केंद्र सरकार ने बजट में एक स्वैच्छिक वाहन स्क्रैपिंग पॉलिसी का ऐलान किया है जिसकी वजह से करीब एक करोड़ पुराने वाहन सड़क से हटाये जायेंगे जो अभी चल रहे हैं। इसके तहत 20 साल से पुराने निजी वाहन और 15 साल से अधिक पुराने सरकारी वाहनों का फिटनेस टेस्ट कराया जा सकता है।
रोड ट्रांसपोर्ट और हाइवे मिनिस्टर नितिन गडकरी इस बारे में फरवरी के मध्य तक एक नीति जारी कर सकते हैं। गडकरी का कहना है कि यह नीति भारत को दुनिया का नंबर – 1 ऑटोमोबाइल निर्माता बनायेगी। गडकरी का कहना है कि पुराना वाहन कबाड़ में डालने के बाद लोगों को नये वाहन पर कुछ छूट मिलेगी और वह नया वाहन ज़रूरी खरीदेंगे। और इससे पैदा होने वाली तेज़ी करीब 35 हज़ार नई नौकरियां पैदा होंगी और ऑटोमोबाइल बाज़ार का आकार मौजूदा साढ़े चार लाख करोड़ से छह लाख करोड़ हो जायेगा।
समय से पूर्व होने वाली हर पांच में से एक मौत के पीछे है जीवाश्म ईंधन
अब तक जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, गैस आदि) को जितना खतरनाक माना जाता था वह स्वास्थ्य के लिये उससे कहीं अधिक हानिकारक है। एक नई स्टडी से पता चला है कि दुनिया में समय से पहले होने वाली हर पांच में से एक मौत का कारण जीवाश्म ईंधन है। भारत में 30% से अधिक मौतों के पीछे कारण जीवाश्म ईंधन से हो रहा प्रदूषण है। भारत में हर साल करीब 25 लाख लोग वायु प्रदूषण से मर जाते हैं।
इन्वायरोमेंटल रिसर्च नाम के जर्नल में छपे शोध में कहा गया है कि चीन, भारत, यूरोप और उत्तर-पूर्व अमेरिका को कोयले, तेल और गैस से होने वाले प्रदूषण की सबसे अधिक मार झेलनी पड़ती है और यहां कुल 87 लाख लोगों की जान जाती है। स्टडी कहती है कि यद्यपि भारत ने 2012 से प्रदूषण स्रोतों पर नियंत्रण किया है लेकिन दिल्ली जैसे बड़े प्रदूषित शहरों में एयर क्वालिटी सुधरने के कोई संकेत नहीं हैं। देश के भीतर उत्तर प्रदेश में 2012 में समय से पूर्व सर्वाधिक मौतें (4.7 लाख) हुईं। इसके बाद बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश का नंबर है।
लॉकडाउन के बाद दक्षिण भारत में प्रदूषण बढ़ा: सीएसई
दिल्ली स्थित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) ने अपने विश्लेषण में कहा है कि इस साल कोरोना वायरस लॉकडाउन के बाद सर्दियों में दक्षिण भारत के शहरों में प्रदूषण स्तर बढ़ रहे हैं। सीएसई का कहना है कि यह एक भ्रम साबित हुआ है कि दक्षिण भारत में वायु प्रदूषण देश के अन्य भागों की तुलना में कम होता है। विश्लेषण कहता है कि यद्यपि लॉकडाउन के दौरान पार्टिकुलेट मैटर का स्तर घटा लेकिन जाड़ों के आने के साथ यह बढ़ गया। दक्षिण भारत के बड़े शहरों में पीएम 2.5 का सालाना औसत गिरा है लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में इसका स्तर बढ़ा। विश्लेषण कहता है कि दक्षिण भारत में सर्दियों का तापमान उत्तर भारत के शहरों के मुकाबले अधिक होता है और यह माना जाता है कि मौसमी कारक अपेक्षाकृत साफ हवा के पक्ष में होंगे लेकिन यह सही नहीं है।
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