जून में अच्छे मॉनसून के बाद जुलाई में देश भर में मॉनसून की बारिश कम हुई। यह पिछले 5 साल का सबसे खुश्क जुलाई रहा। उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में जुलाई में बहुत कम बरसात हुई। वैसे मुंबई और पश्चिमी तट पर अगस्त की शुरुआत में रिकॉर्ड तोड़ बारिश से आम जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया। कोलाबा ऑब्ज़रवेट्री ने अगस्त में 24 घंटे के भीतर 293.8 मिलि मीटर बारिश दर्ज की जो पिछले 46 साल का रिकॉर्ड बताया जा रहा है।
देश में औसतन सूखे जुलाई के बावजूद कई राज्यों में बाढ़ का प्रकोप लगातार बना हुआ है। असम और बिहार में इसकी मार सबसे अधिक है। असम के 30 ज़िलों में अब तक कुल 55 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुये हैं। असम में अब तक कम से कम 100 लोगों की जान बाढ़ ने ले ली है। उधर बिहार में अब तक 45 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुये हैं। राज्य में कम से कम 11 लोगों की मौत बाढ़ से हुई है। बिहार में कोरोना के कहर के बीच बाढ़ ने प्रशासन की दिक्कत और बढ़ा दी है।
IMD ने लॉन्च किया “मौसम”
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने पिछले सोमवार को आम जनता के लिये “मौसम” नाम का मोबाइल एप लॉन्च किया। इस एप के ज़रिये पूरे हफ्ते के मौसम से जुड़े पूर्वानुमान और जानकारियां मिलेंगी। हालांकि किसानों और कृषि से जुड़े लोगों के मौसम विभाग का मेघदूत एप पहले से ही है। नये एप “मौसम” से लोगों को देश के 200 शहरों में तापमान, नमी, हवा की रफ्तार और दिशा की जानकारी मिलेगी जिसे रोज़ाना 8 बार अपडेट किया जायेगा। इसके अलावा 450 शहरों की मौसम की जानकारी भी मिल सकेगी।
तटीय इलाकों में बाढ़ से 2100 तक 20% जीडीपी को ख़तरा
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव और समुद्र तटों के प्रबंधन की नाकामी से विश्व अर्थव्यवस्था पर आने वाले दिनों बड़ा संकट आने वाला है। सदी के अंत तक पूरे विश्व की जीडीपी का पांचवा हिस्सा इससे नष्ट हो सकता है। साइंस पत्रिका ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में छपे एक शोध में यह बात कही गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम, मेलबॉर्न के रिसर्चर इस शोध का हिस्सा हैं। तटीय इलाकों में पानी भरने से बांग्लादेश, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका जैसे देशों में काफी आर्थिक चोट पहुंच सकती है। ग्लोबल वॉर्मिंग से ध्रुवों पर पिघलती बर्फ के कारण समुद्र जल स्तर में बढ़ोतरी हो रही है। हर सौ साल में एक आने वाले विनाशकारी बाढ़ अब हर दशक में हो सकती है।
कर्नाटक ने बनायी बाढ़ प्रबंधन योजना
पिछले साल आयी विनाशकारी बाढ़ के बाद कर्नाटक ने अब एक बाढ़ प्रबंधन योजना बनाई है। इस बहुआयामी योजना के तहत बाढ़ के तमाम वजहों पर (जैसे – वर्षा का पूर्वानुमान, बांधों का जलस्तर आदि) एक इंटीग्रेटड नेटवर्क के ज़रिये नज़र रखी जायेगी ताकि अलग अलग स्तर पर बाढ़ से निपटने के लिये तालमेल बनाया जा सके। राजस्व अधिकारियों का कहना है कि बांधों से बिना प्लानिंग के अनायास छोड़े जाने वाले पानी भी बाढ़ की वजह बनता है। राज्य के आपदा प्रबंधन के मुताबिक पिछले हफ्ते कर्नाटक और महाराष्ट्र के 6 बांध पूरे तरह लबालब थे। बाढ़ प्रबंधन के लिये इनसे छोड़े जाने वाले पानी की प्लानिंग अहम होगी।
भारत में लू वाले दिनों में 80% बढ़ोतरी
एक नई रिपोर्ट बताती है कि भारत में हीटवेव (लू के थपेड़े) वाले दिनों में पिछले साल (2019) 80% बढ़ोतरी हुई। हालांकि इससे पहले दो साल इन आंकड़े में गिरावट दर्ज हुई थी लेकिन एन्वीस्टेट इंडिया 2020 के राज्यवार गणना के बाद दिये गये ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल भारत में कुल 157 दिन हीटवेव (लू के थपेड़े) वाले थे जो साल -दर-साल तुलना के हिसाब से 82.6% की बढ़त है।
राजस्थान में सबसे अधिक 20 दिन हीटवेव रही। इसके बाद उत्तराखंड और यूपी का नंबर है जहां 13 दिन हीटवेव की मार रही। हालांकि इससे पहले साल 2010 में 254 दिन और 2012 में 189 दिन हीटवेव का रिकॉर्ड है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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