जर्मनी के पर्यावरण लॉबी ग्रुप अर्जवाल्ड ने पाया है कि पिछले दो सालों में वर्ल्ड बैंक ने फॉसिल फ्यूल (तेल, कोयला, गैस जैसे कार्बन छोड़ने वाले ईंधन) से जुड़े प्रोजेक्ट्स को करीब 200 करोड़ डॉलर की फंडिंग की है। ग्रुप कहता है कि 2015 में पेरिस डील होने के बाद से विश्व बैंक ऐसे प्रोजेक्ट्स में 12,00 करोड़ लगा चुका है। इसमें 1050 करोड़ डॉलर तो नये प्रोजेक्ट्स में लगे हैं। विश्व बैंक ने विकासशील देशों में संसाधनों पर निर्भरता का हवाला देते हुए इसका बचाव किया है। बैंक ने “कोरोना के साथ जंग” को भी अपनी ताज़ा फंडिंग के लिये एक कारण बताया है और कहा है कि अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाओं को तैयार करने के लिये यह ज़रूरी था।
कोल ब्लॉक नीलामी: 40% खदानों के लिये नहीं मिले बिडर
कोयला मंत्रालय द्वारा जारी किये गये आंकड़े बताते हैं कि ताज़ा कोयला ब्लॉक नीलामी की घोषणा के बाद 38 में से 15 कोयला खदानों के लिये कोई बोली लगाने वाला नहीं मिला जबकि 20 खदानों के लिये केवल एक बिडर आया। यह नीलामी कोल सेक्टर में तेज़ी लाने के उद्देश्य से की गई। वैसे कोयले की मांग गिर रही है और कोयला बिजलीघर वायु प्रदूषण रोकने के लिये तय मानकों को पूरा न करने के कारण अदालत में हैं। कोयला खदान नीलामी के वक्त यह भी कहा गया कि इससे 2.8 लाख करोड़ नौकरियां मिलेंगी हालांकि कोयला मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस आंकड़े के लिये उनके पास कोई आधार नहीं है। यह दिलचस्प है कि अडानी ग्रुप ने भी बोली लगाई हालांकि उसने पहले कहा था कि नीलामी में उसकी दिलचस्पी नहीं है।
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