फोटो: @UNICEF/X

गृहयुद्ध से अस्तव्यस्त म्यांमार में भूकंप से 1,700 से अधिक मरे

म्यांमार में शुक्रवार को आये ज़बरदस्त भूकंप से मरने वालों की संख्या 1,700 के पार पहुंच चुकी है। म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े  मांडले में सबसे अधिक करीब 700 लोगों की मौत की ख़बर है और समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक रविवार को यहां शवों के सड़ने दुर्गंध के बीच मलबे में दबे जीवित लोगों की तलाश जारी थी।  राजधानी नेपीडॉ में करीब 100 लोगों के मरने की ख़बर है। शुक्रवार दोपहर को यहां 7.7 तीव्रता का भूकंप आया जिसका केंद्र मांडले के निकट था, जिससे कई इमारतें ढह गईं और शहर के हवाई अड्डे जैसे अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा। 

गृहयुद्ध से जूझ रहे म्यांमार में टूटी सड़कों, बर्बाद पुलों और संचार व्यवस्था में गड़बड़ी के कारण काम करना आसान नहीं है और इस कारण राहत कार्य बाधित हुए हैं।

ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट 2024: रिकॉर्ड स्तरों पर सभी प्रमुख सूचकांक

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा जारी जलवायु रिपोर्ट 2024 में वैश्विक तापमान, ग्रीनहाउस गैस के जमाव और समुद्र सतह में वृद्धि के स्तर पर चिंताजनक आंकड़ों का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड 800,000 वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर हैं। वैश्विक तापमान के हिसाब से पिछले 10 साल  उच्चतम स्तर पर रहे हैं और 2024 पहला कैलेंडर वर्ष हो सकता है जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो। 

समुद्री तापमान वृद्धि के मामले में पिछले 8 सालों ने रिकॉर्ड बनाया है और सैटेलाइट माप की सुविधा उपलब्ध होने के बाद से समुद्र सतह में वृद्धि की दर दोगुनी हो चुकी है जबकि पिछले 3 सालों में ग्लेशियरों की सर्वाधिक बर्फ खत्म हुई है जिससे दुनिया में फ्रेश वॉटर का भारी  संकट हो सकता है।  

डब्लूएमओ रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2024 में 151 अभूतपूर्व चरम मौसम की घटनायें (एक्सट्रीम वेदर इवेंट) हुई, यानी ऐसी घटनायें जो उस क्षेत्र में अब तक दर्ज की गई किसी भी घटना से बदतर थीं। मिसाल के तौर पर जापान में भीषण गर्मी के कारण लाखों लोग हीटस्ट्रोक की चपेट में आ गए। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के कार्नरवॉन में हीटवेव के दौरान तापमान 49.9 डिग्री सेल्सियस, ईरान के तबास शहर में 49.7 डिग्री सेल्सियस और माली में राष्ट्रव्यापी हीटवेव के दौरान 48.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

ताज़े जल के भंडार ग्लेशियरों के अस्तित्व पर संकट, सदी के अंत तक मिट जायेगा कई हिस्सों में इनका वजूद 

हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र आर्कटिक और अंटार्कटिक के बाहर दुनिया बर्फ के सबसे बड़े बर्फ भंडार हैं लेकिन इस क्षेत्र में  ग्लेशियर चिंताजनक रफ्तार से पिघल रहे और उनके वजूद को अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ रहा है। पिछले शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने वर्ल्ड वॉटर डेवलपमेंट इंडेक्स रिपोर्ट जारी की  जिसे पहली बार विश्व ग्लेशियर दिवस के अवसर पर प्रकाशित किया गया। रिपोर्ट बताती है कि हमारे पर्वत दुनिया के वार्षिक ताजे पानी के प्रवाह का 60% तक प्रदान करते हैं लेकिन 21 शताब्दी के अंत तक दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में ग्लेशियरों का वजूद ही खत्म हो सकता है।

