फोटो: Luca Frediani/Wikimedia Commons

चालीस साल बाद शुरू हुआ भोपाल गैस कांड के कचरे का निपटारा, लेकिन आशंका बरकरार

भोपाल गैस त्रासदी के चालीस साल बाद आखिरकार यूनियन कार्बाइड प्लांट से जहरीले कचरे को हटाने का काम शुरू कर दिया गया है। 1 जनवरी, 2025 को मध्य प्रदेश के पीथमपुर स्थित एक ट्रीटमेंट फैसिलिटी में 337 टन अपशिष्ट पहुंचाया गया। यह प्रयास 1984 की आपदा से उत्पन्न प्रदूषण की समस्या को हल करने के उद्देश्य से किया जा रहा है, जिसने हजारों लोगों की जान ले ली और स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य पर स्थाई प्रभाव डाला है।

लेकिन इस अभियान को लेकर शंका बरकरार है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जनता को आश्वासन दिया कि पीथमपुर में अपशिष्ट निपटान से कोई खतरा नहीं है। हालांकि, स्थनीय निवासी और क्लाइमेट एक्टिविस्ट संशय में हैं।

पीथमपुर में स्थानीय लोगों ने संभावित जोखिमों की आशंका जताते हुए विरोध प्रदर्शन किया। जबकि पर्यावरणविदों का तर्क है कि कचरे को स्थानांतरित करने से व्यापक समाधान मिलने के बजाय समस्या को दूसरे समुदाय के बीच भेजा जा रहा है। आलोचक इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि जो 337 टन कचरा हटाया गया वह भोपाल की साइट पर अभी भी मौजूद अनुमानित 10 लाख टन खतरनाक अपशिष्ट का केवल एक अंश है।

उनका आरोप है कि सरकार केवल एक जनसंपर्क अभियान चला रही है और क्षेत्र में भूजल और मिट्टी को प्रभावित करने वाले व्यापक प्रदूषण की अनदेखी कर रही है। भोपाल त्रासदी के पीड़ित और एडवोकेसी ग्रुप चाहते हैं कि अपशिष्ट प्रबंधन और अधिक व्यापक रूप से किया जाना चाहिए और यूनियन कार्बाइड की जगह लेने वाली कंपनी डव केमिकल को इसके लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

यूनियन कार्बाइड के कचरे को लेकर छिड़ी बहस भारत में खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन के व्यापक मुद्दे को रेखांकित करती है। जहरीले कचरे को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाने की घटनाओं के कारण अहमदाबाद और चेन्नई के के बाहरी इलाकों में समेत देश में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं।

भोपाल में अपशिष्ट निपटान की दिशा में एक कदम उठाया गया है, लेकिन आपदा के प्रभावों को पूरी तरह समाप्त करने और प्रभावित समुदायों को न्याय दिलाने की मुहिम यहीं समाप्त नहीं होती।

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