ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में साल 2019 में भड़की आग इस साल भी जारी रही और देश में गर्मियों का पूरा मौसम इसकी भेंट चढ़ गया। यह आग करीब 10 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैली और इसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया में 50 करोड़ से अधिक जानवर मर गये। संकट यह है कि ऑस्ट्रेलिया में एक और आग भड़क गई है और कुछ जानकार मानते हैं कि यह आग पहले से अधिक विनाशकारी हो सकती है।
उधर अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्र में साल 2019 के आखिरी महीनों में रिकॉर्ड खुश्क मौसम रहा। जिसके बाद वहां इस साल जंगल में आग की कई घटनायें हुईं। यह आग अप्रैल में शुरु हुईं और इसने कैलिफोर्निया, ओरेगॉन और वॉशिंगटन में भारी नुकसान किया। हज़ारों लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया और 82 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्रफल जल गया। रूस में भी साल 2020 की शुरुआत असामान्य रूप से अधिक तापमान वाली सर्दियों और वसंत के साथ हुई। आर्कटिक के वर्खोयान्स्क में पारा रिकॉर्ड 38°C तक पहुंच गया। फरवरी में साइबेरिया में लगी आग कई महीने चली और इसने 2 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन जला डाली।
भारत में बाढ़ का कहर, अटलांटिक में नाटकीय चक्रवात
भारत में इस साल मॉनसून ‘सामान्य से अधिक’ रहा और पिछली 30 साल में यह दूसरी सबसे अधिक बारिश थी। इसकी वजह से देश में कई हिस्सों में बाढ़ आई और विशेष रूप से उत्तर-पूर्व के असम में इसका बड़ा असर दिखा। लाखों हेक्टेयर में फसल बर्बादी के अलावा इसमें 100 से अधिक लोग मारे गये और 50 लाख विस्थापित हुए।
अमरीका के अटलांटिक में यह साल चौंकाने वाले चक्रवातों का रहा और इस साल यहां – एक जून से 30 नवंबर के बीच – अब तक के सर्वाधिक चक्रवाती तूफान आये। इतिहास में केवल दूसरी बार ‘फाइव स्टॉर्म सिस्टम’ नामक दुर्लभ मौसमी घटना भी देखने को मिली। एशिया में अम्फान, निसर्ग, ब्रुएवी और गति जैसे चक्रवाती तूफानों ने तबाही की।
कोरोना: CO2 इमीशन में क्षणिक गिरावट
दिसंबर में प्रकाशित हुई ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दुनिया का कुल कार्बन इमीशन 3400 करोड़ टन रहा जो पिछले साल (2019) की तुलना में 7% कम है। कार्बन इमीशन में यह गिरावट मूलत: कोरोना महामारी के कारण है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट में कार्बन इमीशन में इस कमी को क्षणिक उपलब्धि बताया गया है। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि साल 2020 में CO2, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के इमीशन का ग्राफ बढ़ रहा था।
अफ्रीका, एशिया में टिड्डियों के हमले के पीछे जलवायु परिवर्तन
कीनिया में टिड्डयों का नया हमला जारी है जो फसल को नुकसान पहुंचा रहा है। इन टिड्डियों ने इस साल इथियोपिया, युगांडा, सोमालिया, एरिट्रिया, भारत, पाकिस्तान, ईरान, यमन, ओमान और सऊदी अरब समेत दुनिया के कई देशों में कहर बरपाया। कोरोना से जूझ रहे भारत के राजस्थान, गुजरात के साथ मध्य प्रदेश में भी – जहां अब तक टिड्डियों का कहर नहीं दिखा था – टिड्डियों ने फसल बर्बाद की। जानकारों के मुताबिक अरब सागर में साइक्लोनिक बदलाव इस असामान्य हमले का कारण है।
अच्छी ख़बर, सवा सौ साल पुराना ऑर्किड दिखा उत्तराखंड में
हिमालयी राज्य उत्तराखंड के चमोली ज़िले में इस साल ऑर्किड की वह दुर्लभ प्रजाति पाई गई जो 124 साल पहले सिक्किम में दिखी थी। इस प्रजाति की पहचान लिपरिस पाइग्मिया के नाम से की गई है। इससे पहले यह प्रजाति 1896 में देखी गई थी। ऑर्किड पहाड़ी इलाकों में जून-जुलाई के वक्त खिलाने वाला दुर्लभ फूल है जिसके वजूद पर संकट को देखते हुये इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने अपनी रेड लिस्ट में रखा है। हिमालय जैव विविधता का अनमोल खज़ाना है और इस पर छाये संकट की वजह से ऑर्किड जैसी प्रजाति का महत्व अधिक बढ़ जाता है। उत्तराखंड वन विभाग के फॉरेस्ट रेंजर हरीश नेगी और जूनियर रिसर्च फेलो मनोज सिंह का कहना है उन्होंने यह पुष्प चमोली ज़िले में सप्तकुंड के रास्ते में 3800 मीटर दिखा और वहां भेजे गये सेंपल की पुष्टि पुणे स्थित बॉटिनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कर दी है। प्रतिष्ठित फ्रेंच साइंस जर्नल रिचर्डियाना में इसे प्रकाशित किया गया है।
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