जंगल के बारे में इन महिलाओं की समझ पहले से ही काफी अच्छी थी। ट्रेनिंग के बाद उनका ज्ञान और भी बढ़ा जिससे पर्यटकों को वह आसानी से जंगल के बारे में बता पाती हैं। तस्वीर- देवज्योति बैनर्जी

अचानकमार टाइगर रिजर्वः जिस जंगल में बचपन बीता वहीं फॉरेस्ट गाइड बन गईं ये महिलाएं

  • महिलाओं को रोजगार देने की नियत से छत्तीसगढ़ सरकार ने कुछ समय पहले अचानकमार टाइगर रिजर्व में स्थानीय महिलाओं को फॉरेस्ट गाइड बनाने का फैसला लिया।
  • सात महिलाओं को फॉरेस्ट गाइड के रूप में चुना गया। जंगल में इन महिलाओं का बचपन बीता है इसलिए ये लोग जंगल से भली-भांति परिचित हैं। इससे पर्यटकों को जंगल के बारे में नई जानकारियां मिलती हैं।
  • इस कदम से महिलाओं का हौसला बढ़ने के साथ-साथ उनको रोजगार का अवसर भी मिल रहा है।

“हम इस जंगल के चप्पे-चप्पे की खबर रखते हैं। जंगली जानवरों के साथ हमारा बचपन बीता है,” यह कहते हुए 19 वर्ष की परमेश्वरी आत्मविश्वास से भर उठती है। परमेश्वरी छत्तीसगढ़ की उन पहली महिलाओं में से एक हैं जिन्हें सरकार ने फॉरेस्ट गाइड के रूप में चुना है। अचानकमार के टाइगर रिजर्व में आए पर्यटकों को वह यहां के पशु-पक्षियों के विभिन्न खूबियों से अवगत कराती हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार ने महिलाओं को बराबरी का मौका देने के उद्देश्य से स्थानीय महिलाओं को फॉरेस्ट गाइड के रूप में नियुक्त किया। सात महिलाओं को अचानकमार टाइगर रिजर्व में तैनात किया गया है। जनवरी, 2017 से इन महिलाओं ने यहां काम करना शुरू किया।

ये सारी महिलाएं पास ही के बिंदावल नाम के एक गांव की निवासी हैं जो कि टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में ही बसा हुआ है।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 190 किलोमीटर दूर स्थित अचानकमार टाइगर रिजर्व 914 वर्गकिलोमीटर में फैला हुआ है। मैकल पर्वतमाला के तहत आने वाला यह इलाका मध्यप्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व से जुड़ता है। वर्ष 2014-2015 के टाइगर सेंसस के मुताबिक इस जंगल में 26 बाघ रहते हैं। इसके अलावा यहां तेंदुआ, लकड़बग्घा, सांभर, जंगली कुत्ते आदि रहते हैं। रिजर्व में 600 औषधीय पौधों की भी पहचान की गई है।

टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बसा हुआ बिंदावल गांव। मैकल पर्वतमाला के तहत आने वाले अचानकमार के जंगल में 600 से अधिक औषधीय पौधें और दर्जनों दुर्लभ जीव-जंतु रहते हैं। तस्वीर- देवज्योति बैनर्जी
टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बसा हुआ बिंदावल गांव। मैकल पर्वतमाला के तहत आने वाले अचानकमार के जंगल में 600 से अधिक औषधीय पौधें और दर्जनों दुर्लभ जीव-जंतु रहते हैं। तस्वीर- देवज्योति बैनर्जी

काम आया गांव वालों का सुझाव

फॉरेस्ट रेंजर और गांव वालों के साथ चल रहे एक बैठक के दौरान महिला फॉरेस्ट गाइड की नियुक्ति का सुझाव आया। सुझाव पर अमल करने के बाद गांव की महिलाओं के लिए रोजगार का नया अवसर मिला।

इस गांव के लोग मुख्यतः खेती पर निर्भर हैं, लेकिन जंगली जानवरों की वजह खेती का काम अब मुश्किल हो चला है।

फॉरेस्ट गाइड गीता देवी कहती हैं कि हमारा गुजारा सिर्फ खेती से नहीं हो सकता है।

“यह नौकरी से थोड़ी-बहुत अतिरिक्त आय हो जाती है। इसके जरिए घर की हालत सुधारी जा सकती है,” उन्होंने कहा।
एक दूसरी महिला गाइड दुर्गा इनकी बात से सहमति जताती हैं, “इस नौकरी के मिलने से मेरे पिता काफी प्रसन्न हैं। मैं घर चलाने में मदद कर उनके कंधों का बोझ कुछ कम कर रही हूं।”

