हटा दिया जाएगा।

इससे पहले सरकार ने राजधानी के आसपास के क्षेत्रों में डीजल ऑटो रिक्शा के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने कहा कि 1 जनवरी से राजधानी के आसपास के क्षेत्र जो हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आते है वहां डीजल से चलने वाले किसी भी नए रिक्शा का पंजीकरण नहीं किया जाएगा।

हरित ऊर्जा की ओर: 2022-2027 की अवधि में वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता 2,400 गीगावाट बढ़ने की उम्मीद है।

500 गीगावॉट अक्षय क्षमता की निकासी के लिए रु. 2 लाख करोड़ की लागत से स्थापित होगी ट्रांसमिशन प्रणाली

साल 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की निकासी के लिए केंद्र सरकार ने एक व्यापक योजना जारी की है। इस योजना की अनुमानित लागत 29.64 बिलियन डॉलर, यानी करीब  2.44 लाख करोड़ रुपए होगी।  

मेरकॉम के अनुसार उक्त क्षमता की निकासी के लिए जिस पावर ट्रांसमिशन प्रणाली की जरूरत होगी उसमें 8,120 सर्किट किलोमीटर उच्च वोल्टेज डीसी ट्रांसमिशन लाइनें, 25,960 सर्किट किलोमीटर 765 केवी एसी लाइनें, 15,758 किलोमीटर 400 केवी और 220 केवी केबल के 1,052 सर्किट किलोमीटर आवश्यक होंगें।     

गुजरात और तमिलनाडु में 10 गीगावॉट अपतटीय पवन ऊर्जा की निकासी के लिए ट्रांसमिशन प्रणाली भी 280 अरब रुपयों की लागत से बनाई जाएगी। इस  प्रणाली की स्थापना के बाद 2030 तक अंतर्क्षेत्रीय क्षमता वर्तमान 112 गीगावॉट से बढ़कर 150 गीगावॉट हो जाने की उम्मीद है।

केंद्र ने 2030 तक 51.5 गीगावॉट बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली स्थापित करने की योजना भी बनाई है।

वैश्विक नवीकरणीय क्षमता अगले पांच वर्ष में होगी दोगुनी: रिपोर्ट

आईईए की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा संकट ने वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापना को गति दी है, और इसकी कुल क्षमता अगले पांच वर्षों में लगभग दोगुनी हो जाएगी।

आईईए ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2025 तक, अक्षय ऊर्जा बिजली उत्पादन के सबसे बड़े स्रोत के रूप में कोयले से आगे निकल जाएगी, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की संभावना को “जीवित रखने” में मदद मिलेगी।

रूस के यूक्रेन पर आक्रमण ने देशों को आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा — जैसे सौर और पवन — की ओर  जाने को मजबूर किया है। आईईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-2027 की अवधि में वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता 2,400 गीगावाट बढ़ने की उम्मीद है, जो आज चीन की संपूर्ण ऊर्जा क्षमता के बराबर है।

लगातार गिरावट के बाद 2010 के बाद पहली बार बढ़ी बैटरी की कीमतें: बीएनईएफ

2010 से लगातार गिरने के बाद, लिथियम-आयन बैटरी की औसत कीमतें इस वर्ष बढ़कर $151/किलोवाट ऑवर हो गई हैं, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 7% अधिक है। बीएनईएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि कीमतें 2024 में फिर से गिरना शुरू होंगी, और 2026 तक $100/किलोवाट ऑवर हो जाएंगी।

कीमतों में बढ़ोतरी के लिए कच्चे माल और बैटरी कंपोनेंट की लागत में बढ़ोतरी और बढ़ती महंगाई को जिम्मेदार ठहराया गया है। बैटरी की कीमतें सबसे कम चीन में ($127/केएचडब्ल्यू) हैं, जबकि अमेरिका में इनकी कीमत चीन की तुलना में 24% और यूरोप में 33% अधिक है।

जुलाई-सितंबर के दौरान भारत में ओपन एक्सेस सौर क्षमता 91% बढ़ी

मेरकॉम रिसर्च इंडिया के अनुसार, जुलाई-सितंबर की अवधि के दौरान भारत में ओपन एक्सेस सौर क्षमता 91 प्रतिशत बढ़कर 596 मेगावाट हो गई। मेरकॉम ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत ने एक साल पहले इसी अवधि में 312 मेगावाट सौर ओपन एक्सेस क्षमता स्थापित की थी। 

