दुनिया को कोविड वायरस देने के बाद भले ही चीन की दुनिया भर में आलोचना हो रही हो, लेकिन नेचर मैगज़ीन में छपी एक ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो चीन में फ़िलहाल सब उतना बुरा भी नहीं है।
चीन मानव निर्मित कार्बन डाइऑक्साइड का दुनिया का सबसे बड़ा स्रोत है और अकेले ही लगभग 28 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। और इस आँकड़े के सापेक्ष नेचर की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि चीन के जंगल उम्मीद से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड सोख रहे हैं। इसका सीधा मतलब हुआ कि चीन का नेट उत्सर्जन उतना नहीं है जितना सोचा जा रहा था।
इसके पहले हाल ही में, चीन सरकार ने 2060 तक कार्बन तटस्थता तक पहुंचने और 2030 से पहले उन उत्सर्जन को घटाना शुरू करने के अपने इरादे की घोषणा की थी। हालाँकि चीन इन लक्ष्यों तक कैसे पहुंचेगा, इसकी रणनीति स्पष्ट नहीं है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि चीन की लगभग आक्रामक वृक्षारोपण नीति इस लक्ष्य को पाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
हाल के दशकों में, चीन ने मरुस्थलीकरण और मिट्टी के नुकसान से निपटने और लकड़ी और कागज उद्योगों की स्थापना के लिए अरबों पेड़-पौधे लगाए हैं। इस प्रयासों ने चीन को सबसे तेज़ गति से हरियाली फ़ैलाने वाला देश बना दिया और दुनिया की कुल हरियाली को भी बढ़ा दिया। हरियाली बढ़ाने की इस प्रक्रिया को अंग्रेज़ी में ग्रीनिंग कहते हैं।
खैर, बात इस ताज़ा रिपोर्ट की करें तो वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने चीन में दो ऐसे क्षेत्रों की पहचान की है जहां नए जंगलों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के सोखे जाने की क्षमता को कम आंका गया है। ज़मीन और सैटलाइट से मिले डेटा के आधार पर इस टीम ने पाया कि इन कम आंके गए क्षेत्रों में चीन के कुल कार्बन सिंक का 35% से थोड़ा अधिक हिस्सा आता है।
आगे बढ़ने से पहले समझ लीजिये कार्बन सिंक क्या होता है। दरअसल कार्बन सिंक एक प्राकृतिक प्रणाली है जिसके अंतर्गत वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को सोख कर संग्रहित किया जाता है। पेड़-पौधे, महासागर और मिट्टी मुख्य प्राकृतिक कार्बन सिंक हैं। प्रकाश संश्लेषण या फ़ोटो सिंथेसिस में उपयोग करने के लिए पौधे वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं और बदले में ऑक्सीजन देते हैं। इस सोखी हुई कार्बन में से कुछ धरती में भी स्थानांतरित हो जाती है क्योंकि पेड़-पौधे मर कर या सड़ कर धरती में मिल जाते हैं।
बात अब फिर चीन की करें तो रिपोर्ट के मुताबिक़ ये कार्बन सिंक क्षेत्र चीन के दक्षिण पश्चिम में युन्नान, गुइझोउ और गुआंग्शी प्रांतों में हैं; और इसके उत्तर-पूर्व, विशेष रूप से हेइलोंगजियांग और जिलिन प्रांतों में हैं।
दक्षिण-पश्चिम चीन में मौजूद कार्बन सिंक एक बेहद बड़ा इलाका है और प्रति वर्ष लगभग -0.35 पेंटाग्राम कार्बन सोखता है। एक पेंटाग्राम मतलब एक अरब टन।
बीबीसी को अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इस रिपोर्ट के रिपोर्ट के प्रमुख लेखक और वायुमंडलीय भौतिकी संसथान, चीनी विज्ञान अकादमी, बीजिंग में वैज्ञानिक जिंग वांग ने कहा, “चीन कार्बन डाइऑक्साइड के प्रमुख वैश्विक उत्सर्जकों में से एक है। इसके वनों द्वारा कितना कार्बन डाइऑक्साइड सोखा जा रहा है इसका सही अंदाज़ा किसी के पास नहीं था। लेकिन चीनी मौसम विज्ञान प्रशासन द्वारा एकत्र किए गए CO2 डेटा से अब स्थिति काफ़ी साफ़ दिखती है।”
आगे, रिपोर्ट के सह लेखक और वायुमंडलीय भौतिकी संसथान के प्रो यी लियू ने कहा, “राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में घोषणा की कि चीन 2060 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य हासिल कर लेगा। लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने में न सिर्फ़ ऊर्जा उत्पादन में व्यापक बदलाव होंगे, टिकाऊ भूमि कार्बन सिंक के फैलाव में भी की वृद्धि होगी। हमारे शोध पत्र में वर्णित वनीकरण गतिविधियां उस लक्ष्य को प्राप्त करने में एहम भूमिका निभाएंगी।”
जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा मुद्दों पर काम कर रहे थिंक टैंक एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट (ईसीआईयू) के निदेशक, रिचर्ड ब्लैंक, कहते हैं, “भले ही चीन का फ़ॉरेस्ट कार्बन सिंक उम्मीद से बड़ा है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि इस तथ्य को नेट शून्य तक पहुँचने के लिए एक ‘फ्री पास’ माँ लिया जाए।” वाक़ई, जब चीन ने नेट ज़ीरो होने की बात की है तो उसकी कार्बन सोखने की क्षमता का सही अंदाज़ा भी दुनिया को पता होना चाहिए। चीन के पास अगर उम्मीद से ज़्यादा बड़ी क्षमता के कार्बन सिंक है तो ये निश्चित तौर पर बढ़िया बात है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि चीन को इस नये डेटा की शक्ल में बेलगाम और बेपरवाह होने का मौका मिल गया हो। और हमें भी बहुत उत्साहित नहीं होना चाहिए क्योंकि चीन को अभी इस दिशा में एक लंबा रास्ता तय करना है।
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