कान्हा टाइगर रिजर्व से आए एक विशेष दस्ते ने इन महिलाओं को गाइड की ट्रेनिंग दी। हालांकि, बचपन से इस जंगल में रहने की वजह से उन्हें काफी कुछ पहले से पता था, लेकिन पशु-पक्षियों के अंग्रेजी नाम के बारे में इस ट्रेनिंग में बताया गया। महिलाओं को टाइगर रिजर्व में मिलने वाले पौधे और पशु-पक्षियों की जानकारी भी दी गई। पर्यटकों से बात करने की शैली के बारे में भी  बताया गया।

अचानकमार के जंगल में दुर्गा (बाएं) और परमेश्वरी (दाएं) फॉरेस्ट गाइड के रूप में 2017 से कार्यरत हैं।
अचानकमार के जंगल में दुर्गा (बाएं) और परमेश्वरी (दाएं) फॉरेस्ट गाइड के रूप में 2017 से कार्यरत हैं।

गीता कहती हैं कि काम के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। “जब भी कोई महिला अपने परिवार के लिए कमाना चाहती है, उन्हें हर जगह पुरुषों के लिए बने वातावरण में काम करना पड़ता है। उन्हें भी इस चुनौती का सामना करना पड़ा। हालांकि, एक दूसरे की मदद कर हमने सभी मुश्किलों को आसान कर लिया,” गीता ने बताया।

“हम एकसाथ मिलकर काम करते हैं और एक दूसरे की मदद करते हैं। जंगल जाने के लिए हमलोग साथ यात्रा करते हैं जिससे हम सुरक्षित रह सकें,” वह कहती हैं।

बाहरी दुनिया से बढ़ता तालमेल

शुरुआत में पर्यटकों से बात करने में उन्हें झिझक महसूस हुई लेकिन कुछ ही दिनों में उनके लिए यह आसान काम हो गया। इन महिलाओं ने माना कि शुरुआती दिक्कतों के बाद उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ा है।

“हम शुरुआत में किसी मर्द को देखकर छुपने की कोशिश करते थे। यहां तक कि फॉरेस्ट रेंजर का सामना करने में भी झिझक होती थी। अब ऐसा नहीं है। पर्यटक से लेकर अधिकारी तक, सब से हमलोग आत्मविश्वास के साथ बात करते हैं,” परमेश्वरी ने बताया। वह मानती हैं कि इस काम को करना उनके लिए आसान था क्योंकि उनका पूरा बचपन इन जंगलों में खेलते हुए बीता है और उन्हें यहां के माहौल की पूरी खबर है।

आसपास के गांव की दूसरी महिलाएं भी इनसे प्रेरणा लेकर फॉरेस्ट गाइड बनने की इच्छा रखती हैं। तस्वीर- देवज्योति बैनर्जी
आसपास के गांव की दूसरी महिलाएं भी इनसे प्रेरणा लेकर फॉरेस्ट गाइड बनने की इच्छा रखती हैं। तस्वीर- देवज्योति बैनर्जी

बाहर से आए लोगों से बात करते हुए महिलाओं के लिए एक पूरी अलग दुनिया का दरवाजा खुल गया है। “पर्यटकों से बात करके हमने कई नई बातें जानी है। बाहरी दुनिया से जुड़ी कई रोचक जानकारी हासिल की है। जंगल के बाहर लोगों का रहन-सहन जानना काफी ज्ञानवर्धक है,” परमेश्वरी कहती हैं।

जंगल के बाहर की दुनिया कौतुहल से भरी हुई है। पर्यटकों से इसके बारे में जानकर महिलाएं अपने जंगल के बारे में भी उन्हें बताती हैं।

“पर्यटकों की एक बड़ी संख्या यहां सिर्फ बाघ देखने आती है। वे जंगल की खूबसूरती और आसपास के वातावरण पर उतना ध्यान नहीं देते,” दुर्गा कहती हैं।

पर्यावरणविद् अनुपम सिंह सिसोदिया अचानकमार के जंगल में तितलियों पर शोध करने जाते हैं। उन्होंने बताया कि यहां की महिला गाइड हर समय कुछ नया सीखने की कोशिश करती हैं। वे अपने आसपास रहने वाली तितलियों के बारे में उनसे पूछती रहती हैं।

महिलाओं को फॉरेस्ट गाइड के रूप में काम देने का सबसे बड़ा लाभ उनके भीतर आया आत्मविश्वास है। इस इलाके की अन्य महिलाओं के लिए ये सभी एक आदर्श स्थापित कर रही हैं। दूसरी लड़कियां भी इस काम को करना चाहती हैं।

“हमलोगों की कोशिश है कि आने वाले समय में इस काम को करने की इच्छा रखने वाली महिलाओं की पूरी मदद की जाए। इसके लिए उन्हें ट्रेनिंग से लेकर उनके भीतर आत्मविश्वास जगाने तक हम मदद करेंगे। हमारा अनुभव नए लोगों के काम आएगा,” दुर्गा कहती हैं।

ये स्टोरी मोंगाबे हिन्दी से साभार ली गई है।

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