ईज ऑफ डूइंग बिजनेस या कहें व्यवसाय को आसान बनाने की प्रक्रिया में एनडीए सरकार पर्यावरण नियमों को लगातार कमजोर करती रही है। इससे जंगलों को नुकसान हो रहा है। तस्वीर-पॉल हैमिल्टन/विकिमीडिया कॉमन्स

[कमेंट्री] पर्यावरण संबंधी मुद्दों को तरजीह देने के बाद भी क्या सच में हरा-भरा है बजट 2022!

  • एक फरवरी को एनडीए सरकार ने अपना नौवां बजट पेश किया जिसके माध्यम से अर्थव्यवस्था को लेकर अपनी मंशा बताने की कोशिश की गयी।
  • ढांचागत विकास या इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में एनर्जी ट्रांजिशन की बड़ी भूमिका बताई गयी। इतिहास में पहली बार, बजट भाषण में, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को ऐसे तरजीह मिली।
  • पर दूसरी तरफ सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनस और सिंगल विंडो से व्यवसाय के हरी झंडी देने के मामलें में सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई। देश के क्षीण होते वनों के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि ढांचागत विकास की बड़ी कीमत ये वन चुकाते आए हैं।

बीते 1 फरवरी को केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-23 का जो बजट पेश किया, वह प्रथम दृष्ट्या पर्यावरण संबंधी चुनौतियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया लगता है। पहली बार केंद्र सरकार की बजट में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का बार-बार उल्लेख किया गया। करीब डेढ़ घंटे चले अपने बजट भाषण में, वित्त मंत्री ने कई बार जलवायु परिवर्तन, नेट जीरो, एनर्जी ट्रांजिशन, ग्रीन बॉन्ड, सर्कुलर इकोनॉमी, बैटरी स्वैपिंग और बुनियादी ढांचे की स्थिति के साथ एनर्जी स्टोरेज सिस्टम का जिक्र किया।

आर्थिक सर्वेक्षण जिसे सामान्यतः बजट के साथ ही जोड़कर देखा जाता है, उसमें एक पूरा अध्याय सतत विकास (एसडीजी) और ऐसे मुद्दों को समर्पित किया गया है। इस अध्याय में देश में एसडीजी के कार्यान्वयन, वन आवरण, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन, भूजल संसाधन, नदी, वायु प्रदूषण प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन से निपटने की स्थिति की विस्तृत चर्चा की गयी है। आर्थिक सर्वेक्षण की प्रस्तावना में भी जलवायु परिवर्तन का जिक्र है जब सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार, इसे देश की अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद कुछेक बड़ी चुनौतियों के तौर पर दर्ज किया है। इसमें आगे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मिटीगेशन और एडॉप्टेशन को लेकर निवेश की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसके अतिरिक्त भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के कॉर्पोरेट पर्यावरण शासन को लेकर 2021 में तय किये गए मानकों की भी चर्चा की गयी है। वैश्विक पटल पर भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन से जोड़कर उठाए गए कदमों का जिक्र तो है ही।

इस बजट के हवाले से केंद्र सरकार अपनी मंशा बताती दिखती है। एक फरवरी को, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार की तरफ से यह नौवां वार्षिक बजट पेश किया गया। वित्त मंत्री सीतारमण ने अपने भाषण में बार-बार अमृत काल का जिक्र किया। इस बजट के माध्यम से वह राजनीतिक संदेश देने की कोशिश कर रहीं थी कि उनकी सरकार अगले 25 वर्षों तक सत्ता में रहने वाली है। अगला 25 वर्ष माने, देश तब अपनी स्वतंत्रता का 100 वीं वर्षगांठ मना रहा होगा।

केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी, 2022 को नई दिल्ली में केंद्रीय बजट 2022-23 पेश किया। तस्वीर- पीआईबी
केंद्रीय वित्त मंत्री मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी, 2022 को बजट 2022-23 पेश किया। तस्वीर- पीआईबी

यह बजट ऐसे समय में आया है जब देश की अर्थव्यवस्था को, कोविड महामारी की मार झेलने के बाद, पटरी पर लाने की कोशिश हो रही है। कई महत्वपूर्ण राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट भी सुनाई पड़ने लगी है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर 2022-23 के बजट को ऐसे डिजाइन किया गया है कि देश के विकास को लेकर सरकार की मंशा साफ दिखे। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि आर्थिक मोर्चे पर इस सरकार की आलोचना होती रही है। नोटबंदी, जीएसटी और कोविड महामारी के खराब संचालन को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है।

