ऑस्ट्रेलिया में नये साल की शुरुआत तबाही की तस्वीरों से हुई। इंटरनेट, अख़बार और टीवी चैनलों में दक्षिण-पूर्व के जंगलों में लगी आग से हुई बर्बादी की तस्वीरें छाई रहीं। न्यू साउथ वेल्स में अब भी 146 जगहों पर आग का कहर है जिसमें से 65 तो काबू से बाहर हैं। इस आग में 50 लाख हेक्टेयर ज़मीन तबाह हो गई है। इस आग के कारण बिजली कड़कने और तूफान की शक्ल में स्थानीय मौसमी प्रभाव दिखे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हालात ऑस्ट्रेलिया के इस राज्य में किसी ज्वालामुखी के फटने या परमाणु विस्फोट जैसे हैं।
इस आग में करीब 50 करोड़ वन्य जीव मारे गये हैं जिनमें स्तनधारियों के अलावा विभिन्न प्रजातियों के पक्षी और सरीसृप शामिल हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विभीषिका में जलवायु परिवर्तन का रोल जांचना अहम है क्योंकि गर्म होती धरती और सूखे की वजह से ऐसी आपदाओं पर काबू करना मुश्किल होता जा रहा है। फिलहाल आग बुझाने के काम में मिलिट्री और नेवी की मदद ली जा रही है।
उत्तर भारत शीतलहर की चपेट में, दिल्ली में 119 साल का सबसे सर्द दिन
पिछले साल के आखिरी हफ्ते पश्चिमी और उत्तर भारत ज़बरदस्त शीतलहर की चपेट में रहा। दिल्ली में 119 साल में सबसे सर्द दिन रिकॉर्ड किया गया। यहां 30 दिसंबर को अधिकतम तापमान 9.4 डिग्री और न्यूनतम 2.6 डिग्री रिकॉर्ड किया गया। दिल्ली के पड़ोसी राज्य यूपी में ठंड से 28 लोगों की जान चली गई। वैज्ञानिकों ने इस शीतलहर के लिये ज़बरदस्त पश्चिमी गड़बड़ी को ज़िम्मेदार ठहराया है। नये साल की शुरुआत के साथ हालांकि कुछ राहत महसूस हुई जब सूरज निकलने से ठंड में कमी आई। लेकिन जनवरी के दूसरे हफ्ते में बरसात के साथ फिर ठंड लौट आई।
जकार्ता: अचानक बाढ़ में 53 की मौत, मूसलाधार बरसात रोकने के लिये क्लाउस सीडिंग इंडोनेशिया की राजधानी और उसके आसपास के इलाकों में 31 दिसंबर की रात लगातार मूसलाधार बरसात हुई। इसकी वजह से साल के पहले ही दिन जकार्ता में बाढ़ आ गई। ख़बरों के मुताबिक कम से कम इस बाढ़ से कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई। करीब पौने दो लाख लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया। इंडोनेशिया की सरकार दावा कर रही है कि वह घनघोर बारिश को रोकने के लिये फिलहाल क्लाउस सीडिंग तकनीक का सहारा ले रही है। इस तकनीक में बादलों में नमकीन धुंआं बिखेर कर संघनित किया जाता है ताकि अचानक बरसने से पहले बरसात होती रहे। अब तक तीन बार क्लाउड सीडिंग करवाई जा चुकी है और प्रशासन का कहना है कि ज़रूरत पड़ने पर आगे भी ऐसा किया जायेगा।
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