ओपन एक्सेस सौर ऊर्जा एक ऐसी व्यवस्था है जहां एक बिजली उत्पादक सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करके उपभोक्ताओं को हरित ऊर्जा की आपूर्ति करता है।

साल 2022 के पहले नौ महीनों में भारत ने लगभग 1.9 गीगावॉट ओपन एक्सेस सौर क्षमता स्थापित की, जो 2021 के जनवरी-सितंबर में स्थापित 956 मेगावाट से 96 प्रतिशत अधिक है, रिपोर्ट ने कहा।

रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2022 तक ओपन एक्सेस सेगमेंट में कुल स्थापित सौर क्षमता 7 गीगावॉट से अधिक थी, जबकि विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से 5 गीगावॉट से अधिक क्षमता और स्थापित की जानी है।

ईवी से होगी डिलीवरी: अप्रैल 2020 से अब तक ईवी स्टार्टअप्स में 160 मिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया जा चुका है। फोटो - TruckPR_flickr

कंपनियों में सर्विस के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल का चलन बढ़ा

भारत में ई-कॉमर्स और लॉजिस्टिक्स कंपनियां उत्सर्जन में कटौती करने और ईंधन की बढ़ती कीमतों से निबटने के लिए तेजी से अपने सर्विस वाहनों को विद्युतीकृत करने को तैयार हैं, जिससे उभरते इलेक्ट्रिक-वाहन-एस-ए-सर्विस (ईवास) क्षेत्र की संभावनाएं बढ़ रही हैं।

एक निजी कंपनी डेटाबेस प्लेटफॉर्म क्रंचबेस के अनुसार, अप्रैल 2020 से अब तक इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) स्टार्टअप्स में 160 मिलियन डॉलर (करीब 1280 करोड़ रुपए) से अधिक का निवेश किया गया है। उससे पहले यह राशि 7 मिलियन डॉलर (लगभग 56 करोड़ रुपए) ही थी।

पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ, लॉजिस्टिक्स कंपनियों द्वारा ईवी का प्रयोग सामाजिक और आर्थिक रूप से भी लाभकारी है, क्योंकि ईवी की परिचालन लागत 70% कम है। हालांकि, लॉजिस्टिक्स के लिए सही उत्पादों की कमी, ईवी का कम भरोसेमंद होना और अस्थिर रीसेल वैल्यू आदि कुछ चुनौतियां भी हैं।

ओडिशा की नजर ई-वाहन क्षेत्र में निवेश पर

पिछले साल अपनी इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) नीति शुरू करने के बाद, ओडिशा सरकार इलेक्ट्रिक वाहन और घटक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश के लिए मेक इन ओडिशा (एमआईओ) कॉन्क्लेव 2022 पर नजर गड़ाए हुए है। सरकार इसके ज़रिए निवेशकों को लुभाना चाहती है। ओडिशा सरकार की ईवी नीति में आगामी पांच वर्षों में खरीदारों के लिए रोड टैक्स और पंजीकरण शुल्क में छूट के साथ-साथ लोन में सब्सिडी के प्रावधान भी प्रस्तावित हैं। ईवी निर्माण और खरीद के साथ पुराने वाहन हटाने पर भी वित्तीय प्रोत्साहन प्रस्तावित है।

ईवी खरीदारों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और सब्सिडी के अलावा, राज्य की ईवी नीति में नई सूक्ष्म और लघु कंपनियों के लिए 1 करोड़ रुपए तक के पूंजी निवेश का प्रावधान है, जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं, विकलांगों, और तकनीकी डिप्लोमा धारकों द्वारा संचालित संस्थाओं के लिए 1.2 करोड़ रुपए तक के पूंजी निवेश का प्रावधान है और पिछड़े क्षेत्रों में विकसित नए उद्योग 15% पूंजी निवेश सब्सिडी के पात्र होंगे। 

प्रस्तावित बैटरी स्वैप सब्सिडी को ईवी मानकों से जोड़ने की संभावना नहीं

भारत जल्द ही बैटरी स्वैपिंग सब्सिडी की घोषणा करने वाला है, लेकिन इसे किसी प्रकार के मानकों से जोड़े जाने की संभावना नहीं है। 

मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा कि बैटरी स्वैपिंग की नीति को पहले ही अंतिम रूप दे दिया गया है, और इसे जल्द ही अधिसूचित किया जाएगा। हालांकि, मौजूदा इलैक्ट्रिक वाहन निर्माता एक ही तरह के स्वैपिंग मानकों के पक्ष में नहीं हैं और उन्होंने इंटरऑपरेबिलिटी को लेकर चिंता जताई है। 

