कोयला बिजलीघर न केवल वायु प्रदूषण करते हैं, पानी का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं। अब एक अध्ययन में यह पता चला है कि देश के आधे कोयला बिजलीघर साफ पानी के सीमित इस्तेमाल की गाइडलाइनों का पालन नहीं कर रहे। ये बात दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट यानी सीएसई के अध्ययन में सामने आयी है। सीएसई ने इस स्टडी के दौरान कुल 132 कोल पावर प्लांट्स का अध्ययन किया जिनकी कुल क्षमता 154 गीगावॉट थी। इनमें से 23 कोल प्लांट (31 गीगावॉट) समुद्र जल का इस्तेमाल कर रहे हैं जिन पर सरकार की 2015 में बनाये वॉटर यूज़ मानक लागू नहीं होते। बाकी 112 में से केवल 55 कोल प्लांट (64 गीगावॉट) नियमों का पालन करते पाये गये जबकि 54 कोयला बिजलीघर (59 गीगावॉट) इन नियमों का पालन नहीं कर रहे।
कोयला बिजलीघरों के लिये पानी की खपत को लेकर साल 2015 में नियम बनाये गये जिन्हें 2018 में संशोधित भी किया गया। समुद्र का पानी इस्तेमाल करने वाले प्लांट्स को इन नियमों से छूट है लेकिन फ्रेश वॉटर का इस्तेमाल करने वाले प्लांट अगर 1 जनवरी 2017 से पहले लगे हों तो वह प्रति मेगावॉट घंटा बिजली उत्पादन में 3.5 घन मीटर से अधिक पानी की खपत नहीं कर सकते जबकि 1 जनवरी 2017 के बाद के प्लांट्स के लिये यह सीमा 3 घन मीटर की है। सीएसई की स्टडी में पाया गया कि नियमों का पालन न करने वाले बिजलीघरों में ज़्यादातर महाराष्ट्र और यूपी की सरकारी कंपनियां हैं।
राहत कार्य के बाद सुंदरवन में प्लास्टिक कचरे का ढेर
पिछले महीने आये यास चक्रवात के बाद चले राहत कार्य से सुंदरवन में कचरे का ढेर जमा हो गया। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक यहां की नदियों, तालाबों और ज़मीन में प्लास्टिक बोतलों के साथ खाने के पैकेट और पाउच जमा हो गये। प्रशासन की ओर से चलाये गये सफाई अभियान में पहले 10 दिन में ही करीब 10 टन कचरा निकाला जा चुका है और यह अभियान अभी जारी है। सुंदरवन पश्चिम बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना में फैला हुआ है और यास चक्रवात के कारण यहां 2 लाख हेक्टेयर से अधिक फसल और बाग़वानी को नुक़सान पहुंचा था। राहत एजेंसियों ने चक्रवात पीड़ितों की मदद तो की लेकिन ठोस कचरा प्रबंधन की कोई व्यवस्था न होने के कारण प्लास्टिक के कूड़े का ढेर लग गया है।
उत्तर भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की प्रगति धीमी; केवल 1/3 क्षमता पर जलाशय
भारत के मानसून में थोड़ी कमी देखी जा रही है क्योंकि देश भर में इसकी प्रगति धीमी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा कि मानसून उत्तर में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पंजाब के कुछ हिस्सों से ज़रूर गुज़रा लेकिन अनुकूल परिस्थितियों न होने के कारण इन राज्यों के शेष हिस्सों में इसके आगे बढ़ने की संभावना अगले 6-7 दिनों में नहीं है। आईएमडी ने आने वाले दिनों में उत्तर पश्चिम, पश्चिम और मध्य भारत में कम बारिश की भविष्यवाणी की है।
आईएमडी के अनुसार, जून के पहले तीन हफ्तों में, देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य और सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई। हालांकि, आठ पूर्वोत्तर राज्यों ने वर्षा की कमी की सूचना दी। अरुणांचल प्रदेश इस सूची में शीर्ष पर था और वहां वर्षा में 60% की कमी दर्ज की गई। लक्षद्वीप, गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ भी इस सूची में शामिल हैं ।
दक्षिण-पश्चिम मानसून की धीमी प्रगति के कारण भारत के जलाशयों में अपनी क्षमता का केवल एक तिहाई पानी बचा है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा भंडारण पिछले साल की तुलना में कम है, लेकिन यह अभी भी इसी अवधि के 10 साल के औसत से बेहतर है।
यूरोप ने मीथेन उत्सर्जन को छुपाया?
क्या यूरोप अपने मीथेन उत्सर्जन के आंकड़ों को छुपा रहा है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इन्फ्रारेड कैमरों की मदद से सात यूरोपीय देशों में मीथेन लीक के 120 मामलों का पता लगाया है जिनकी रिपोर्टिंग नहीं की गई। अमेरिकी थिंक-टैंक क्लीन एयर टास्क फोर्स (सीएटीएफ) ने हंगरी, जर्मनी, चेक गणराज्य, इटली, रोमानिया, पोलैंड और ऑस्ट्रिया से आंकड़े एकत्रित किये। यह आंकड़े काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 20 साल के अंतराल में मीथेन कार्बन डाई ऑक्साइड के मुकाबले 84 गुना अधिक ग्लोबल वॉर्मिंग करती है।
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