चीन, यूरोप और अमेरिका के बाद अब भारत कोरोना वाइरस से लड़ रहा है। इस महामारी से पैदा हुये संकट का एक हिस्सा फूड सप्लाई चेन पर पड़ने वाला असर भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के बाद वित्तमंत्री की ओर से राहत पैकेज का ऐलान किया गया जिसमें अगले 3 महीनों तक देश के 80 करोड़ लोगों के लिये प्रति परिवार हर महीने 1 किलो दाल और प्रति व्यक्ति पांच किलो चावल या आटा देने की बात कही।
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने यह डर जताया है कि फूड सप्लाई में व्यवधान का असर अप्रैल और मई माह में खाने पीने की चीज़ों की बढ़ी कीमतों में दिख सकता है। कन्सल्टिंग फर्म फिच सॉल्यूशन्स ने “उत्पादन से लेकर व्यापार तक हर स्तर पर” फूड चेन को खतरे की बात रेखांकित की है।
इससे पहले अफ्रीका के साथ मध्य और दक्षिण एशिया में टिड्डियों के आतंक की वजह से खाद्य सुरक्षा पर चोट पड़ी। आईपीसीसी पहले ही कह चुकी है कि बढ़ते तापमान के कारण उत्पादन पर असर पड़ रहा है और खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल होगा। ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में लम्बे सूखे की संभावना और अन्य कारकों को देखते हुये यह ज़रूरी है कि वैश्विक खाद्य सप्लाई चेन में आपात स्थित को झेलने की ताकत हो।
भारत के खाद्य भंडारों में अभी साढ़े सात करोड़ टन अनाज है जो कि सामान्य बफर से तीन गुना अधिक है लेकिन लॉकडाउन की आधिकारिक घोषण से भी पहले सप्लाई चेन की दरार दिखाई देने लगी। मार्च 20 और 22 के बीच 35% ग्राहक ई-कॉमर्स सेवाओं से सामान नहीं खरीद सके। अगले दो दिनों में ऐसे ग्राहकों की संख्या उछलकर 79% हो गई। मार्च 20 और 22 को 17% ग्राहक रिटेल स्टोर से ज़रूरी सामान नहीं ले पाये। लॉकडाउन का असर रबी की फसल की कटाई पर भी पड़ रहा है क्योंकि मज़दूर और ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है और मंडियां बन्द हैं। एक नये अध्ययन के मुताबिक जलवायु में गड़बड़ियों के कारण दुनिया के एक क्षेत्र में लंबे वक्त तक पड़ने वाला नकारात्मक असर वैश्विक खाद्य श्रंखला पर असर डाल सकता है जिससे कीमतें आसमान छू सकती हैं।
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