जाड़ों में भारत में वायु प्रदूषण बहुत खतरनाक स्तर तक ऊपर जाने लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते राजधानी में प्रदूषण को लेकर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि ‘लोगों को जबरन गैस चैंबर में रहने को क्यों कहा जा रहा है।’ कोर्ट ने सॉलिसटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘ऐसे हालात से बेहतर है कि उन्हें (लोगों को) एक ही बार में मार दिया जाए। लोगों को तिल-तिलकर मारने से अच्छा है कि 15 बस्तों में विस्फोटक भर कर उन्हें एक ही बार में खत्म कर दिया जाए।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर साफ हवा और पानी मुहैया नहीं करा सकती तो सरकार लोगों को मुआवज़ा दे। इस बारे में अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और यूपी की सरकारों से कहा कि उन्हें दिल्ली वासियों को मुआवज़ा देना चाहिये। कोर्ट ने अधिकारियों से कहा कि वह वायु प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिये एक दीर्घकालिक योजना बनायें।
कोर्ट के यह कड़े शब्द प्रदूषण के बिगड़ते हालात पर अलार्म बेल की तरह हैं। जाने माने यूरोपियन मेडिकल जर्नल लांसेट से जुड़े लांसेट काउंटडाउन – 2019 की विशेष रिपोर्ट कहीं बड़े ख़तरों के बारे में बताती है। यह रिपोर्ट कहती है कि आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन की वजह से एयर क्व़ालिटी और अधिक खराब होगी जिससे फेफड़ों और दिल की बीमारियां बढ़ेंगी। लांसेट और SoGA जैसी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के अलावा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (ICMR) की रिपोर्ट कह चुकी हैं कि भारत में हर साल 10 लाख से अधिक लोग वायु प्रदूषण से मरते हैं। दिल्ली में साल भर प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से 11 गुना अधिक रहता है। दीवाली के बाद के दिनों में यह स्तर सुरक्षित सीमा से 40-45 गुना अधिक ख़राब हो जाता है।
हालांकि दिल्ली राजधानी है जहां होने वाला प्रदूषण टीवी चैनलों और राष्ट्रीय अख़बारों की सुर्खियाँ बनता है लेकिन देश के तमाम हिस्सों खासतौर से सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों वाले अधिकांश शहर प्रदूषण का शिकार हैं। उधर राजस्थान जैसे राज्यों में माइनिंग और स्टोन क्रशर्स का आतंक है जो दिन रात प्रदूषण कर लोगों को बीमार कर रहे हैं। दिल्ली में दो-तिहाई प्रदूषण के लिये ट्रांसपोर्ट, उद्योग और बिजली सेक्टर ज़िम्मेदार है। हालांकि सरकार प्रदूषण और उत्सर्जन के नये मानकों को लागू करने की योजना बनाती रही है लेकिन लागू करने में कड़ाई का अभाव और ढुलमुल नीति आड़े आती है। भारत के पड़ोसी चीन ने वायु प्रदूषण से लड़ने में कहीं अधिक संकल्प दिखाया है। चीन की हवा आज भारत के मुकाबले कई गुना अधिक साफ है क्योंकि वहां मानकों को कड़ाई से लागू करने के लिये सख्त नियम हैं। सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली के आसपास ताप बिजली घरों द्वारा 2015 में बनाये गये नियमों के तहत प्रदूषण नियंत्रण उपकरण न लगाना है। इस साल के अंत तक राजधानी के आसपास 30 से अधिक यूनिटों को कार्बन के साथ SO2 और NO2 को रोकने की टेक्नोलॉजी लगानी थी पर वह होता नहीं दिखता।
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