थर्मोडायनेमिक्स की पहली लॉ में बताया गया है कि ऊर्जा को न ही बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। ऊर्जा को बस कन्ज़र्व या संरक्षित किया जा सकता है।
इस नियम को सोलर एनेर्जी की शक्ल में साफ़ देखा जा सकता है, जहाँ सूरज की एनेर्जी को सोलर सेल में बटोर कर रख लिया जाता है और फिर बैट्री में संरक्षित कर उपयोग किया जाता है। लेकिन बैट्री की भी अपनी सीमायें होती हैं। एक लिमिट से ज़्यादा नहीं संरक्षित कर सकते। लेकिन जितनी ज़्यादा संरक्षित हो जाए उतना बेहतर।
इसी की बानगी पेश करती है हाल ही में जारी एक विश्लेषण रिपोर्ट, जिसमें पता चलता है कि अगर रिन्युब्ल एनेर्जी उत्पादन में ऊर्जा के भंडारण को बेहतर कर लिया जाये तो थर्मल पावर, या कोयले से बनी बिजली, के मुक़ाबले हरित ऊर्जा की प्रति यूनिट कीमत और भी कम हो सकती है।
क्लाइमेट ट्रेंड्स और जेएमके रिसर्च एंड एनालिटिक्स द्वारा जारी किया गया विश्लेषण में इस हाइब्रिड सिस्टम में 500MWh के स्टोरेज के साथ 800MW सौर और 200MW पवन की प्रारंभिक क्षमता को आधार बनाया गया है। इस हिसाब से ये सिस्टम 2023 तक तमिलनाडु की रोज़ाना २ घंटे की सालाना बिजली डिमांड पूरी कर लेगा।
यह रिपोर्ट बताती है कि एक अगर एक काल्पनिक हाइब्रिड (सौर+पवन और ली-आयन बैटरी भंडारण) ऊर्जा उत्पादन सिस्टम बनाया जाये तो आने वाले दस सालों में कोयला बिजली की तुलना में प्रति यूनिट बिजली की कीमत में लगभग 31 प्रतिशत की गिरावट अपेक्षित है।
फ़िलहाल, साल 2021 में, जहाँ इस हाइब्रिड सिस्टम से बनी बिजली की कीमत रु 4.97 kWh है, वो 2030 तक गिरकर रु 3.4 kWh तक आ जाएगी। अगर तुलना की जाए तो तमिलनाडु में कोयला बिजली संयंत्रों से उत्पादित बिजली की लागत अभी रु 4.5 से रु 6 kWh के बीच आती है।
इस 1 गीगा वाट की हाइब्रिड प्रणाली से यह कीमत तब है जब 2021 में कुल 2 घंटे का ही बैटरी स्टोरेज माना जा रहा है। इस बैकअप को चरणबद्ध तरीके से 2030 तक 4 घंटे कर लिया जायेगा और तब अच्छी ख़ासी बचत हो पायेगी।
आगे, इसकी स्टोरेज क्षमता 2024-2026 के लिए तीन घंटे के दैनिक बैकअप के लिए संवर्धित है, और फिर 2027-2030 के लिए प्रति दिन 4 घंटे। अंतिम वर्ष में यह हाइब्रिड प्रणाली तमिलनाडू की कुल ऊर्जा मांग के 29 फीसद को पूरा करेगी और वो भी रु 3.4 kWh की कीमत पर। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि अगले 3 सालों में तमिलनाडु में 5 नई थर्मल पावर परियोजनाएं हैं।
इनमें रु 5 – 6 / kWh प्रति यूनिट की दर से चेय्यूर अल्ट्रा मेगा कोयला बिजली संयंत्र इनमें से सबसे बड़ा है और इस हाइब्रिड मॉडल की उत्पादन कीमतों से 32 प्रतिशत से 43 प्रतिशत अधिक महंगा साबित होगा।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशिका, आरती खोसला कहती हैं, “स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में तमिलनाडु देश में सबसे आगे है, लेकिन साथ ही, यहाँ कई बड़ी कोयला परियोजनाएं भी आने वाली हैं। ऐसे में जब इस विश्लेष्ण से साफ़ है कि बेहतर बैटरी स्टोरेज से रेन्युब्ल एनेर्जी और सस्ती साबित होगी, तबी नीति निर्माताओं को सोचना चाहिए कि क्या वाकई उन्हें कोयला बिजली को इतनी तरजीह देनी चाहिए।” इस शोध में आगे कहा गया है कि लिथियम आधारित बैटरी स्टोरेज की मदद से, स्टोरेज की कमी के चलते, उत्पादन को अपेक्षित स्तर से कम करने वाली स्थिति से भी बचा जा सकता है। इस स्थिति को कर्टेलमेंट कहते हैं। तमिल नाडू में तो लॉक डाउन के दौरान लगभग पचास प्रतिशत सोलर पावर प्लांट्स में कर्टेलमेंट करना पड़ा। ऐसे ही, साल 2019 में, पवन ऊर्जा उत्पादन में भी कर्टेलमेंट करना पड़ा। जहाँ साल 2018 में दिन भर में 1.87 घंटे का कर्टेलमेंट हो रहा था, वो अगले साल, 2019 में बढ़ कर 3.52 घंटे प्रति दिन हो गया।
यह विश्लेष्ण क्लाइमेट ट्रेंड्स और JMK रिसर्च के साझा प्रयास से पूरा हुआ है।
पूरी रिपोर्ट को अपनी प्रतिक्रिया में समेटते हुए JMK रिसर्च की संस्थापक ज्योति गुलिया कहती हैं, “हमारे विश्लेषण ने पाया कि इस हाइब्रिड रेन्युब्ल एनेर्जी सिस्टम में बिजली की लागत फ़िलहाल नए कोयला संयंत्रो से बनी बिजली के लगभग बराबर ही है, लेकिन आने वाले समय में बेहतर बैटरी स्टोरेज से यह कीमतें 31 फीसद तक कम हो जाएँगी।”
चलते-चलते एक रोचक बात भी जान लीजिये। अगर इस हाइब्रिड सिस्टम से उत्पादित बिजली देश की राजधानी दिल्ली भेजी जाये तो तमाम शुल्क देने के बाद भी यह 2030 में दिल्ली की 100 फीसद सालाना बिजली डिमांड पूरी कर देगी और वो भी रु 4.4/kWh की कीमत पर।
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