भारत में साल 2019 में कोयले पर निवेश (साल 2018 के मुकाबले) 126% कम हुआ है जिससे स्पष्ट है कि ईंधन के तौर पर कोयले की मांग कम हो रही है। उधर कोयला मंत्रालय द्वारा जारी किये गये आंकड़े बताते हैं कि इस साल कोयला ब्लॉक नीलामी की घोषणा के बाद 38 में से 15 कोयला खदानों के लिये कोई बोली लगाने वाला नहीं मिला जबकि 20 खदानों के लिये केवल एक बिडर आया। यह नीलामी कोल सेक्टर में तेज़ी लाने के उद्देश्य से की गई। वैसे कोयले की मांग गिर रही है और कोयला बिजलीघर वायु प्रदूषण रोकने के लिये तय मानकों को पूरा न करने के कारण अदालत में हैं। कोयला खदान नीलामी के वक्त यह भी कहा गया कि इससे 2.8 लाख करोड़ नौकरियां मिलेंगी हालांकि कोयला मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस आंकड़े के लिये उनके पास कोई आधार नहीं है। यह दिलचस्प है कि अडानी ग्रुप ने भी बोली लगाई हालांकि उसने पहले कहा था कि नीलामी में उसकी दिलचस्पी नहीं है।
सिंगापुर-कतर के बीच उत्सर्जन पर समझौता
इस साल दुनिया के दो देशों के बीच लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) के प्रयोग को लेकर हुए समझौते को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में – कम से कम पारदर्शिता के लिहाज से – अहम माना जा रहा है। यह एक स्थापित सच है कि नेचुरल गैस दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते जीवाश्म ईंधनों में एक है और इसे अपेक्षाकृत साफ ईंधन माना जाता है। कतर और सिंगापुर के बीच हुए समझौते के मुताबिक अगले 10 साल तक गैस की हर खेप के साथ यह विवरण स्पष्ट रूप से दिया जायेगा कि उससे (कुंए से निकालने से लेकर डिलीवर करने तक) कितना कार्बन या ग्रीन हाउस गैस इमीशन हुआ।
ये गैस पैवेलियन एनर्जी नाम की कंपनी द्वारा डिलीवर होगी जिसे मार्च में यह ठेका मिला। यद्यपि कंपनी के सीईओ ने कहा है कि वह पूरी प्रक्रिया में होने वाले इमीशन को ऑफसेट करने के लिये कृतसंकल्प हैं लेकिन इस डील में कंपनी पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है कि वह अपने इमीशन को किसी तकनीक द्वारा निरस्त करे। हालांकि इस डील से यह रास्ता खुल सकता है कि अमेरिका, रूस और दूसरे OPEC सदस्य देश जो गैस बेचते हैं उसका विवरण इसी तरह जारी करें।
जीवाश्म ईंधन: 47 धर्म संस्थानों ने दूर रहने की घोषणा की
दुनिया के 47 धर्म संस्थानों ने इस साल एक साथ घोषणा की है वो जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को बन्द करेंगे। घोषणा करने वाले संस्थानों में 21 देशों के कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और यहूदी समुदाय शामिल हैं और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बन्द करने या घटाने के लिये यह धर्म संस्थानों द्वारा अब तक का सबसे बड़ा ऐलान है। यह घोषणा क्लाइमेट चेंज को लेकर हुई पेरिस संधि की पांचवीं वर्षगांठ के मौके पर हुई। उम्मीद है कि जी-20 देशों की बैठक से पहले हुई इस घोषणा से उन देशों पर दबाव पड़ेगा जहां जीवाश्म ईंधन का बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है।
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