सीधा इनकार: दुनिया की सबसे बड़ी खनन कंपनियों में से एक ग्लेनकोर ने माइनिंग से हटने को तर्कहीन बताया है। Photo: Bloomberg

कोयला खनन से हटने का कोई मतलब नहीं: ग्लेनकोर

एंग्लो-स्विस माइनिंग कंपनी ग्लेनकोर के प्रमुख इवान ग्लासेनबर्ग ने कंपनियों द्वारा खनन से हटने के चलन को ठुकरा दिया है। ग्लासेनबर्ग के मुताबिक यह कदम तर्कहीन हैं क्योंकि इससे स्कोप – 3 उत्सर्जन रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि खनन से पीछे हटने का मतलब है कि चीनी फर्म उन खदानों को खरीदेंगी और कम कड़े मानकों के तहत ईंधन जलायेंगी। यह पूरे मकसद के उलट है। 

ग्लासेनबर्ग का सुझाव है कि अब फोकस निकिल, कोबाल्ट और कॉपर जैसी धातुओं के खनन पर होना चाहिये जिन्हें साफ ऊर्जा क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता है। ग्लेनकोर अभी कोयला खनन को कम करके 2035 तक अपने स्कोप- 3 इमीशन 35% करने की योजना पर विचार कर रहा है 

कार्बन फैलाने वाले प्रोजेक्ट को फंडिंग: सवालों में वर्ल्ड बैंक कार्बन फैलाने वाले ईंधन को बढ़ावा देने के मामले में विश्व बैंक लगातार  सवालों के घेरे में है। नई ग्रीन पॉलिसी के बावजूद बैंक की प्राइवेट लैंडिंग शाखा अप्रत्यक्ष रूप से दुनिया सबसे बड़े कोल कॉम्प्लेक्सों में से एक को फंड दे रही है। इसी साल सितंबर में विश्व बैंक से जुड़ी इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन अपनी ग्रीन इक्विटी एप्रोच (GEA) रिपोर्ट छापी जिसमें साफ तौर पर ये कहा गया कि कॉर्पोरेशन अब उन वित्तीय संस्थाओं में निवेश नहीं कर रहा जिनके पास क्रमबद्ध तरीके से फॉसिल फ्यूल (तेल, कोयला, गैस जैसे कार्बन छोड़ने वाले ईंधन) के बिजनेस से हटने की योजना नहीं है। इसके बावजूद कॉर्पोरेशन ने एप्रोच का पायलट हाना इंडोनेशिया नाम के बैंक को दिया जिसने 2000 मेगावॉट के कोल पावर स्टेशन में निवेश किया है। इससे पहले जर्मनी के पर्यावरण लॉबी ग्रुप अर्जवाल्ड ने कह चुका है कि पिछले दो सालों में वर्ल्ड बैंक ने फॉसिल फ्यूल से जुड़े प्रोजेक्ट्स को करीब 200 करोड़ डॉलर की  फंडिंग की है।

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