OPEC के सदस्य देशों और रूस ने तेल का उत्पादन 10 % घटाया लेकिन सऊदी अरब ने कच्चे तेल की कीमतें फिर गिरा दी हैं। सऊदी अरब एशियाई देशों खासतौर से चीन को भारी छूट के साथ कम कीमत पर तेल देने की पेशकश कर रहा है ताकि वह ऑइल मार्केट पर कब्जा बनाये रख सके। इसलिये 36 डॉलर तक पहुंचने के बाद तेल की कीमत फिर 30 डालर प्रति बैरल पर आ गई।
उधर तेल निकालने के काम लगभग बन्द होने के कारण अमेरिकी तेल बाज़ार ठंडा है और कीमतें 21 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है जो बहुत कम है। माना जा रहा है कि कोरोना संकट टलने तक अमेरिकी बाज़ार को 30 डालर प्रति बैरल की कीमतों से संतोष करना पड़ेगा लेकिन इससे कई लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ सकता है। बाज़ार में मांग घटने के कारण अमेरिका की शेल गैस का बाज़ार भी ठंडा पड़ा है।
जर्मन कार निर्माताओं ने EU से नियमों में ढील मांगी
कोरोना संकट की वजह से कारों की सेल गिर गई है। अब जर्मनी के परेशान कार निर्माताओं ने यूरोपियन यूनियन से कहा है कि कड़े इमीशन स्टेंडर्ड्स में कुछ राहत दी जाये। यूरोपियन यूनियन के ताज़ा नियमों के तहत कार निर्माताओं को “साफ कारें” बनानी हैं जो बेहत कम इमीशन करती हैं। इसका मकसद EU के कार्बन उत्सर्जन घटाना है लेकिन कार निर्माताओं का कहना है कि “अभी इसका वक्त नहीं है।”
उधर इन्वायरेंमेंटल एक्शन जर्मनी ने कार निर्माताओं की इस मांग की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि इंडस्ट्री महामारी को “EU के क्लाइमेट लक्ष्य में सेंध” लगाने के लिये इस्तेमाल न करे। हालांकि इस तरह की मांग सिर्फ जर्मन बाज़ार ने नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया और भारत समेत दूसरे देशों के कार निर्माताओं ने भी की है।
केलिफोर्निया में फ्रेकिंग फिर से शुरू
अमेरिका के केलिफोर्निया राज्य ने 9 महीने की पाबंदी के बाद फिर से फ्रेकिंग के लाइसेंस जारी किये हैं। यह लाइसेंस 24 कुंओं से पेट्रोलियम उत्पाद निकालने के लिये दिये गये हैं। इससे पहले राज्य के गवर्नर गेविन न्यूसॉम ने फ्रेकिंग पर पाबंदी का वादा किया था। माना जा रहा है कि कंपनियों को दिये गये लाइसेंस को कोर्ट में चुनौती दी जायेगी। इसके लिये UK के कानून का हवाला दिया जा रहा है जिसे बनाने से पहले किये गये शोध में पता चला था कि फ्रेकिंग उस क्षेत्र को अस्थिर बनाती है और भूकंप की संभावना बढ़ाती है।
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