उत्तर प्रदेश और नेपाल सीमा से सटे कतरनियाघाट वन्यजीव अभ्यारण्य के समीप से गुजरती गिरवा नदी के बहाव में कमी आयी और इसके किनारे हरियाली उग आई। यूं तो हरियाली सुकून देने वाली बात है पर उन घड़ियालों के लिए समस्या बन गयी जो नदी के किनारे रोजमर्रा के काम निपटाते हैं। अंडे देने से लेकर आराम फरमाने तक का काम।
हाल ही में आए एक शोध में यह बात स्पष्ट हुई है कि गिरवा नदी के किनारे बढ़ती हरियाली से घड़ियालों के ठिकाने छिन रहे हैं।
इस शोध में पाया गया कि नदी में पानी कम होने से बहाव कम हो रहा है। उन स्थानों पर भी पेड़-पौधे उगने लगे हैं जहां कभी घड़ियाल अपने अंडे दिया करते थे।
कतरनियाघाट में नदी के पानी से बना एक जलाशय है और यहां मछली खाने वाले विलुप्तप्राय घड़ियालों की अच्छी-खासी संख्या रहती है। हालांकि, यहां के बनिस्बत चंबल में बने घड़ियाल सेंचुरी में घड़ियालों के संख्या अधिक है।
पानी कम होने का सिलसिला वर्ष 2010 में शुरू हुआ जब नेपाल से बहकर आने वाली करनाली नदी की धारा बाढ़ ने मोड़ दी। इससे गिरवा नदी में भी पानी की कमी हो गई।
गिरवा नदी की कछार पर घड़ियाल अंडे देते हैं। नदी का पानी कम होते ही नदी किनारे हरियाली बढ़ने लगी। जहां कभी घड़ियाल आराम फरमाते या अंडा देते वहां अब हरियाली का साम्राज्य स्थापित हो गया। अध्ययन से पता चला कि वर्ष 2015 से 2019 के बीच घड़ियाल के ठिकाने 70 फीसदी तक कम हो गए।
“अध्ययन के परिणाम नदी किनारे घड़ियालों के रहवास में आ रहे बदलावों को प्रमुखता से दर्शा रहे हैं,” यह कहना है रिसर्च में शामिल दिल्ली विश्वविद्यालय, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट और उत्तराखंड वन विभाग के लेखकों का।
मोंगाबे-हिन्दी से बात करते हुए इन्होंने बताया कि गिरवा नदी का कम बहाव और किनारे की हरियाली से यहां रह रहे घड़ियालों पर काफी असर देखा जा रहा है।
“गिरवा नदी में घड़ियाल का आशियाना खत्म होने के जिस मुद्दे पर हमने अध्ययन किया है, वह इतना महत्वपूर्ण है कि कतरनियाघाट वन्यजीव सेंचुरी में घड़ियाल की प्रजाति खत्म होने की वजह भी बन सकता है,” लेखकों ने चेताया।
घड़ियाल देश के ताजे पानी और सदा बहने वाली नदियों में रहना पसंद करते हैं। दक्षिण एशिया में यह विलुप्ति की कगार पर हैं। यह नदी के बीच बने रेत के टापुओं और नदी किनारे रहते हैं। नदी में डैम और बैराज बनने की वजह से इनके रहने के स्थान में तेजी से कमी आ रही है।
सैटेलाइट के आंकड़ों से घड़ियाल के घर की पड़ताल
शोधकर्ताओं ने गिरवा नदी में आए बदलाव को समझने के लिए बीते कुछ समय में हुए बदलावों का अध्ययन किया। नदी के किनारे बढ़ रही हरियाली के पीछे की वजह भी जाननी चाही। उन्होंने वर्ष 2017 से लेकर 2019 तक के हरियाली का आंकलन सैटेलाइट से मिली तस्वीरों के माध्यम से किया। उन्होंने वर्ष 2015 से लेकर 2019 तक घड़ियाल के रहने के स्थानों में आए परिवर्तन को भी विभिन्न सर्वे के माध्यम से देखा।
शोधकर्ताओं ने पाया कि 2015 में गिरवा में 9 किलोमीटर के एक इलाके में घड़ियालों के आठ ठिकाने थे। इनमें से पांच ठिकानों में घोसला यानी कि अंडे रखने का स्थान भी था।
घोसलों की संख्या 2016 में बढ़कर छह और 2017 में सात हो गई। वर्ष 2018 में यह रुझान अचानक बदला और तीन घोसले खाली हो गए। वर्ष 2019 में सिर्फ दो घोसले बचे। इन स्थानों पर झाड़ियां बढ़ती गईं।
हरियाली से भला घड़ियाल को क्या नुकसान?
