clean air during lockdown

लम्बी लड़ाई: कोरोना के कारण जो लॉकडाउन हुआ उसे हवा में अभूतपूर्व सुधार दिखा है। इससे हमें आने वाले दिनों के लिये रोडमैप बनाने का सुनहरा अवसर भी मिला है। फोटो - Trail Magazine

क्या है साफ हवा की कीमत और प्रदूषण का कोरोना वाइरस से रिश्ता

कोरोना महामारी ने हमें घरों में कैद कर लिया है। प्रधानमंत्री के नये ऐलान के बाद अब लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ गया है। इस दौर में लोगों को हो रही परेशानी और अर्थव्यवस्था को लगे झटके के बीच एकमात्र सकारात्मक चीज साफ होती हवा है। कुछ देर के लिये और भारी आर्थिक कीमत के बदले ही मिली हो लेकिन देश के 90 शहरों की हवा अपने रिकॉर्ड स्तर पर साफ हो गई है। देश के 5 सबसे प्रदूषित कहे जाने वाले दिल्ली, गाज़ियाबाद, नोयडा, ग्रेटर नोयडा और गुड़गांव में लाकडाउन (24 मार्च) से पहले की तुलना में 50% प्रदूषण घटा है। दुनिया के दूसरे बड़े प्रदूषित शहर बीजिंग, बैंकॉक, साओ पालो और बोगोटा में भी फिज़ा साफ हो गई है।

सोशल मीडिया में साफ हवा की तस्वीरें और वीडिया शेयर करके जश्न मनाये जा रहे हैं। जालंधर से हिमालय के दृश्य पिछले दिनों यू-ट्यूब से फेसबुक और दूसरे प्लेटफॉर्म तक हर जगह देखे गये। निर्माण कार्य और ट्रैफिक मूवमेंट का रुकना हवा के साफ होने के पीछे दो बड़े कारण हैं। साल 2011 में सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया कि देश के 6 शहरों में निर्माण कार्य से उड़ने वाली धूल PM 10 कणों का 58% होती है जबकि वाहनों से निकलने वाला धुंआं PM 2.5 और NOx जैसे खतरनाक प्रदूषण की वजह है।

दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेड इंस्टिट्यूट (टैरी) ने 2018 में जो रिपोर्ट तैयार की उसके मुताबिक दिल्ली में PM 2.5 की 39% वाहनों से था। इस शोध के मुताबिक वाहन 19% PM 10 कणों के लिये और 81% NOx के लिये ज़िम्मेदार थे। लॉकडाउन से ये सारे प्रदूषक गायब से हो गये हैं। दिल्ली, नोयडा, गुरुग्राम और जयपुर में लॉकडाउन के बाद PM 2.5 और PM 10 में 40% से अधिक गिरावट हुई है, बहुत सारे शहरों में NOx के स्तर में 50% कमी आई है। कानपुर में यह 72% गिरा है। 

“प्रदूषण में यह गिरावट ट्रैफिक, निर्माण कार्यों, उद्योग और ईंट भट्ठों का काम रुकने से हुई है लेकिन पहली बार हमारे पास यह जानने का अवसर है कि भारत में PM और अन्य गैसों का बैक ग्राउंड स्तर क्या है और मौसमी कारकों का क्या प्रभाव है।” आईआईटी दिल्ली में वायुमंडलीय कारकों का अध्ययन कर रहे प्रो. साग्निक डे कहते हैं।

हालांकि मौजूदा हाल में भारत में वायु प्रदूषण की मॉनिटरिंग की खामियां भी दिख रही हैं। पुणे, मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद के मॉनिटरिंग स्टेशन 6 अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह में वायु प्रदूषण में भारी कमी दिखाते हैं लेकिन चेन्नई के चार स्टेशन 23 से 30 मार्च के  बीच ज़ीरो या बहुत कम अंतर  दिखाते हैं। फिर भी यह सच सबके सामने है कि हवा बहुत अधिक साफ हुई है। वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर क्या असर है औऱ इंसानी जीवन को वह कैसे लील रहा है उस बारे में हम आपको कार्बन कॉपी में लगातार बताते रहे हैं। आप हमारी वेबसाइट पर विस्तार से ये ख़बरें पढ़ सकते हैं।

वर्तमान हालात में यह बहस तेज़ है कि क्या प्रदूषण दम घोंटू बीमारियों से आगे जाकर कोरोना जैसे वायरस का वाहक बन सकता है। “प्रदूषण कोरोना वाइरस को फैला रहा है यह तो सीधे तौर पर नहीं कहा जा सकता लेकिन लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से बीमार पड़ने की संभावना बढ़ती है, जो कोविड -19 को अप्रत्यक्ष रूप से अधिक ख़तरनाक बनाता है। अगर हम थ्योरी के हिसाब से देखें तो हवा में लटके प्रदूषण के कण वायरस को चिपकने के लिये एक सतह प्रदान करते हैं। इससे कोरोना को फैलने के लिये एक ज़रिया मिल सकता है और अगर लोग लंबे समय तक प्रदूषित हवा में हैं तो संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। प्रदूषण में एकाएक गिरावट से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं सुलझेंगी। हमें इसके लिये लंबी तैयारी करनी होगी।” दिल्ली विश्वविद्यालय में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के निदेशक अरुण शर्मा कहते हैं।

जानकारों की राय से समझ आता है कि हवा साफ करने के लिये जो नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) पिछले साल शुरू किया गया है वह कितना अहम है। लेकिन अभी इस प्रोग्राम की कवरेज और इसके लक्ष्य को काफी मज़बूत किये जाने की ज़रूरत है। NCAP के तहत अभी महज़ 122 शहर शामिल हैं जिन्हें 2024 तक केवल 30% प्रदूषण कम करना है। ज़ाहिर है प्रदूषण से हो रही बीमारियों के फैलाव का जो अलार्म बेल पिछले कुछ वक्त में  सुनाई दिया है उसे देखते हुये इस क्लीन एयर प्रोग्राम को काफी सुदृढ़ करने की ज़रूरत है। कोरोना महामारी से निकलने के बाद एक बार फिर से हम गैस चैंबर में घुस सकते हैं और तब साफ हवा का जो तात्कालिक फायदा होता दिखता है वह हमारे पास नहीं रहेगा।

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