पिघलते ग्लेशियर: लद्दाख में द्रास क्षेत्र के 77 ग्लेशियर पिछले 20 साल में औसतन सवा मीटर पतले हो गए हैं। फोटो - Bernard Gagnon_wikimediaCommons

रिसर्च: पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियरों पर ग्लोबल वॉर्मिंग और ब्लैक कार्बन का बढ़ता प्रभाव

एशिया के वॉटर टावर कहे जाने वाले हिमालयी ग्लेशियरों पर ग्लोबल वॉर्मिंग का संकट लगातार बढ़ रहा है। एक नये अध्ययन में पता चला है कि ब्लैक कार्बन और वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं और उनकी सफेदी घट रही है। वैज्ञानिकों ने लद्दाख के द्रास क्षेत्र में 77 ग्लेशियरों का उपग्रह से मिले आंकड़ों के आधार पर मूल्यांकन किया और पाया कि 2000 से 2020 के बीच ये सभी ग्लेशियर औसतन 1.27 मीटर पतले हो गए हैं। 

यह भी पाया गया है कि बढ़ते तापमान के अलावा द्रास के इस क्षेत्र में ब्लैक कार्बन 330 नैनोग्राम से बढ़कर 680 नैनोग्राम हो गया है। वेब पत्रिका मोंगाबे हिन्दी में आप ग्लोबल वॉर्मिंग और ब्लैक कार्बन के ग्लेशियरों पर पड़ रहे प्रभाव के बारे में विस्तृत रिपोर्ट पढ़ सकते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र समर्थिक रिपोर्ट ने कहा – ग्रेट बैरियर रीफ को संकटग्रस्ट विश्व धरोहर घोषित किया जाये

दुनिया की सबसे विशाल मूंगे की दीवार (जिसे ग्रेट बैरियर रीफ कहा जाता है) के लिये संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से चलाये गये अभियान ने निष्कर्ष निकाला है कि दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली को “विश्व की संकटग्रस्त धरोहरों” की सूची में रखा जाना चाहिये। इस साल मार्च में ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के पास स्थित इस मूंगे की दीवार पर 10 दिन का अध्ययन किया गया था और उस मिशन की रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि जलवायु परिवर्तन उन विलक्षण खूबियों के लिये ख़तरा पैदा कर रहा है जिनकी वजह से 1981 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया था। 

ग्रेट बैरियर रीफ क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट के समानांतर है और मूंगे की इस विशाल दीवार की लंबाई करीब 1200 मील और मोटाई 10 से 90 मील तक है। मिशन ने अपनी रिपोर्ट में 22 सिफारिशें की है जिनमें 10 प्राथमिकता वाले ऐसे महत्वपूर्ण कदम सुझाये हैं जिन्हें आपातकालीन स्थिति मान कर उठाया जाना होगा। हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने संयुक्त राष्ट्र और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के इस सुझाव का विरोध किया है कि ग्रेट बैरियर रीफ को संकटग्रस्त विश्व धरोहर माना जाये। जानकारों के मुताबिक संकटग्रस्त लिस्ट में शामिल करने से  ग्रेट बैरियर रीफ की निगरानी बढ़ेगी और पर्यावरण संरक्षण के कड़े कदम उठाने होंगे और इस कारण विकास परियोजनाओं और प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ सकता है जो राजनीतिक रूप से ऑस्ट्रेलियाई सरकार के लिये परेशान करने वाली बात होगी। 

गरीब देशों में चक्रवातों से बढ़ रहा हृदय रोग! 

क्या बढ़ते चक्रवाती तूफानों और उसके कारण हो रही विनाश लीला का असर इंसान के स्वास्थ्य पर इतना अधिक हो सकता है कि वह हृदय रोग का शिकार होने लगे। एक नई रिसर्च बताती है कि गरीब देशों में बार-बार आ रहे चक्रवाती तूफान और इस कारण विस्थापन और क्षति से होने वाले तनाव की वजह से हृदय रोग बढ़ रहे हैं। यह रिसर्च अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय के मैलकम स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने किया है। 

इस शोधकर्ताओं ने पाया कि ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात के प्रभाव सार्वजनिक स्वास्थ्य और हृदय रोगों से कही आगे तक पहुंचते हैं। ये चक्रवात मानसिक स्थिति, श्वसन, संक्रामक और परजीवी रोगों तक को फैलाते हैं। शोधकर्ता ने कहा कि अक्सर लंबे समय तक चलने वाले मानसिक रोगों को कमतर आंका जाता है और इस पर अधिक गहनता से अध्ययन करने की आवश्यकता है। 

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 10 करोड़ से अधिक लोग इस साल जबरन विस्थापित हुये 

संयुक्त राष्ट्र के डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) के मुताबिक साल 2022 में 10 करोड़ से अधिक लोग जबरन विस्थापित किये गये।  इन लोगों को विस्थापित होने के बाद न तो सम्मानजनक काम मिला और न ही  आय का कोई स्थायी ज़रिया। रिपोर्ट बताती है कि साल 2021 के अंत में ही करीब 6 करोड़ लोगों को अपने देश की सीमाओं के भीतर ही संघर्ष, हिंसा, आपदा और जलावायु परिवर्तन जनित कारणों से विस्थापित हो चुके थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंरिक पलायन रोकने के लिये लम्बी अवधि के विकास कार्यक्रम बनाने होंगे। विश्व बैंक के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक पूरी दुनिया में करीब 21.6 करोड़ लोगों को अपने देश के भीतर एक जगह से दूसरी जगह पलायन करना पड़ सकता है। 

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