विरोध प्रदर्शन बेवजह नहीं

विरोध प्रदर्शन बेवजह नहीं – लांसेट की नई रिपोर्ट बताती है कि हाल में दुनिया भर में हुए विरोध प्रदर्शन बेवजह नहीं थे। जलवायु परिवर्तन की कीमत हमारी अगली पीढ़ी को चुकानी है। छोटे-छोटे बच्चे इसके निशाने पर हैं।

ग्लोबल वॉर्मिंग के शिकार मासूम

जाने माने मेडिकल जर्नल लांसेट ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को केंद्र में रखा है। लांसेट ने 41 पहलुओं को ध्यान में रखकर लिखी रिपोर्ट में बताया है कि कैसे क्लाइमेट में बदलाव और वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियां बच्चों के लिये घातक है। रिपोर्ट बताती है कि लंबे संघर्ष के बाद कुपोषण और संक्रामक बीमारियों के खिलाफ मिली थोड़ी बहुत कामयाबी को क्लाइमेट चेंज मिट्टी में मिला देगा।

भारतीय समय के मुताबिक गुरुवार अल-सुबह रिलीज़ हुई इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया भर में 9-10 साल के बच्चों में साल 2000 से डेंगू बुखार का पैटर्न बढ़ रहा है। डायरिया जैसी बीमारियां दोगुनी हो गई हैं।  

भारत के मामले में साफ कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही सूखे की घटनाओं से महंगाई बच्चों के पोषण के लिये एक समस्या बन रहा है। उनको अनाज मिलना मुश्किल हो रहा है। महत्वपूर्ण है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों की कुल मौतों की दो-तिहाई कुपोषण के कारण होती हैं। बदलती जलवायु में डायरिया या हैजे जैसी बीमारियों के बैक्टीरिया आसानी से पनप रहे हैं और ज़िन्दा रहते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किशोरावस्था के दौरान प्रदूषण का सेहत पर प्रभाव बढ़ता है।

जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं पर भी लांसेट रिपोर्ट में चिन्ता जताई गई है और कहा गया है कि 2001-04 से अब तक करीब 2.1 करोड़ अधिक लोग जंगलों में आग से प्रभावित हो रहे हैं। ज़ाहिर है जंगलों का जलना वायु प्रदूषण के साथ- साथ तापमान वृद्धि में बढ़ा रोल अदा करता है।

पेरिस समझौते के वादों के मुताबिक अगर दुनिया के देश धरती की तापमान-वृद्धि 2 डिग्री से कम रखने में कामयाब होते हैं तो आज पैदा होने वाला बच्चा 31 साल की उम्र में कार्बन न्यूट्रल दुनिया में सांस लेगा लेकिन बदकिस्मती यह है कि वर्तमान हालात में से ऐसा होता नहीं दिख रहा।

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