शोधकर्ताओं ने पाया कि झाड़ियों के रूप में हरियाली घड़ियाल को अंडा रखने का स्थान कम करती है। इसके अलावा, इनकी जड़े अंडे को नुकसान पहुंचाती हैं, फलस्वरूप अंडे खराब हो जाते हैं।
“शोध के स्थान पर अध्ययन करते समय हमने कई अंडों को जड़ों की वजह से खराब होते हुए देखा,” अध्ययनकर्ता कहते हैं।
हरियाली की वजह से सूरज की रोशनी भी घोसलों तक नहीं पहुंचने देती, जिससे अंडे का निषेचन प्रभावित होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक अंडे को मिलने वाले तापमान से ही नन्हे घड़ियाल का लिंग निर्धारित होता है।
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पूर्व प्रोफेसर और घड़ियाल के विशेषज्ञ बीसी चौधरी जो कि इस शोध का हिस्सा नहीं हैं, कहते हैं, “कुदरती रूप से जो बदलाव आते हैं उसका असर जंतुओं के रहवास पर होता है, लेकिन डैम और बैराज जैसे विकास के प्रोजेक्ट की वजह से जो बड़ा नुकसान होता है। गिरवा नदी पर भी यह असर दिख रहा है।”
नदी की धारा दुरुस्त कर घड़ियाल का घर बचाने की कोशिश
कतरनियाघाट में घड़ियाल की आबादी बचाने की कोशिशें हो रही हैं। नदी के किनारे उग आईं झाड़ियों को साफ किया जा रहा है। नदी के किनारे रेत भी डाला गया है ताकि घड़ियाल को रहने का ठिकाना मिल पाए।
“हमने गिरवा नदी के टापुओं से रेत इकट्ठा कर कृत्रिम तरीके से घड़ियाल को उनके घर जैसा माहौल देने की कोशिश कर रहे हैं,” अध्ययनकर्ताओं ने कहा। यह तरीका सफल रहा और जिन स्थानों पर रेत डाला गया वहां एक साल के भीतर ही घड़ियाल वापस रहने आए।
वन विभाग के साथ मिलकर अध्ययनकर्ता घड़ियाल के घर पर पिछले 6 वर्ष से अध्ययन कर रहे हैं।
“यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि हमने पहली कोशिश में ही घड़ियालों के लिए कृत्रिम घर बनाने में सफलता हासिल की है,” शोधकर्ताओं ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
हालांकि, इनका मानना है कि घड़ियालों के लिए हमेशा कृत्रिम व्यवस्थाएं करना संभव नहीं है। इसके लिए प्राकृतिक आशियाना बचना जरूरी है। इस काम में भारत और नेपाल अगर एकसाथ आए और संरक्षण की कोशिशें करे तो सफलता मिल सकती है। संरक्षण को लेकर सबसे बड़ा कदम नदी के बहाव को अविरल बनाना होगा।
गिरवा नदी के किनारे घड़ियाल 1975 से ही रहते आ रहे हैं।
ये लेख मोंगाबे हिन्दी से साभार लिया गया है।
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