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जलवायु परिवर्तन ने तोड़ी 2020 में अर्थव्यवस्था की कमर

प्राकृतिक आपदाओं के चलते इस साल बीमा कम्पनियों से हुई 150 अरब डॉलर के क्लेम की मांग, असल नुकसान हो सकता है और भी ज़्यादा

फ़िलहाल इस बात में कोई दो राय नहीं कि 2020 इस सदी में मानव सभ्यता के लिए अब तक का सबसे बुरा साल रहा है। और इस बुरे साल की सबसे बुरी बात रही कि कोरोना जैसी प्राकृतिक आपदा एक भयावह मानवजनित आपदा बन गयी। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि सिर्फ़ कोरोना के लिए ही इस साल को याद किया जायेगा।

इस साल प्राकृतिक आपदाओं ने भी बेहिसाब नुकसान किया है। इतना कि क्रिश्चियन एड ने इस साल प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान को लेकर 2020 को क्लाइमेट ब्रेकडाउन, यानी जलवायु दुर्घटना, का साल कहा है। कोरोना को एक पल को भूल भी जाएँ तो भारी बारि और बाढ़ से हुई बर्बादी हो या ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के जंगलों में लगी आग से हुई तबाही हो- यह साल प्राकृतिक आपदाओं का साल रहा है।

बीते कुछ सालों में मौसमी आपदा​एं जिस हिसाब से बढ़ी हैं, साल 2020 उन आपदाओं के मामले में कोहिनूर बन कर रहेगा। कोहिनूर का ज़िक्र इसलिए क्योंकि उसे उसकी कीमत के लिए याद किया जाता है। दरअसल क्रिश्चियन एड की एक ताज़ा रिपोर्ट इस साल की कीमत का आंकलन करने की कोशिश करती दिखती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल 10 सबसे बड़ी आपदाओं से हुए नुकसान के एवज़ में दुनियाभर में करीब 150 अरब डॉलर यानी करीब 11.5 लाख करोड़ रुपये का बीमा क्लेम किया गया है। असली आर्थिक लगत तो और भी हो सकती है।

इस विषय पर नज़र बनाए रखने वाले विशेषज्ञों की मानें तो हर साल बीमा कंपनियों को ऐसी आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में मौसमी तब्दीलियों के भयावह परिणाम हो सकते हैं।

क्लाइमेट ब्रेकडाउन का साल

ये सारी बातें क्रिश्चियन ऐड की तरफ से जारी ताज़ा रिपोर्ट में साफ़ तौर पर बताई गयी हैं। और इन्हीं सब वजहों से साल 2020 को क्लाइमेट ब्रेकडाउन यानी जलवायु दुर्घटना का साल कहा है।

इस रिपोर्ट में संस्था ने इस साल जनवरी से नवंबर तक आई प्राकृतिक आपदाओं का विश्लेष्ण किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 10 बड़ी मौसमी आपदाओं के कारण जहाँ एक ओर अनगिनत लोगों की मौत हुई है, वहीँ 1.35 करोड़ लोग विस्थापन को मजबूर हुए।

अधूरी पिक्चर ही ख़ासी भयावह

क्रिश्चियन ऐड ने अपनी रिपोर्ट में याद दिलाया है कि क्योंकि निम्न आय वाले देशों में मौसमी आपदाओं से जुड़े हादसों के लिए बीमा कराने का चलन नहीं है, इसलिए इन आंकड़ों से वहां की हक़ीक़त का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। निम्न आय वाले देशों में इस साल जो नुकसान हुए, उसका केवल चार फीसदी ही बीमित था। वहीं दूसरी ओर उच्च आय वाले देशों में 60 फीसदी ऐसा नुकसान बीमा कवरेज के अंदर था।

ग्लोबल वॉर्मिंग रहा आपदाओं का कारण

ध्यान देने वाली बात है कि संस्था ने अपनी इस रिपोर्ट में हाल ही में जारी हुए एक अध्ययन का ज़िक्र किया है, जिसमें कहा गया था कि चाहें एशियाई देशों में बाढ़ हो, अफ्रीका में टिड्डियों का हमला हो या फिर यूरोप और अमेरिका में आए चक्रवात हों-इन सभी आपदाओं में जलवायु परिवर्तन का असर दिखता रहा है। इस जर्नल का प्रकाशन द लासेंट नाम के मेडिकल जर्नल में हुआ था।

विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते अब तूफान और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाएं न सिर्फ़ अधिक शक्तिशाली और खतरनाक हुई हैं, उनकी आवृति भी बढ़ी है और बढ़ेगी। इन्हीं सब वजहों से तेज़ बारिशें हो रही हैं। बात अटलांटिक महासागर की करें तो वहां इस साल रिकॉर्ड संख्या में चक्रवात उठे, जिनके वजह से 400 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 41 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आने वाले वर्षों में चक्रवातों के कारण और भयंकर तबाही हो सकती है।

मानसून ने चीन और भारत को किया बेहाल

इस विश्लेष्ण के अनुसार, चीन और भारत में लगातार दूसरे साल मॉनसून के दौरान भयंकर बारिश हुई, जो बाढ़ का कारण बनी और उसने लोगों को बेहाल कर दिया। बांग्लादेश में तो बाढ़ ने बेहद नुकसान पहुंचाया। वहीं, अमेरिका के कैलिफोर्निया, ऑस्ट्रेलिया, और रूस के साइबेरिया के जंगलों में भयानक आग लगने से भी अच्छा ख़ासा  नुकसान हुआ।

पिछले साल तो वनों की आग के कारण 20 फीसद पेड़ पौधे जल कर राख हो गए थे। साथ ही लाखों जंगली जानवरों की भी मौत हो गई थी। और वो आग 2020 के शुरुआती महीनों तक भी जारी रही।

विशेषज्ञों की मानें तो 19वीं सदी के के उत्तरार्द्ध की तुलना में अब तक पृथ्वी का औसत तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। पिछले 50 सालों में कुछ ज्यादा ही बड़ा फर्क देखा गया है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु संबंधी सलाहकार समिति (IPCC) के मुताबिक अगर धरती पर जीवन बचाना है तो तापमान वृद्धि को सीमित रखना पड़ेगा।

रिपोर्ट लेखक और क्रिस्चियन ऐड की जलवायु नीति के प्रमुख, डॉ कैट क्रेमर, रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, “जलवायु के इस ब्रेक डाउन ने कोविड-19 महामारी के असर को और भी घातक बना दिया है।” इस पूरे विषय का भावनात्मक पक्ष रखते हुए फ़िलीपीन्स में फ़ॉर फ्राइडे फ़ॉर फ़्यूचर के यूथ एक्टिविस्ट, मिट्जी जोनेल टैन, कहते हैं, “ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए लड़ना मेरे अस्तित्व के लिए और ग्लोबल साउथ में इतने लोगों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।”

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