ऐसा माना जा रहा है कि नए इंटरऑपरेबल भारतीय मानक सभी निर्माताओं के लिए एक समान अवसर सुनिश्चित करेंगे क्योंकि कोई भी निर्माता भारतीय मानकों की आवश्यकताओं के अनुसार अपने उत्पाद को डिजाइन कर सकता है। 

एक अधिकारी के अनुसार, बैटरी स्वैपिंग इकोसिस्टम पर एकाधिकार से बचना एक मुख्य उद्देश्य है। इंटरऑपरेबल मानक ग्राहकों को यह सुविधा प्रदान करेंगे कि वह निकटवर्ती बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों तक आसानी से पहुंच सकें।

परमाणु की ओर: एनटीपीसी लिमिटेड एक बड़े पैमाने पर परमाणु बेड़े का निर्माण करने की योजना बना रहा है जो देश को कोयले से दूर जाने में मदद करेगा। Photo: Getsuhas08_wikimediacommons_

विकार्बनीकरण के लिए परमाणु ऊर्जा की ओर मुड़ रहा है एनटीपीसी

भारत के सबसे बड़े बिजली उत्पादक, नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) विकार्बनीकरण के लिए  परमाणु ऊर्जा का रुख कर रहा है । एनटीपीसी की परमाणु ऊर्जा क्षमता बहुत हद तक छोटे पैमाने के मॉड्यूलर रिएक्टरों या एसएमआर पर निर्भर करेगी, जिसका उपयोग वह 2040 तक 30-40 गीगावाट  की क्षमता बनाने के लिए करेगी। यद्यपि एसएमआर तकनीक अभी भी अपेक्षाकृत नई है और इसकी आर्थिक प्रतिस्पर्धा का परीक्षण नहीं किया गया है, यह पूंजीगत लागत को कम करने के लिए लाभदायक है। 

ब्राजील की आगामी सरकार बोल्सनारो सरकार के गैस बिजली संयंत्रों, पाइपलाइनों को करेगी रद्द

ब्राजील में आने वाली सरकार मौजूदा बोल्सोनारो सरकार द्वारा नियोजित गैस बिजली संयंत्रों और पाइपलाइनों को रद्द करने पर विचार कर रही है। नई पर्यावरण मंत्री मरीना सिल्वा ने ट्वीट किया कि आने वाली सरकार इन फैसलों को वापस लेने पर विचार कर रही है। बोलसनारो सरकार ने पिछले साल आपूर्ति के लिए पाइपलाइनों के साथ देश के उत्तर-पूर्व में 8 गीगावाट  गैस बिजली संयंत्र बनाने की योजना की घोषणा की थी। सिल्वा ने इन परियोजनाओं की लागत को ट्वीट करते हुए कहा कि इन्हें खत्म करने से आने वाली लूला डी सिल्वा सरकार चार साल के दौरान 22 अरब डॉलर की बचत कर सकेगी।

रूसी तेल पर जी-7 मूल्य सीमा लागू हुई

रूसी समुद्री तेल पर जी-7 देशों द्वारा निर्धारित मूल्य कैप इस सप्ताह की शुरुआत में लागू किया गया। यूक्रेन युद्ध के लिए मास्को की वित्तीय क्षमता को सीमित करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया है। मूल्य कैप के तहत 60 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल की सीमा निर्धारित की गई है लेकिन रूस ने इस सीमा का पालन करने से इनकार कर दिया है।

यह कैप यूरोपीय संघ, अमेरिका, कनाडा, जापान और यूके द्वारा लागू रूसी तेल पर अन्य प्रतिबंधों के अतिरिक्त है। यह कैप केवल जी-7 या यूरोपीय संघ के टैंकरों और वित्तीय संस्थानों का उपयोग करके रूसी तेल को विदेशों में ले जाने की अनुमति देता है, सिर्फ तब जब तेल मूल्य सीमा से मेल खाते या उससे कम दाम पर खरीदा जाता है।

रूसी अधिकारियों ने कहा है कि मूल्य कैप का पालन करने की उनकी कोई मंशा नहीं है। हालांकि कैप रूसी कच्चे तेल के मौजूदा बाजार मूल्य से थोड़ा ही कम है जो लगभग 65 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास है और इससे रूस को बहुत अधिक परेशानी होने की संभावना नहीं है। 

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