पिछले 70 दिन से असम के तिनसुकिया में सरकारी कंपनी OIL के ऑयल फील्ड में लगी आग धधक रही है। इस विनाशकारी आग को बुझाने के लिये की जा रही कोशिशें नाकाम हो रही हैं। पिछली एक अगस्त को आग पर काबू पाने की एक और कोशिश नाकाम हो गई। आयल फील्ड में एक और धमाके में सिंगापुर से बुलाये गये 3 एक्सपर्ट घायल हो गये। इससे पहले 9 मई हुई दुर्घटना में दो कर्मचारियों दुर्लव गोगोई और टिकेश्वर गोहेन की मौत हो गई थी।
इस बीच एक एक्सपर्ट पैनल ने जांच में पाया है कि बाघजन अग्निकांड में सरकारी पेट्रोलियम कंपनी OIL ने कई स्तर पर कोताही बरती। प्लानिंग से लेकर, नियमों को लागू करने और आपरेशन के सुपरविज़न तक में कमियां पाई गईं। पैनल ने कहा है कि कंपनी के पास ड्रिलिंग और आपरेशन के लिये ज़रूरी अनुमति भी नहीं थी। कुल 406 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना किसी टेस्टेड सेफ्टी ( सुरक्षा परीक्षण) बैरियर के कंपनी ने काफी संवेदनशील ड्रिलिंग आपरेशन (BOP) को अंजाम दिया। योजना और उसके क्रियान्वयन में कोई तालमेल नहीं था।
इसके अलावा कंपनी ने जल और वायु प्रदूषण निरोधी कानूनों का भी उल्लंघन किया। यह ऑयल फील्ड 17 साल पहले 2003 में लगाया गया था। कंपनी ने दो साल के भीतर ही इसे माइनिंग लीज़ पर देना शुरू किया और यहां आज 23 ऑयल और गैस ड्रिल चल रहे हैं। जांच पैनल की रिपोर्ट बताती है कि बहुत सी ड्रिल बिना अनुमति के नियम कानूनों के पालन के चल रही थीं। साल 2012 में नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने भी इस संवेदनशील क्षेत्र में इसी तरह कानून की अवहेलना पर चिन्ता जताई थी।
इस घटना का जहां पेट्रोलियम उत्पादन पर असर पड़ा है वहीं दूसरी ओर विस्फोट के तुरंत बाद ही कम से कम 9000 लोगों को यहां से हटा कर राहत कैंपों में भेजना पड़ा था। उधर डब्लू आई आई ने अपने रिपोर्ट में साफ कहा है कि 65 से 70 हेक्टेयर में आग लगने और तेल बिखर जाने से काफी बर्बादी हुई है। यहां खेतों में खड़ी फसल के साथ घास के मैदानों और दल-दलीय क्षेत्र नष्ट हो गये हैं जो पर्यावरण के हिसाब से काफी घातक है। महत्वपूर्ण है कि इसी इलाके में ड्रिबू-सैखोवा नेशनल पार्क भी है जो जैव विविधता और वन्य जीवों के लिये जाना जाता है। ऑयल इंडिया इस क्षेत्र में कई नये ड्रिल शुरु करना चाहती है लेकिन स्थानीय लोगों में अविश्वास गहरा गया है और गुस्सा भड़क रहा है। माना जा रहा है कि अगर न्यायपूर्ण जन सुनवाई नहीं हुई तो विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला तेज़ हो सकता है। तमिलनाडु का उदाहरण हमारे सामने है जहां कावेरी डेल्टा पर पेट्रोलियम के दोहन के खिलाफ छात्रों से लेकर किसानों ने जनकर विरोध किया लेकिन केंद्र सरकार दूसरी ही दिशा में चलती दिखी।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
चौबीस घंटों में ही टूटा सबसे गर्म दिन का रिकॉर्ड, जुलाई 22 रहा पिछले 84 सालों में सबसे गर्म दिन
-
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की नज़र से बजट की प्रमुख बातें
-
सड़क की धूल के प्रबंधन में खर्च की गई एनसीएपी की 64% फंडिंग: सीएसई
-
क्या 2035 तक रहने लायक नहीं रहेगा भारत?
-
सबसे लंबे और घातक गर्मियों के मौसम से जूझ रहा है भारत: आईएमडी