बाढ़ का कहर: लगातार मूसलाधार बारिश औऱ नदी पर आये उफान ने रत्नागिरी के पास तिवरे बांध को तोड़ दिया, पूरे महाराष्ट्र में बाढ़ में करीब 40 जानें गईं। फोटो: IndiaYahooFinance

मॉनसून 2019: डूबती मुंबई, पानी को तरसता देश

मुंबई में जुलाई की शुरुआत मूसलाधार बरसात के साथ हुई। पूरा शहर जैसे थम गया। लोग जगह जगह फंसे रहे और हवाई उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। शहर में सीज़न की आधी बरसात (करब 1100 मिमी से अधिक) हो चुकी है। मुंबई समेत राज्य के अलग अलग इलाकों में भारी बरसात की वजह से दुर्घटनायें भी हुईं। जहां शहर में एक इमारत गिरीवहीं रत्नागिरी में पानी के जमाव की वजह से तिवरे बांध टूट गया। इन हादसों में कुल 40 से अधिक लोगों की जानें गई। 

दूसरी ओर जुलाई का पहला हफ्ता ख़त्म हो जाने पर भी देश के कई हिस्सों में मॉनसून का इंतज़ार बना रहा। दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों के बहुत से हिस्सों में बरसात नहीं पहुंची। पुणे स्थित भारतीय मौसम विभाग के डी शिवानंद पाई के मुताबिक जून के अंत तक देश में सामान्य से 33% कम बारिश हुई। 

यूरोप में गर्मी ने तोड़े रिकॉर्ड, जलवायु परिवर्तन का असर? 

यूरोप गर्मियों में मीठी धूप के लिये जाना जाता है लेकिन इस साल वहां लू के थपेड़े चल रहे हैं। फ्रांस में तापमान 45.9 डिग्री हो गया जो एक रिकॉर्ड है। इससे पहले 2003 में फ्रांस में पारा 44.1 डिग्री तक पहुंचा था।

 विश्व मौसम संस्थान (WMO) के प्रवक्ता ने कहा कि आने वाले दिनों में हीटवेव और तेज़ होंगी। साथ ही चेतावनी दी कि हर साल भीषण गर्मी का मौसम वक्त से जल्दी शुरू होगा और देर तक चलेगा। एक अन्य रिसर्च में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से यूरोप में चल रही ऐसी हीट वेव की संभावना अब 5 से 100 गुना तक बढ़ सकती है। उधर वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड ने कहा है कि हीववेव और सूखे की वजह से जंगलों में आग की घटनायें बढेंगी। 

सूखा डाल सकता है भारत के खाद्य निर्यात पर असर  

पानी की कमी का सीधा असर भारत के खाद्य निर्यात पर पड़ सकता है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने यह बात कही है। पानी की कमी का असर मूल रूप से धान की खेती पर पड़ रहा है। धान की पैदावार के लिये बहुत सारे पानी की ज़रूरत होती है। एक किलो चावल पैदा करने में किसानों को 4 से 5 हज़ार लीटर पानी की ज़रूरत होती है लेकिन पिछले साल 2018 में सामान्य से कम बरसात हुई और इस साल फिर से बरसात की कमी ने संकट को गहरा कर दिया है। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर्यावरण पर भारी

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से भले ही इंसान की ज़िंदगी आसान हो रही हो लेकिन पर्यावरण पर इसका असर साफ दिख रहा है। एक शोध से पता चला है कि एक सामान्य AI ट्रेनिंग मॉडल 2,80,000 किलो कार्बन उत्सर्जित कर सकता है। एक अमेरिकी कार को बनाने और कबाड़ हो जाने तक सड़क पर चलाने में इससे 5 गुना कम कार्बन वातावरण में जाता है। असर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में मशीन को मानवीय भाषा सिखाने के लिये बहुत सारे डाटा का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिये इंटरनेट और कम्प्यूटर का हज़ारों घंटे इस्तेमाल बहुत सारी बिजली खर्च करता है जो पर्यावरण के लिये बेहद हानिकारक है।

Website |  + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.