एक और तबाही

एक और तबाही: चक्रवाती तूफानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। बुलबुल ने भारत और बांग्लादेश में कम से कम 24 लोगों की जान ले ली और कई लाख लोग बेघर हो गये। Photo: Skymet Weather

चक्रवाती तूफान बुलबुल ने ले ली भारत और बांग्लादेश में ली 24 लोगों की जान

चक्रवाती तूफान बुलबुल ने अब तक भारत और बांग्लादेश में कम से कम 24 लोगों की जान ले ली है। बंगाल की खाड़ी से उठे इस तूफान ने पहले पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में कहर बरपाया जिसमें 12 लोग मारे गये और फिर तूफान ने बांग्लादेश का रुख किया। इस चक्रवात के कारण लाखों लोग बेघर हो गये। हर साल अप्रैल से दिसंबर तक बंगाल की खाड़ी से चक्रवाती तूफानों के उठने की संभावना बनी रहती है। बंगाल और उड़ीसा में तबाही करने के बाद जब बुलबुल ने बांग्लादेश की ओर रुख किया तो वह कमज़ोर पड़ गया। उड़ीसा और पूर्वी तट पर पिछले कुछ सालों में चक्रवाती तूफानों की मार बढ़ी है। इनकी बढ़ती संख्या के पीछे जलवायु परिवर्तन को एक वजह बताया जाता है। 

ग्लोबल वॉर्मिंग: दक्षिण एशिया में मौसम अधिक खुश्क होगा

एक नये शोध के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ने के साथ दक्षिण एशिया में अधिक क्षेत्रफल और जनसंख्या खुश्क मौसम की चपेट में आयेंगे। इसकी मार कितनी अधिक होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि धरती का तापमान कितनी जल्दी 1.5 °C, 2 °C या 2.5 °C तक पहुंचता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती के तापमान में 1.5 °C की औसत बढ़ोतरी करीब आधे दक्षिण एशिया में मौसम में खुश्की बढ़ायेगी जिससे 79 करोड़ लोग प्रभावित हो सकते हैं। इसी तरह 2 डिग्री तापमान बढ़ने पर 89 करोड़ लोगों पर असर पड़ सकता है लेकिन 2.5 डिग्री की बढ़ोतरी तो 196 करोड़ लोगों को प्रभावित करेगी। यह संख्या भले ही दिखने में डरावनी हो लेकिन सच्चाई से दूर नहीं है। शिकागो विश्वविद्यालय में टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट की एक रिसर्च कहती है कि अगर भारत में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन यूं ही जारी रहा तो साल 2100 के बाद हर साल 15 लाख लोग मरेंगे।

11 हज़ार वैज्ञानिकों ने एक सुर में की “क्लाइमेट इमरजेंसी” घोषित करने की मांग

पहली बार दुनिया के 11,000 वैज्ञानिकों ने एक साथ विश्व की तमाम सरकारों से कड़े क्लाइमेट एक्शन लेने और क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित करने की मांग की है। इनमें 69 वैज्ञानिक भारत के हैं। इन साइंसदानों ने बायोसाइंस जर्नल में एक पत्र लिखकर यह मांग की है। यह घोषणा पिछले 40 सालों के शोध पर आधारित आंकड़ों के मद्देनज़र की गई है जिनसे बिजली की बढ़ती खपत के लिये कोयले और गैस जैसे ईंधन को जलाने, जनसंख्या वृद्धि, जंगलों का कटान, ध्रुवों पर बर्फ पिघलना और मरुस्थलीकरण जैसे विषयों का पता चलता है। इस चिट्ठी में बिजली, प्रदूषण , प्रकृति, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के साथ जनसंख्या को लेकर आपात कदम उठाने को कहा गया है।

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