बंगाल की खाड़ी से उठे चक्रवाती तूफान निवार में कम से कम 3 लोगों की मौत हो गई और कुछ लोगों को घायल होने की ख़बर है। यह चक्रवाती तूफान निवार बुधवार देर रात पुडुचेरी के पास समुद्र तट से टकराया था और रात करीब 11.30 बजे हुये लैंडफॉल के बाद यह प्रक्रिया 3 घंटे चली। गुरुवार सुबह इस तूफान की रफ्तार कम होनी शुरू हुई और रफ्तार भी घटकर 65 से 75 किलोमीटर प्रतिघंटा रह गई। इस तूफान की वजह से भारत के दक्षिण पूर्वी तट पर भारी बारिश हुई। मारे गये तीनों लोग तमिलनाडु के हैं।
पुदुचेरी में 20 घंटों में 20 सेंटीमीटर पानी बरसा। तूफान के कारण कम से कम 20 लाख लोगों को अपने घरों से हटाया गया और 250 अस्थॉयी बसेरे बनाये गये। पुदुचेरी और तमिलनाडु में गुरुवार को एयरपोर्ट और मेट्रो सेवायें बन्द रहीं और सरकार को छुट्टी घोषित करनी पड़ी। ज़्यादातर चक्रवाती तूफान बंगाल की खाड़ी से उठते हैं और भारत के पूर्वी तट पर ही टकराते हैं।
इससे पहले चक्रवात निसर्ग पूर्वी तट पर आया था। पिछले एक दशक में इन तूफानों की आवृत्ति (frequency) और ताकत लगातार बढ़ी है। इनसे न केवल लोगों को बार-बार विस्थापित होना पड़ता है बल्कि यह उनकी रोज़ी रोटी पर भी आफत लेकर आते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि चक्रवातों के स्वभाव में बदलाव के पीछे धरती का बढ़ता तापमान भी ज़िम्मेदार है।
तापमान 2 डिग्री बढ़ने मौसमी आपदायें होंगी 5 गुना
एक अध्ययन से पता चला है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव वाला क्षेत्रफल और आबादी दोनों दोगुने से अधिक हो गई हैं। यह प्रभाव 6 किस्म की मौसमी आपदाओं के रूप में दिखेगा जिसमें चक्रवाती तूफान, सूखा, नदियों में बाढ़, जंगल में आग और हीटवेव (लू के थपेड़े) शामिल हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा ये आपदायें अधिक विनाशकारी होती जायेंगी। स्टडी से पता चला है कि तापमान में 2 डिग्री की बढ़त विनाशलीला के वर्तमान प्रभाव को पांच गुना बढ़ा सकती है।
बढ़ सकती हैं केपटाउन ‘डे-ज़ीरो’ जैसी घटनायें
दक्षिण अफ्रीका में 2018 में सूखे के जो हालात पैदा हुये वैसी घटनायें आने वाले दिनों में दुनिया में बार-बार देखने को मिल सकती हैं। अमेरिका की स्टेंफर्ड यूनिवर्सिटी के पृथ्वी विज्ञान विभाग और नेशनल ओसिनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन की जियोफिजिकल फ्लूइड डायनामिक्स लेबोरेट्री के शोध में यह बातें कही गई हैं। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस (PNAS) में प्रकाशित हुआ है।
दो साल पहले दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन और आसपास के इलाकों में निरंतर सूखे की वजह से हालात बहुत खराब हो गये थे और सभी जलाशयों का पानी 20% कम हो गया था। ऐसे में लग रहा था कि एक वक्त नगरपालिकाओं पानी की सप्लाई बन्द करनी पड़ेगी। इसे ही ‘डे-ज़ीरो’ कहा जाता है। हालांकि तब जाड़ों में हुई बारिश ने हालात काबू से बाहर होने से बचा लिये लेकिन रिसर्च बताती है कि अब ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते असर के कारण ऐसी घटनायें दुनिया के कई हिस्सों में बार-बार होंगी। महत्वपूर्ण है कि भारत के कई हिस्सों में भी लम्बे सूखे की घटनायें बढ़ रही हैं और क्लाइमेट चेंज को इसके लिये ज़िम्मेदार माना जा रहा है।
ग्लोबल वॉर्मिंग: सर्दियों में जमी झील और नदियों पर ख़तरा
ग्लोबल हीटिंग का असर ऐसा है कि अब दुनिया में बहुत ठंडी जगहों पर झील और नदियों पर जाना खतरनाक होगा। शोधकर्ताओं ने पाया है कि अक्सर ठंड में जमी हुई झीलों और नदियों में दुर्घटनायें हो रही हैं क्योंकि बढ़े तापमान के कारण आइस की परत बहुत पतली और कमज़ोर हो जाती है। कनाडा में शोधकर्ताओं ने 1990 के बाद से 10 देशों में करीब 4000 डूबने की घटनाओं का अध्ययन किया और यह पाया कि अधिक तापमान डूबकर मरने की घटनाओं से जुड़ा हुआ है। कनाडा की यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता कहते हैं कि डूबकर मरने की आधे से अधिक घटनाओं का जाड़ों में बढ़ते तापमान और गर्म हवा से रिश्ता है। कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में विंटर स्पोर्ट्स एक्टिविटी काफी लोकप्रिय हैं जिन पर अब ख़तरा मंडरा रहा है। यह भी देखने में आया है कि मरने वालों में ज़्यादातर कम उम्र के लोग या आदिवासी समुदाय के हैं। महत्वपूर्ण है कि आदिवासी अपने जीवन यापन के लिये नदियों और झीलों के पास जाते रहते हैं और दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं।
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