नेट-ज़ीरो: क्या कोयले की कोठरी से निकलना आसान है?

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन 40 देशों के नेताओं से कार्बन इमीशन नियंत्रित करने के लिये मीटिंग कर रहे हैं लेकिन भारत के लिये इसके क्या मायने हैं? 

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को “हौव्वा” कहने वाले डोनाल्ड ट्रम्प की विदाई के बाद नये अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने पेरिस डील पर एक पहल की है। इसी के तहत बाइडेन दुनिया के तीन दर्जन से अधिक देशों के साथ 22 और 23 अप्रैल को मीटिंग कर रहे हैं। व्हाइट हाउस के मुताबिक बाइडेन की इस मीटिंग का मकसद “दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में प्रोत्साहित करना है ताकि इस निर्णायक दशक में धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री की सीमा में रखा जा सके।” 

क्लाइमेट लीडरशिप के मामले में ट्रम्प ने अपने देश की खूब फजीहत कराई। न केवल जलवायु संकट के “चीन और भारत जैसे देशों का खड़ा किया हौव्वा” बताया जो अमीर देशों से इसके बहाने पैसा “हड़पना” चाहते हैं बल्कि अमेरिका को पेरिस संधि से ही अलग कर लिया। बाइडेन समझते हैं कि क्लाइमेट चेंज केवल जलवायु के लिहाज़ से नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सामरिक और कूटनीतिक संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। खासतौर से चीन के बढ़ते प्रभाव को निरस्त या कम करने के लिये अमेरिका इस मंच से विकासशील देशों अपने पक्ष में लामबन्द करेगा। 

भारत पर अमेरिका की नज़र 

इस साल के आखिर में होने वाले जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन से पहले बाइडेन जिन 40 देशों के नेताओं से मिल रहे हैं उनमें से 17 देश ऐसे हैं जो दुनिया के कुल सालाना कार्बन इमीशन के 80% के लिये ज़िम्मेदार हैं। चीन इन 17 देशों की लिस्ट में सबसे ऊपर है तो अमेरिका के बाद भारत का तीसरा नंबर है। अमेरिका ने  बाइडेन की शिखर वार्ता से पहले क्लाइमेट पर राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन कैरी को सक्रिय किया है। कैरी ने भारत यात्रा के दौरान न केवल क्लाइमेट एक्शन के लिये भारत की प्रशंसा की बल्कि यह भी कहा कि नेट-ज़ीरो इमीशन हासिल करने में अमेरिका, भारत को धन और ग्रीन टेक्नोलॉजी दोनों ही ज़रियों से मदद करेगा। असल में अमेरिका भारत पर नेट ज़ीरो इमीशन का वर्ष घोषित करने का दबाव बना रहा है। जहां चीन ने पिछले साल यह घोषणा की कि वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल स्टेटस हासिल कर लेगा वहीं अमेरिका में डेमोक्रेटिक सांसदों ने जो नया बिल पेश किया है वह 2050 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पूरी से कार्बन मुक्त करने का रोड मैप है। 

इसी तरह यूके और कई यूरोपीय देशों समेत करीब 80 देश अपने कार्बन न्यूट्रल की समय सीमा और रोड मैप घोषित कर चुके हैं। लेकिन भारत के लिये कार्बन न्यूट्रल का रोड मैप जितना ज़रूरी है उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। 

नेट ज़ीरो का मतलब 

नेट-ज़ीरो या कार्बन न्यूट्रल का मतलब है कि किसी देश का नेट कार्बन इमीशन शून्य हो जाये। यानी उसके उद्योग, ट्रासंपोर्ट, बिजली और कृषि क्षेत्र से जो भी मानव जनित  कार्बन उत्सर्जन हो वह प्राकृतिक सोख्ता (सिंक) जैसे वनों द्वारा सोख लिया जाये। इस तरह वातावरण में जाने वाले कार्बन की मात्रा शून्य होगी और ग्लोबल व़ॉर्मिंग को रोका जा सकेगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये साफ ऊर्जा को बढ़ाने और कार्बन सोखने वाले सिंक (वनों इत्यादि) को बढ़ाना होगा। 

भारत उन देशों में है जिन्हें क्लाइमेट चेंज का सर्वाधिक खतरा है। संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिक पैनल आईपीसीसी और अन्य विशेषज्ञों की रिपोर्ट कहती हैं जलवायु परिवर्तन के सबसे विनाशकारी प्रभावों से बचने के लिये वैश्विक ग्रीन हाउस गैस इमीशन साल 2030 तक आधे हो जाने चाहिये और साल 2050 तक दुनिया के सभी देशों को कार्बन न्यूट्रल हो जाना चाहिये। 

कोयले से कैसे हटेगा भारत! 

