धरती का बढ़ता तापमान समुद्र में ऑक्सीज़न कम कर रहा है। पिछली एक सदी में ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों के कारण 2% ऑक्सीज़न कम हो गई है। नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित GEOMAR हेल्महोल्ट्स सेंटर फॉर ओशन रिसर्च की नई मॉडलिंग बताती है कि अगर अभी हो रहे सारे कार्बन उत्सर्जन रोक भी दिये जायें तो भी दुनिया भर के महासागरों के जल में घुली ऑक्सीज़न की मात्रा में चार गुना क्षति तय है।
रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि अगली कुछ सदियों में गहरे समुद्र में प्री-इंडस्ट्रिल लेवल (1850 के स्तर से) की ऑक्सीज़न से 10% की गिरावट तय है लेकिन CO2 इमीशन रुक जायें तो समुद्र सतह पर ऑक्सीज़न की हानि कमोबेश रुक जायेगी। समुद्र में घुली ऑक्सीजन जलीय जंतुओं और वनस्पतियों के लिये अनिवार्य है और समुद्री जैव विविधता इसी पर निर्भर है। इसलिये ऑक्सीज़न हानि की बढ़ती दर चिन्ता का विषय है।
ग्लोबल वॉर्मिंग से बिगड़ेगा मॉनसून का मिज़ाज
एक नई रिसर्च ने चेतावनी दी है कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग पर रोक नहीं लगी तो भारत में अधिक असामान्य मॉनसून देखने को मिलेगा। भारत में मॉनसून के लंबी अवधि के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद पोट्सडैम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पेक्ट रिसर्च ने यह बात कही। रिसर्च बताती है कि बारिश में बढ़ोतरी हिमालयी, बंगाल की खाड़ी के उत्तर पूर्वी इलाके और पश्चिमी घाट में अधिक दिखाई देगी। हालांकि म्यांमार और दक्षिण-पश्चिमी तट पर कुछ मॉडल्स ने बारिश में कमी की भी संभावना दिखाई
उधर मौसम विभाग ने पिछले हफ्ते इस साल के मॉनसून का लंबी अवधि का पूर्वानुमान जारी किया। इसके मुताबिक 2021 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून – जो जून से शुरू होकर सितम्बर तक चलता है – सामान्य रहेगा। भारत में यह लगातार तीसरे साल सामान्य मॉनसून है हालांकि पिछले कुछ सालों में बहुत कम अंतराल में अत्यधिक बारिश देखी जा रही है।
उड़ीसा: पांच साल में गज-मानव टकराव में 500 से अधिक मरे
उड़ीसा में पिछले पांच साल में हाथियों और इंसानों के बीच टकराव में कुल 528 लोग मारे गये। इसके अलावा 443 लोगों को चोटें भी आईं। एक नॉन प्रॉफिट संगठन वाइल्डलाइफ सोसायटी ऑफ ओडिशा ने जो आंकड़े जारी किये हैं उनसे यह बात पता चली है। करीब एक चौथाई मौतें गर्मियों के महीनों – अप्रैल से जून के बीच – हुईं। वाइल्डलाइफ सोसायटी ऑफ ओडिशा ने यह गणना अप्रैल 2017 से अप्रैल 2021 के बीच की हैं। विश्लेषण बताता है कि जंगल के भीतर जाने वाले इंसानों पर हाथियों के हमले की घटनायें तेज़ हुई है। ग्रामीण अक्सर नॉन टिम्बर उत्पाद जैसे महुआ, आम, कटहल, काजू आदि बटोरने जाते हैं। यह ऐसा मौसम होता है जब जंगल में चारे और पानी कमी के कारण हाथी भी फलों पर निर्भर करते हैं। सोसायटी के सचिव विश्वजीत मोहंती का कहना है कि वन विभाग ने हाथियों के हमलों में तेज़ी के बावजूद इस दिशा में कुछ खास काम नहीं किया है। इस ख़बर को विस्तार से डाउन टु अर्थ में पढ़ा जा सकता है।
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