एक खोजी न्यूज़ रिपोर्ट से पता चला है कि यूनाइटेड किंगडम की एक एक्सपोर्ट क्रेडिट एजेंसी, यूके एक्सपोर्ट फाइनेंस ब्राज़ील में समुद्र के भीतर एक तेल और गैस प्रोजेक्ट पर पैसा लगायेगी। यह काम यूके के भीतर या बाहर सरकार द्वारा तेल और गैस में फाइनेंसिंग पर पाबंदी से ठीक पहले किया जा रहा है। अगर यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ तो यह निर्माण और ऑपरेशन से ही हर साल यह 20 लाख टन CO2 छोड़ेगा। इसके अलावा इसके हाइड्रोकार्बन से चलने वाली कारें 8 लाख टन अतिरिक्त CO2 छोड़ेंगी।
अभी इसे हरी झंडी नहीं मिली है लेकिन इस प्रस्ताव की भारी आलोचना हो रही है क्योंकि यूके ने पहले जीवाश्म ईंधन के हर तरह के प्रोजेक्ट्स की फाइनेंसिंग बैन की थी। यूके में इसी साल 2021 में जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन COP-21 होना है जिसमें पेरिस डील के आगे के रास्ते पर विचार होगा। साल 2016 में पेरिस डील के लागू होने के बाद से यह कंपनी जीवाश्म पर 350 करोड़ पाउण्ड की फंडिंग कर चुकी है।
ग्रीनपीस: यूके के समुद्र में जानबूझ कर जलाई जा रही गैस
ग्रीनपीस की एक पड़ताल कहती है कि यूके के उत्तरी समुद्र तट के भीतर साल 2019 में इतनी गैस जानबूझ कर जलाई गई जो 10 लाख घरों में हीटिंग के लिये पर्याप्त है। तेल कुंओं से निकलने वाली फालतू गैस को जलाने की ये प्रक्रिया “फ्लेरिंग” कही जाती है। ग्रीनपीस की पड़ताल में पाया गया है कि कंपनियों ने पिछले पांच साल में इन कुंओं से 2 करोड़ टन CO2 वातावरण में छोड़ी गई है। महत्वपूर्ण है कि इस तरह गैस को जलाने से बचा जा सकता है। नॉर्वे ने 1970 से ही इस पर रोक लगाई हुई है। सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक शेल ने कहा है कि उसने पिछले पांच साल में “फ्लेरिंग” 19% कम की है जबकि बीपी का कहना है कि वह 2027 तक इसे बन्द कर देगा।
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