जाहिर हो रही है मंशा

वित्त मंत्री ने स्पष्ट कहा कि अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार की मंशा साफ है। सरकार का उद्देश्य एक ‘दूरदर्शी और समावेशी’ विकास प्रदान करना है। सरकार बड़े स्तर पर सार्वजनिक निवेश की मदद से आधुनिक ढांचा तैयार कर देश की सौवीं वर्षगांठ का आधार तैयार करने की कोशिश में है। इसके लिए चार मुख्य स्तम्भ गिनाए गए। इसमें पीएम गतिशक्ति, समावेशी विकास, उत्पादन और निवेश में वृद्धि, एनर्जी ट्रांजिशन और जलवायु परिवर्तन तथा और निवेश को जरूरी वित्त उपलब्ध कराना शामिल है।

पीएम गतिशक्ति योजना की मदद से देश के इन्फ्रास्ट्रक्चरप्रोजेक्ट के विकास पर जोर देना है। इस योजना में सड़क, रेलवे, उड्डयन, पोर्ट, वाटरवे और इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल है। अगर इसकी बारीकी पर बात करें तो इसमें आने वाले सालों में नेशनल हाईवे का 25,000 किमी का विस्तार किया जाना है, चार मल्टीमॉडल लोजिस्टिक्स पार्क्स बनाये जाने हैं, 2000 किमी लंबे रेल ट्रैक को मजबूत और उनकी क्षमता में विस्तार किया जाना है, 100 कार्गो टर्मिनल बनाये जाने हैं तथा शहरी मेट्रो सीस्टम तैयार होना है जिसे अन्य सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से जोड़ा जाएगा।

पीएम गतिशक्ति योजना की मदद से देश के इन्फ्रस्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के विकास पर जोर देना है। इस योजना में सड़क, रेलवे, उड्डयन, पोर्ट, वाटरवे और इन्फ्रस्ट्रक्चर शामिल है। तस्वीर-विशालनगुला / विकिमीडिया कॉमन्स
पीएम गतिशक्ति योजना की मदद से देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के विकास पर जोर देना है। इस योजना में सड़क, रेलवे, उड्डयन, पोर्ट, वाटरवे और इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल है। तस्वीर-विशालनगुला / विकिमीडिया कॉमन्स

इस कनेक्टिविटी बढ़ाने में नदियों को आपस में जोड़ना भी शामिल है। केन-बेतवा नदी जोड़ों परियोजना पर फिर से काम शुरू होगा। इसके अतिरिक्त पांच और  नदी जोड़ों परियोजना शुरू होगी। इसमें दमनगंगा-पिंजल, पार-तापी-नर्मदा, गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पेन्नार और पेन्नार-कावेरी नदियों को आपस में जोड़ा जाएगा। 

एनर्जी ट्रांजिशन पर जोर

देश के प्रधानमंत्री ने हाल ही में ग्लासगो में संपन्न संयुक्त राष्ट्र की सालाना बैठक (कॉप) में स्वच्छ उर्जा को नई प्रतिबद्धता जाहिर की। पुराने लक्ष्य से आगे जाते हुए गैर-जीवाश्म ईंधन से 500 गीगावाट ऊर्जा क्षमता विकसित करने की घोषणा की। इसको ध्यान में रखते हुए बजट भाषण में एनर्जी ट्रांजिशन पर भी जोर रहा। वित्त मंत्री ने बेहतर सोलर पीवी मॉड्यूल के उत्पादन से जोड़कर आर्थिक सहायता देने की घोषणा की।  

बजट में, ग्रिड-स्केल बैटरी सिस्टम को बुनियादी ढांचे के तौर पर देखे जाने की बात कही गयी। इससे इस क्षेत्र में निवेश के लिए क्रेडिट का रास्ता खुलेगा। एक बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी लाने की भी घोषणा हुई। बैटरी स्वैपिंग को बैटरी के अदला-बदली से समझा जा सकता है। इसके संचालन के लिए मानक तय किये जाने हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस नीति के से आने से लोगों के लिए इलेक्ट्रिक वाहन अपनाना आसान होगा।

इस बजट में एक खास बात कही गयी कि इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए सार्वजनिक निवेश पर जोर होगा। इसकी मदद से सरकार निजी निवेश को प्रोत्साहित करेगी। ग्रीन ढांचा या इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सरकार सावरेन ग्रीन बॉन्ड जारी करेगी और उसकी मदद से जरूरी धन इकट्ठा करेगी। इस फंड का इस्तेमाल सार्वजनिक क्षेत्र के प्रोजेक्ट पर होगा और उम्मीद की जा रही है कि इससे अर्थव्यवस्था का कार्बन इन्टेन्सिटी कम होगा। कार्बन इन्टेन्सिटी या कार्बन तीव्रता से तात्पर्य ऐसी क्षमता विकसित करनी है जिससे उत्पादन भी प्रभावित ना हो और कार्बन उत्सर्जन कम हो जाए। 