पूरी दुनिया में एक अरब से अधिक लोग पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं, और दो अरब से अधिक लोग अपने पीने के पानी, स्वच्छता और आजीविका के लिए सीधे पहाड़ों से आने वाले जल पर निर्भर हैं। इसलिए ग्लेशियरों के पिघलने के कारण 2 अरब लोगों को पानी की कमी का खतरा है। धरती पर कुल 2,75,000 ग्लेशियर हैं जो 7 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। भारत के हिमालयी क्षेत्र में करीब 10,000 छोटे बड़े ग्लेशियर हैं जो करीब 25,00 किलोमीटर लंबी हिमालयी रेखा में फैले हैं। इनमें स्थित विशाल जल भंडार के कारण इन्हें थर्ड पोल भी कहा जाता है। 

लू से निपटने की तैयारी, एनडीएमए ने हीटवेव प्लान का खाका तैयार किया

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) हीटवेव से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय रूपरेखा पर काम कर रहा है। इस कार्यक्रम को नेशनल फ्रेमवर्क फॉर हीटवेव मिटिगेशन और मैनेजनमेंट नाम दिया गया है।  

रिडिफ वेबसाइट पर प्रकाशित ख़बर के मुताबिक आपदा प्रबंधन के दो अधिकारियों ने कहा कि अत्यधिक गर्मी के कारण मनुष्यों और जानवरों के स्वास्थ्य, शहरी आवास, बुनियादी ढांचे, कृषि और जल सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा है, इसलिए इस नए ढांचे का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक व्यवधान से बचना है।

लू  के प्रभाव को कम करने और प्रबंधन के लिए रूपरेखा का उद्देश्य एचएपी (हीट एक्शन प्लान) को अधिक समुदाय-आधारित, एक्शन लिये जाने योग्य, पर्याप्त संसाधनयुक्त बनाने के तरीके खड़े करना और यह सुनिश्चित करना है कि स्थानीय प्रशासन का रोल इसमें अधिकतम हो। जलवायु परिवर्तन प्रभावों के बढ़ने के साथ ही हीटवेव की मार भी बढ़ रही है। क्लाइमेट सेंट्रल की एक रिपोर्ट बताती है कि दिसंबर 2024 और फरवरी 2025 के बीच 3 महीनों में करीब 40 करोड़ लोगों को यानी दुनिया की लगभग 5 प्रतिशत आबादी को इन तीन महीनों में 30 दिन या अधिक वक्त जानलेवा गर्मी का सामना करना पड़ा। इनमें आबादी तीन-चौथाई आबादी अफ्रीकी लोगों की है। 

दक्षिण कोरिया में अब तक की सबसे बड़ी जंगलों की आग से कम से कम 26 मरे 

दक्षिण कोरिया में लगी आग में कम से कम 26 लोग मारे गए हैं। यूके के अंग्रेज़ी अख़बार गार्डियन के मुताबिक एक दिन में ही आग का का फैलाव  दोगुना हो गया और दक्षिण-पूर्वी प्रांत नॉर्थ ग्योंगसांग में सैकड़ों इमारतें नष्ट हो गईं। देश के आपदा और सुरक्षा प्रभाग के प्रमुख ली हान-क्यूंग ने कहा कि “जंगल की आग ने एक बार फिर जलवायु संकट की क्रूर वास्तविकता को उजागर किया है, जैसा हमने पहले कभी नहीं देखा।” स्काईन्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, जंगल की आग से “बहुत ज़्यादा नुकसान” हुआ, जिसमें 1,300 साल पुराना बौद्ध मंदिर, घर, कारखाने और वाहन नष्ट हो गए, जबकि 43,000 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन खाक हो गई।

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, आग पर अभी केवल 68% काबू पाया जा सका है। न्यूज़वायर ने बताया कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ॉरेस्ट साइंस के वन आपदा विशेषज्ञ ली ब्युंग-डू के अनुसार, तेज़ हवाओं के कारण यह और भी ज़्यादा भड़क गई है और इसका  “अकल्पनीय” पैमाने पर बड़ी तेज़ी से फैलाव हुआ है। ली ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर जंगल में आग लगने की घटनाएं और भी ज़्यादा होने वाली हैं, उन्होंने जनवरी में लॉस एंजिल्स के एक हिस्से में लगी आग और हाल ही में उत्तर-पूर्वी जापान में लगी आग के असामान्य समय का हवाला दिया।

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