अक्षय ऊर्जा कंपनियां सुप्रीम कोर्ट से अपने उस फैसले पर फिर से विचार करने की अपील कर सकती हैं जिसमें कोर्ट ने गुजरात और राजस्थान में ज़मीन के भीतर बिजली की लाइन बिछाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में यह फैसला विलुप्त हो रही ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (एक विशाल चिड़िया) को ध्यान में रखते हुये दिया। जिन कंपनियों पर कोर्ट के इस फैसले का असर पड़ेगा उनमें अडानी ग्रीन, टाटा पावर रिन्यूएबल, रिन्यू पावर और हीरो शामिल हैं। एनर्जी वर्ल्ड डॉट कॉम में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक कंपनियां चाहती हैं कि कोर्ट यह फैसला एक सीमित क्षेत्र पर ही लागू करवाये।
ढुलमुल नीतियों से सौर ऊर्जा क्षेत्र पर संकट
सरकार की नीतियों में अनिश्चितता का असर सौर ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ रहा है। सरकार ने 2015 में हुई पेरिस संधि में घोषणा की थी कि 2022 तक अक्षय ऊर्जा की 175 गीगावाट की क्षमता विकसित की जाएगी लेकिन अब तक कुल 95 गीगावाट का लक्ष्य हासिल किया जा सका है। यह मुमकिन नहीं है कि बचे एक साल में सरकार बाकी की दूरी तय कर ले। इसी तरह साल 2030 तक भारत का लक्ष्य 450 गीगावाट साफ ऊर्जा क्षमता विकसित करने का है। मोंगाबे इंडिया में छपी रिपोर्ट बताती है कि सरकारों के मनमाने फैसले इस राह में बाधा बन रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार ने – इस उम्मीद में कि पुनः नीलामी करने पर और सस्ते दरों पर बिजली मिलेगी – निजी डेवलपर्स के साथ सौर ऊर्जा के कुछ पुराने बिजली खरीद समझौते (पीपीए) को रद्द कर दिया है। जानकार कहते हैं कि अगर राज्य सरकारें निवेशकों और डेवलपर्स के साथ नीलामी के तहत किए गए शर्तों का पालन नहीं करती हैं तो इससे साफ ऊर्जा को लेकर दीर्घकालिक लक्ष्य हासिल नहीं कर पायेंगी। इन लक्ष्यों को पाने के लिये भारी निवेश की जरूरत है और यह तभी संभव होगा जब निवेशकों को देश में एक स्पष्ट नीति का पालन होता दिखे।
सोलर उपकरणों का आयात महंगा होने से मुनाफे पर चोट
रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने चेतावनी दी है कि सोलर उपकरणों के आयात में तेज़ी से बढ़ोतरी से उत्पादकों का मुनाफा गिरेगा। आयातित फोटो वोल्टिक सोलर मॉड्यूल्स का की कीमत 22-23 प्रतिशत प्रति वॉट बढ़ गई है जो कि पिछले कुछ महीनों में ही 15% से 20% की बढ़ोतरी है। यह वृद्धि पॉलीसिलिकॉन के दाम बढ़ने से हुई है। इसकी सबसे अधिक चोट उन उत्पादकों पर होगी जिनको पिछले 6 से 9 महीने के बीच ₹ 2 से ₹ 2.25 प्रति यूनिट की दर से ठेके मिले हैं और अगले 12 से 15 महीने में काम पूरा करना है। जानकार कहते हैं कि अगर बेसिक कस्टम ड्यूटी को शामिल कर लिया जाये तो पूरे प्रोजेक्ट की 50-55 प्रतिशत कीमत इस पीवी मॉड्यूल के कारण ही होती है
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
40% आयात शुल्क के कारण एक्मे-स्कैटेक ने 900 मेगावाट की सौर परियोजना रोकी
-
हरित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को सकल घरेलू उत्पाद का 11% खर्च करना होगा, 40% खर्च नवीकरणीय ऊर्जा में होना चाहिए: मैकिन्से
-
भारत साफ ऊर्जा के संयंत्रों को ग्रिड से जोड़ने के लिये लगाएगा 161 करोड़ डॉलर
-
मिशन 500 गीगावॉट और नेट ज़ीरो वर्ष का हुआ ऐलान पर व्यवहारिक दिक्कतें बरकार
-
साफ ऊर्जा बढ़ाने के लिये भारत की “मिशन 500 गीगावॉट” की योजना