विकास की परियोजनाएं विशेषकर सड़क परियोजनाओं से जंगल का नुकसान होता है। जैसे गुजरात में प्रस्तावित बुलेट ट्रेन और केरल में प्रस्तावित सिल्वर लाइन हो या फिर गोवा में राजमार्गों के प्रस्तावित विस्तार से मोल्लेम नेशनल पार्क और कर्नाटक में बांदीपुर टाइगर रिजर्व पर प्रभाव पड़ा है। तस्वीर- कमलजीत के वी / विकिमीडिया कॉमन्स
विकास की परियोजनाएं विशेषकर सड़क परियोजनाओं से जंगल का नुकसान होता है। जैसे गुजरात में प्रस्तावित बुलेट ट्रेन और केरल में प्रस्तावित सिल्वर लाइन हो या फिर गोवा में राजमार्गों के प्रस्तावित विस्तार से मोल्लेम नेशनल पार्क और कर्नाटक में बांदीपुर टाइगर रिजर्व पर प्रभाव पड़ा है। तस्वीर– कमलजीत के वी / विकिमीडिया कॉमन्स

इस बजट में इलेक्ट्रॉनिक कचरा, पुरानी गाड़ियों को अन्य मकसद के लिए इस्तेमाल करने की बात की गयी और इस तरह सर्क्यलर अर्थव्यवस्था बनाने पर जोर रहा। कहा गया कि इससे नए उद्योग और रोजगार के लिए रास्ता खुलेगा। कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लिए ग्रीन बिल्डिंग, थर्मल पावर प्लांट में बायोमास छर्रों का उपयोग, कोयला गैसीकरण और कृषि वानिकी पर जोर दिया गया।

इन्फ्रास्ट्रक्चर की वजह से अर्थव्यवस्था की गति धीमी!

पिछले कुछ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था को कई झटकों से गुजरना पड़ा है और रोजगार का वृहत संकट पैदा हो गया है। इससे जुड़ी आलोचना से बचते हुए सरकार इस बजट के माध्यम से सार्वजनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर जोर दे रही है। इसके लिए सरकार सार्वजनिक फंड के इस्तेमाल के साथ-साथ कर्ज भी लेगी और उम्मीद यह है कि इस वजह से निजी निवेश भी बढ़ेगा। इस तरह अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर आ जाएगी। पुरानी एनडीए सरकार में ऐसा ही मॉडल अपनाया गया था।    

जब अटल बिहारी वाजपेयी 1999 और 2004 के बीच देश के प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज हाईवे नेटवर्क बनाने की घोषणा की थी। इस योजना में दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई- देश के चार बड़े शहरों को जोड़ना था। इसी के साथ उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम को जोड़ने की बात भी की गयी थी।  

आज हम देश में जो टोल राजमार्ग और एक्सप्रेस वे देखते हैं इनकी बीज उन्हीं चार-लेन हाईवे के साथ, रखी गयी थी। अब वे चार-लेन वाले हाईवे अधिकांश जगह पर छः-लेन में बदले जा चुके हैं। अब तो ये सड़कें इतनी मशहूर हुईं कि आर्थिक सर्वेक्षण में टोल से जमा हुए पैसे की मदद से अर्थव्यवस्था की नब्ज टटोली जाती है। इसकी हालत का अनुमान लगाया जाता है।

“भारत जैसे विकासशील देशों में मांग खुद-ब-खुद नहीं उत्पन्न होती,” यशवंत सिन्हा ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया अनमेड: हाउ द मोदी गवर्नमेंट ब्रोक द इकॉनोमी’ में लिखा है। यह किताब 2018 में जगरनौट (जगरनॉट बुक्स) बुक्स से प्रकाशित हुई थी।  सिन्हा, वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रह चुके हैं। लिखते हैं कि यदि आप चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़े तो आपको मांग पैदा करनी होगी। यह आर्थिक नीतियों का एक प्रमुख लक्ष्य होता है। पर इसे हासिल करने के तरीके क्या हैं? इसका एक तरीका है कि बड़े प्रोजेक्ट की शुरुआत की जाए जिससे निवेश से जुड़े सामानों की मांग बढ़ेगी। दूसरा तरीका है कि आप लोगों को पैसा दें ताकि वे खर्च करने में हिचकिचाएं नहीं। ऐसा करने से भी मांग या खपत में इजाफा होता है।

