बेंगलुरु में अभूतपूर्व जल संकट, पलायन कर रहे लोग; पूरे देश के लिए चेतावनी

बेंगलुरु और आस-पास के इलाकों में जल संकट गहराता जा रहा है। कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने सोमवार को कहा कि राज्य पिछले चार दशकों के सबसे बुरे सूखे से गुज़र रहा है।

जल संकट की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री आवास पर भी पानी के टैंकर देखे गए हैं। वहीं शिवकुमार ने कहा कि पहली बार ऐसा हुआ कि उनके घर के बोरवेल में भी पानी नहीं आ रहा है।       

बेंगलुरु को मुख्य रूप से दो स्रोतों से पानी मिलता है — कावेरी नदी और भूजल। पेयजल के अलावा अधिकांश दूसरे कामों के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा रीसाइकल किए गए पानी का उपयोग किया जाता है। पिछले कुछ समय से बारिश नहीं होने के कारण इन प्राथमिक स्रोतों की सीमा तक इनसे पानी लिया जा चुका है। बेंगलुरु को प्रतिदिन 2,600-2,800 मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता होती है, और वर्तमान आपूर्ति आवश्यकता से आधी है।

राज्य सरकार ने साफ़ कर दिया है कि इस संकट की स्थिति में कावेरी का पानी तमिल नाडु के लिए नहीं छोड़ा जाएगा।  

उधर स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बेंगलुरु वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) ने कई कड़े कदम उठाए हैं। पेयजल के गैर-जरूरी उपयोग पर 5,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया है। इसके साथ ही कंपनियों, अस्पतालों, रेलवे और यहां तक कि एयरपोर्ट को पानी की आपूर्ति में 20% की कटौती की गई है। 

बेंगलुरु में एक बड़ी आबादी देश के दूसरे शहरों से आए इंजीनियरों की है। जल संकट के बीच जहां इनमें से कुछ घर से काम कर रहे हैं, वहीं कुछ तो अपने शहर वापस जाने को ही तैयार हैं। कई लोग शहर से पलायन‎ करने लगे हैं। दूसरी ओर जो लोग घर ‎‎खरीदना चाहते थे, वे अपना मन बदलने ‎‎लगे हैं।

भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस) के एक अध्ययन के मुताबिक पिछले कुछ दशकों के शहरीकरण के दौरान, बेंगलुरु में कंक्रीट के ढाचों और पक्की जमीनों में 1,055% का इज़ाफ़ा हुआ है। वहीं, जल प्रसार क्षेत्र में 79% की गिरावट हुई है जिससे पेयजल की भारी कमी हुई है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि शहर की 98% झीलों पर अतिक्रमण हो चुका है जबकि 90% में सीवेज और उद्योगों का कचरा भर गया है।

गौरतलब है कि ऐसा ही जलसंकट 2019 में चेन्नई में भी हुआ था। उधर हैदराबाद में भी ऐसे ही संकट की आहट सुनाई दे रही है। वहां पानी के दो ‎प्राथमिक स्रोतों — नागार्जुन सागर‎ जलाशय (कृष्णा नदी) और‎ येल्लमपल्ली जलाशय (गोदावरी‎ नदी) — में जल‎स्तर खतरनाक रूप से कम है। कई‎ इलाकों में पानी के टैंकरों की मांग‎ अचानक बढ़कर 10 गुना हो गई है।

हाल ही में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में‎ कहा गया कि 2030 तक भारत के करीब 10‎ शहरों में भारी जल संकट देखने को ‎मिल सकता है। इनमें जयपुर,‎ दिल्ली, बेंगलुरु, गुजरात का‎ गांधीनगर, गुरुग्राम, इंदौर, अमृतसर,‎ लुधियाना, हैदराबाद, चेन्नई,‎ और गाजियाबाद शामिल हैं।

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