ठोस कचरा प्रबंधन यूं तो पूरे देश में एक समस्या है लेकिन हिमालयी राज्यों में सॉलिड वेस्ट का निस्तारण ठीक से न हो पाना एक विकराल समस्या बन गया है। खासतौर से हिमालय की संवेदनशील इकोलॉजी और यहां पर मौजूद अनमोल वनस्पतियों और जीव जंतुओं को कारण यह मसला और भी अहम है। नेटवर्क – 18 में छपी रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड में जगह-जगह बढ़ते कूड़े के पहाड़ यहां के जल स्रोतों और नदियों के साथ-साथ जंगली जानवरों के लिये भी समस्या बन गये हैं। उत्तराखंड के 13 में से 9 ज़िले पहाड़ी क्षेत्र में हैं और यहां तकरीबन सारा कूड़ा जंगलों में फेंका जा रहा है। इससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है। नीति आयोग पहले ही कह चुका है कि उत्तराखंड में 60% अधिक जलापूर्ति भू जल स्रोतों से हो रही है। जानकारों का मानना है कि यह सारा कचरा जलस्रोतों को खत्म कर रहा है।
महत्वपूर्ण है कि संसद में सरकार खुद कह चुकी है कि उत्तराखंड ठोस कचरा प्रबंधन के मामले में देश के सबसे फिसड्डी राज्यों में है। पिछले साल एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि राज्य में हर रोज़ 1,400 टन से अधिक कचरा निकलता है लेकिन ज़ीरो प्रतिशत ट्रीट किया जाता है। साल 2016 में ठोस कचरा प्रबंधन के लिये जो नियम बने उनमें साफ कहा गया है कि पहाड़ी इलाकों में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट उस तरह नहीं किया जा सकता जैसे मैदानी इलाकों में किया जाता है। हालांकि सरकार खराब हालात के लिय लोगों में जागरूकता की कमी को ज़िम्मेदार ठहराती है लेकिन कई बार प्रशासन अपनी नाकामी को छुपाने के लिये भी ऐसे बहाने बनाता है। पहाड़ की इकोलॉजी को बचाने के लिये कड़े नियम बनाने और लागू करने की ज़रूरत है। सिक्किम और काफी हद तक हिमालय जैसे राज्यों ने इस ओर रास्ता दिखाया है।
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