दुनिया के दो देशों के बीच लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) के प्रयोग को लेकर समझौता हुआ है जिसे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में – कम से कम पारदर्शिता के लिहाज से – अहम माना जा रहा है। इस्तेमाल के हिसाब से नेचुरल गैस दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते जीवाश्म ईंधनों में एक है और इसे अपेक्षाकृत साफ ईंधन माना जाता है। समझौते के मुताबिक अगले 10 साल तक गैस की हर खेप के साथ यह विवरण स्पष्ट रूप से दिया जायेगा कि उससे (कुंऐं से निकालने से लेकर डिलीवर करने तक) कितना कार्बन या ग्रीन हाउस गैस इमीशन हुआ।
ये गैस पैवेलियन एनर्जी नाम की कंपनी द्वारा डिलीवर होगी जिसे मार्च में यह ठेका मिला। यद्यपि कंपनी के सीईओ ने कहा है कि वह पूरी प्रक्रिया में होने वाले इमीशन को ऑफसेट करने के लिये कृतसंकल्प हैं लेकिन इस डील में कंपनी पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है कि वह अपने इमीशन को किसी तकनीक द्वारा निरस्त करे। हालांकि इस डील से यह रास्ता खुल सकता है कि अमेरिका, रूस और दूसरे OPEC सदस्य देश जो गैस बेचते हैं उसका विवरण इसी तरह जारी करें।
नेट-ज़ीरो के लिये जापान की नज़र हाइड्रोज़न पर
जापान हाइड्रोजन की खपत बढ़ाने के लिये $425 अरब का निवेश करेगा ताकि कोयले का प्रयोग बन्द कर वह 2050 तक नेट ज़ीरो इमीशन के लक्ष्य को हासिल कर सके। जापान दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा उत्सर्जक है और अभी उसका सीमेंट, स्टील और भारी उद्योग बहुत हद तक जीवाश्म ईंधन पर ही टिका है और देश की साफ ऊर्जा उत्पादन की क्षमता सीमित है। जानकारों ने ऐसे हालात में सरकार को हाइड्रोजन के इस्तेमाल की सलाह दी है जो अपेक्षाकृत सस्ता और कारगर ईंधन है।
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