कार्बन न्यूट्रल बनने के लिये भारत की अर्थव्यवस्था को कोयले और दूसरे जीवाश्म ईंधनों (गैस, तेल आदि) से हटना होगा और साफ ऊर्जा के संयंत्र तेज़ी से लगाने होंगे। जहां चीन की अर्थव्यवस्था पिछले दो दशकों में लगातार बढ़ती गई है वहीं भारत की अर्थव्यवस्था को एक सतत चढ़ाव नहीं मिला। अभी भारत में कुछ बिजली उत्पादन क्षमता (382.15 गीगावॉट) का 61% (234.7 गीगावॉट) जीवाश्म ईंधन से है और अगर सिर्फ कोल पावर को देखें तो इसका हिस्सा 51% (209.3 गीगावॉट) है। सोलर, हाइड्रो, बायो, मिनी हाइड्रो और न्यूक्लियर – जिसे साफ ऊर्जा कहा जाता है – मिलाकर करीब 100 गीगावॉट के बराबर ही है। 

क्या ऐसे में भारत के लिये नेट ज़ीरो इमीशन का साल तय करना आसान होगा? 

कोयला और पावर सेक्टर के जानकार और दिल्ली स्थित वसुधा फाउंडेशन के निदेशक श्रीनिवास कृष्णास्वामी कहते हैं, “भारत के लिये यह पूरी तरह मुमकिन है कि वह साल 2050 तक बिजली सेक्टर को कार्बन मुक्त कर ले। चाहे सोलर हो या दूसरे  साफ ऊर्जा स्रोत, ये सस्ते हो रहे हैं और कोयला महंगा साबित हो रहा है। भारत ने 2030 तक 450 गीगावॉट साफ ऊर्जा का लक्ष्य रखा है यानी उसका कार्यक्रम अभी ट्रैक पर है।”  

कृष्णास्वामी के मुताबिक बैटरी स्टोरेज टेक्नोलॉजी में क्रांति हो रही है और कीमतें गिर रही हैं। अगले एक दशक में स्टोरेज के साथ रिन्यूएबल कोल पावर से सस्ता हो सकता है खासतौर से तब जबकि कोयला बिजलीघरों पर पर्यावरण मानकों की पाबंदी लगाई जायेगी। पर्यावरण विशेषज्ञ और इंटरनेशनल फोरम फॉर इन्वायरेंमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आई-फॉरेस्ट) के निदेशक चंद्र भूषण भी कृष्णास्वामी से सहमत हैं लेकिन वह कहते हैं कि नेट-ज़ीरो की बहस सिर्फ कोयले तक सीमित नहीं रहनी चाहिये।  

चंद्रभूषण के मुताबिक, “नेट-ज़ीरो की डिबेट कोयले पर अटक गई लगती है लेकिन आपको याद रखना होगा कि बिना ऑइल और गैस को खत्म किये बिना भी नहीं हो सकता। भारत के लिये (नेट-ज़ीरो तक पहुंचने के लिये) कोयले को खत्म करना जितना ज़रूरी है लेकिन यूरोप और अमेरिका के लिये उसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये गैस और तेल को खत्म करना महत्वपूर्ण है। हमें सभी देशों का एनर्ज़ी प्रोफाइल देखना होगा और सारे जीवाश्म ईंधन को खत्म करने की कोशिश करनी होगी।”

सामाजिक सरोकार निभाना ज़रूरी! 

नेट-ज़ीरो की बहस में जुड़ा एक महत्वपूर्ण सवाल उन कर्मचारियों और मज़दूरों का है सेक्टर में हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 5 लाख लोग खनन में रोज़गार पाते हैं। किसी भी बदलाव के वक्त इन मज़दूरों की रोज़ी-रोटी का खयाल रखना ज़रूरी है। 

देश की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने भी हाल में कहा कि वह  सौर ऊर्जा में बढ़-चढ़ कर निवेश करेगी। कोल इंडिया ने साल 2024 में इसके लिये 6,000 करोड़ का बजट रखा है। माना जा रहा है कि कोल इंडिया इस दौरान करीब 13-14000 कर्मचारियों की छंटनी करेगा क्योंकि कई छोटी बड़ी खदानें बन्द होंगी। इस तरह के सामाजिक सरोकार को ध्यान में रखकर किये गये बदलाव को जस्ट ट्रांजिशन कहा जाता है। आई-फॉरेस्ट ने जस्ट-ट्रांजिशन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट (जस्ट ट्रांजिशन इन इंडिया) प्रकाशित की है।

चन्द्र भूषण कहते हैं कि नये हालातों में कोयले का आर्थिक समीकरण असंतुलित होता जायेगा और सभी देश और कंपनियां साफ ऊर्जा की ओर बढ़ेंगी लेकिन किसी भी बदलाव में सामाजिक ज़िम्मेदारी और न्याय से समझौता नहीं किया जा सकता। 

उनके मुताबिक, “नेट-ज़ीरो के साथ साथ हमें जस्ट ट्रांजिशन की बात करना भी ज़रूरी है। सही मायनों में नेट-ज़ीरो तभी हो पायेगा जब कोयले पर निर्भर समुदायों के साथ न्यायपूर्ण सुलूक हो। कोई भी नेट ज़ीरो की बहस जस्ट ट्रांजिशन के समानान्तर होनी चाहिये” 

+ posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.