फोटो: SDRF Himachal/X

भारत के 85% जिलों पर एक्सट्रीम क्लाइमेट का खतरा, उपयुक्त बुनियादी ढांचे की कमी

भारत में 85 प्रतिशत से अधिक जिलों पर बाढ़, सूखे और चक्रवात जैसी चरम जलवायु घटनाओं का ख़तरा है। आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया के अध्ययन में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन में यह पाया गया कि भारत के 45 प्रतिशत जिले ‘स्वैपिंग ट्रेंड’ का अनुभव कर रहे हैं, यानि जहां पारंपरिक रूप से बाढ़ का खतरा रहता था वहां सूखा पड़ रहा है, और जहां सूखा होता था वहां बाढ़ का। लेकिन बाढ़ से सूखे की ओर जाने वाले जिलों की संख्या अधिक है।

इस अध्ययन में 1973 से लेकर 2023 के बीच पिछले 50 साल में एक्सट्रीम क्लाइमेट घटनाओं को देखा गया।  पिछले एक दशक में ही चरम जलवायु घटनाओं में पांच गुने की वृद्धि देखी गई, चार गुना बढ़ गईं। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि सूखे की घटनाओं में दो गुना वृद्धि हुई है, विशेष रूप से कृषि और मौसम संबंधी सूखे में, और चक्रवात की घटनाओं में चार गुना वृद्धि हुई है। 

अमेरिका-स्थित जलवायु वैज्ञानिकों की एक नई रिपोर्ट बताती है कि इस वर्ष जून से अगस्त की तिमाही भारत में 1970 के बाद से दूसरी सबसे गर्म तिमाही थी।  और संचारकों के एक समूह की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, देश की एक तिहाई से अधिक आबादी ने कम से कम सात दिनों की खतरनाक गर्मी को सहन किया। 

क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इन तीन महीनों के दौरान 29 दिन ऐसे रहे जब अधिक तापमान होने की संभावना तीन गुना तक बढ़ गई।

कौनसे राज्य हैं अधिक प्रभावित

पूर्वी भारत के ज़िलों में बाढ़ का खतरा सबसे अधिक है जिसके बाद उत्तर-पूर्व और दक्षिण के हिस्से आते हैं। बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम के 60 प्रतिशत से अधिक जिले एक से अधिक चरम जलवायु घटनाओं का अनुभव कर रहे हैं। त्रिपुरा, केरल, बिहार, पंजाब और झारखंड के जिलों में ‘स्वैपिंग ट्रेंड’ प्रमुखता से देखा जा सकता है। 

50% जिलों में उचित मूलभूत ढांचे का अभाव

रियल एस्टेट कंसल्टेंट सीबीआरई के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 50 प्रतिशत सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर आपदा प्रबंधन के लिए उपयुक्त नहीं है।

अध्ययन में कहा गया कि “भारत प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं में उल्लेखनीय वृद्धि से जूझ रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था, जनसंख्या और दीर्घकालिक सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए खतरा पैदा हो रहा है।” डेमोग्राफी और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में बदलाव, अनियोजित शहरीकरण, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विकास, पर्यावरण को नुकसान, जलवायु परिवर्तन और भूवैज्ञानिक खतरों के कारण आपदाओं का जोखिम और बढ़ रहा है।

आपदाओं से निपटने के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से आर्थिक क्षति होती और जीडीपी को नुकसान होता है, रिपोर्ट में कहा गया। 

अमीरों पर भी मंडरा रहा खतरा

जर्मनी के पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के शोधकर्ताओं ने एक नया शोध प्रकाशित किया है जिसके अनुसार अमीरों के लिए जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। शोध के मुताबिक़ अभी भी जलवायु परिवर्तन सबसे अधिक गरीबों को ही प्रभावित करता है क्योंकि उनके पास अडॉप्टेशन के पर्याप्त साधन नहीं होते।

लेकिन जिस तरह वैश्विक स्तर पर वस्तु और सेवाओं की सप्लाई चेन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का असर पड़ रहा है, उससे उच्च-आय वर्गों पर भी इसका प्रभाव बढ़ सकता है। 

हालांकि अध्ययन में यह भी कहा गया है कि किसी भी देश में विभिन्न आय वर्गों पर जलवायु परिवर्तन का कितना प्रभाव पड़ता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि अडॉप्टेशन यानि अनुकूलन के लिए जरूरी विकल्प किसके पास अधिक हैं।

क्या उपाय हैं आवश्यक

आईपीई ग्लोबल और ईएसआरआई इंडिया के अध्ययन में एक क्लाइमेट रिस्क ऑब्जर्वेटरी बनाने का सुझाव दिया गया है, जो एक ऐसी टूलकिट विकसित करे जिसके आधार पर देश, राज्य, जिलों और शहरों के स्तर पर नीति निर्माता जोखिम का आकलन कर उचित निर्णय ले सकें।

इसमें क्लाइमेट रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए जरूरी निवेश जुटाने और स्थानीय-स्तर पर क्लाइमेट एक्शन को सुगम बनाने के लिए एक  इंफ्रास्ट्रक्चर क्लाइमेट फंड का गठन करने का भी सुझाव दिया गया है।

साथ ही यह भी कहा गया कि देश के बजट का फोकस मिटिगेशन (शमन) की बजाय अडॉप्टेशन (अनुकूलन) पर होना चाहिए। वर्तमान व्यवस्था में क्लाइमेट रेसिलिएंस के लिए पर्याप्त फंड नहीं हैं।

Website |  + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.