फोटो: रिद्धि टंडन

कॉप30: बहुपक्षवाद के नए चरण का संकेत, जलवायु राजनीति में उभरा ‘ग्लोबल साउथ’

ब्राजील के बेलेम शहर में हाल में संपन्न हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप30) ने वैश्विक जलवायु राजनीति के भविष्य को परिभाषित करने वाले महत्वपूर्ण बदलावों को दर्शाया है। जहाँ एक ओर 195 देशों ने ‘बेलेम पैकेज’ को मंज़ूरी दी और यह साबित किया कि बहुपक्षवाद (multilateralism) आज भी जलवायु कार्रवाई को गति दे सकता है, वहीं दूसरी ओर इसने इस सच्चाई को भी सामने ला दिया कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रगति की गति अब भी बहुत धीमी है।

इस कॉप की सबसे बड़ी पहचान वैश्विक शासन (Global Governance) में विकसित देशों के एकतरफा दबदबे में आई कमी रही। ‘ग्लोबल साउथ’ (विकासशील देशों) के समूह, जिसमें G77 समूह और चीन, तथा भारत जैसे प्रमुख राष्ट्र शामिल हैं, ने बातचीत की दिशा को प्रभावी ढंग से मोड़ दिया। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि महत्वाकांक्षा को साधनों से अलग नहीं किया जा सकता।

वित्त और न्याय की माँग

इस सम्मेलन में विकासशील देशों ने एकजुटता दिखाते हुए वित्त, समानता (Equity) और व्यापार बाधाओं जैसे केंद्रीय मुद्दों पर बातचीत को केंद्रित रखा। उन्होंने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 पर ज़ोर दिया, जो विकसित देशों के लिए विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करने का कानूनी दायित्व है।

कॉप30 की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि एक न्यायसंगत बदलाव तंत्र (Just Transition Mechanism) की स्थापना थी। यह तंत्र जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में लोगों और समानता को केंद्र में रखता है, जिसका लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना और श्रमिकों व समुदायों को स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते समय सुरक्षा प्रदान करना है।

वित्त के मोर्चे पर, विकसित देशों ने 2035 तक अनुकूलन (Adaptation) वित्त को कम से कम तीन गुना करने का आह्वान किया। हालाँकि, यह लक्ष्य कई विकासशील देशों की अपेक्षाओं से अधिक लंबा है, जिन्होंने 2030 तक की समय सीमा माँगी थी। इसके अतिरिक्त, देशों ने 2035 तक प्रति वर्ष $1.3 ट्रिलियन के नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) के तहत $300 बिलियन जुटाने के लक्ष्य को दोहराया, लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपकरणों और रूपरेखा को परिभाषित करने में विफल रहे।

कार्यान्वयन पर ज़ोर: ‘कॉप ऑफ़ इम्प्लीमेंटेशन’

कॉप30 को ‘कार्यान्वयन का कॉप’ (COP of Implementation) के रूप में प्रचारित किया गया, जहाँ योजनाएँ बनाने से हटकर धरातल पर बदलाव लाने की बात हुई। इसी दिशा में ‘इन्वेस्टेबल नेशनल इम्प्लीमेंटेशन को बढ़ावा देना’ (FINI) जैसी पहल शुरू की गई, जिसका लक्ष्य नेशनल एडाप्टेशन प्लान (NAPs) को निवेश योग्य बनाना है और तीन वर्षों के भीतर $1 ट्रिलियन की अनुकूलन परियोजना पाइपलाइन को अनलॉक करना है।

हालांकि, भारत जैसे कई विकासशील देशों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि विकसित देश सार्वजनिक वित्त की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के बजाय निजी वित्त (Private Finance) पर बहुत अधिक निर्भरता डाल रहे हैं। उनका तर्क है कि निजी वित्त में पूंजी की लागत बहुत अधिक होती है, जो बड़े पैमाने पर परियोजनाओं के लिए वहनीय नहीं है।

जीवाश्म ईंधन प्रयोग और लक्ष्य का अंतर

सम्मेलन की सबसे बड़ी निराशा जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने (Phase Out Fossil Fuels) के लिए कोई स्पष्ट आह्वान या प्रतिबद्धता न होना रही।

इसके अलावा, 122 से अधिक देशों द्वारा नए राष्ट्रीय जलवायु योजनाएँ (NDCs) जमा करने के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र के विश्लेषण ने पुष्टि की कि दुनिया अब भी 1.5°C के लक्ष्य से बहुत दूर है और सदी के अंत तक 2.3°C से 2.8°C तक खतरनाक वार्मिंग की ओर बढ़ रही है।

निष्कर्ष यह है कि COP30 ने बहुपक्षवाद के एक नए युग का अनावरण किया है, जहाँ ग्लोबल साउथ की आवाज़ पहले से कहीं अधिक रणनीतिक और एकजुट है। जलवायु कार्रवाई की गति अब वित्तीय जवाबदेही, अनुकूलन और समानता के मुद्दों पर टिकी है– जो यह निर्धारित करेगा कि वैश्विक सहयोग जलवायु संकट को प्रभावी ढंग से हल कर सकता है या नहीं।

Shaswata Kundu Chaudhuri
+ posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.