“वाजपेयी सरकार में हमने जानबूझकर पहले निवेश वस्तुओं की मांग प्रोत्साहित करने और बाद में उपभोग की वस्तुओं की मांग को क्रमबद्ध करने की नीति का पालन किया। सबसे पहले हमलोगों ने सड़क, टेलीकॉम, आवास इत्यादि को लेकर प्रोजेक्ट बनाये जिससे अन्य क्षेत्र को प्रोत्साहन मिला। ऐसे क्षेत्रों में सीमेंट, स्टील, अन्य निर्माण सामग्री इत्यादि शामिल है। इससे रोजगार सृजन हुआ, लोगों की आमदनी बढ़ी इस तरह उपभोग की वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि हुई।”

क्या बजट हरे-भरे जीवन के पक्ष में है?

इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के अपने पर्यावरण संबंधित चुनौतियां हैं। ऐसा ही बड़े पैमाने पर नवीन ऊर्जा के इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ भी है। गुजरात में प्रस्तावित बुलेट ट्रेन और केरल में प्रस्तावित सिल्वर लाइन हो या फिर गोवा में राजमार्गों के प्रस्तावित विस्तार से मोल्लेम नेशनल पार्क और कर्नाटक में बांदीपुर टाइगर रिजर्व को प्रभावित करने वाले प्रोजेक्ट हों। इनका लगातार विरोध होता रहा है। ऐसी परियोजनाओं से होने वाले पर्यावरण और सामाजिक नुकसान की बात लोग उठाते रहे हैं।

इसलिए इस हालिया बजट को सरकार के पुराने रिकार्ड से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस या कहें व्यवसाय को आसान बनाने की प्रक्रिया में एनडीए सरकार पर्यावरण नियमों को लगातार कमजोर करती रही है। किसी परियोजना के पर्यावरण संबंधी प्रभाव का आकलन करने की प्रक्रिया को भी कमजोर किया गया है।

हिमाचल प्रदेश के शिमला सोलन हाइवे पर फोर लेन का काम चल रहा है। सड़क चौड़ा करने के लिए पत्थरों को काटा जा रहा है जिससे पहाड़ की पारिस्थितिकी पर बुरा असर होगा। तस्वीर- कपिल काजल
हिमाचल प्रदेश के शिमला सोलन हाइवे पर फोर लेन का काम चल रहा है। सड़क चौड़ा करने के लिए पत्थरों को काटा जा रहा है जिससे पहाड़ की पारिस्थितिकी पर बुरा असर होगा। तस्वीर- कपिल काजल

बजट में इसका भी उल्लेख किया गया, “हाल के वर्षों में, 25,000 से अधिक अनुपालन (कंप्लायंसेस) कम किए गए और 1486 केंद्रीय कानूनों को निरस्त कर दिया गया। यह ‘मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस’ के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का एक उदाहरण है। इससे जनता में हमारे विश्वास और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की भी झलकी मिलती है।” बजट दस्तावेज़ में सिंगल विंडो पोर्टल ‘परिवेश’ का भी जिक्र है। कहा जाता है कि इस पोर्टल की वजह से नई योजनाओं के अनुमोदन की प्रक्रिया में काफी कम समय लगता है। बजट में सरकार ने वादा किया कि अमृत काल में कारोबार करना और भी आसान हो जाएगा।

सामान्यतः बुनियादी ढांचा से जुड़े प्रोजेक्ट के विकास का सीधा असर वनों क्षति के रूप में होता है। इस बार के आर्थिक सर्वेक्षण में इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 को विस्तार से उद्धृत किया गया है। “2011-21 के दौरान वन क्षेत्र की अधिकांश वृद्धि घने वन क्षेत्र में हुई है। इस दस सालों में ऐसे वन क्षेत्र में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आने वाले भविष्य में वन और वृक्षों के आवरण में और सुधार करने की आवश्यकता है। इस उद्देश्य को हासिल करने में सामाजिक वानिकी की बड़ी भूमिका हो सकती है।”

हालांकि मोंगाबे-हिन्दी ने हाल ही में आए नवीनतम आईएसएफआर रिपोर्ट के आंकड़ों के विश्लेषण किया तो पता चला कि पौधरोपण को वन के तौर पर दिखाया जा रहा है और दूसरी तरफ घने वन में कमी आई है।

अगर ऐसे देखा जाए तो भले केंद्र सरकार एनर्जी ट्रांजिशन को इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के हिस्से के तौर पर आगे बढ़ा रही हो पर बजट की हरि-भारी भाषा के बावजूद भी, पर्यावरण को अंततः नुकसान ही होना है।

(यह कॉलम मोंगाबे इंडिया से साभार लिया गया है।)

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