रूस के कोयला भंडार 500 सालों से अधिक की मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त हैं और उसका मानना है कि कोयले को लेकर भारत के साथ उसका सहयोग और मजबूत होगा। नई खदानों से इस साल क्षमता 250 मिलियन टन तक बढ़ जाएगी। पिछले साल रूस ने 443.5 मिलियन टन कोयला का उत्पादन किया, जिसमें से उसने 196.2 मिलियन टन निर्यात किया। एक रिपोर्ट के अनुसार रूस का उद्देश्य इस साल आधुनिक, “इको-फ्रेंडली” कोयला उत्पादन का है।
रूस ने 2050 तक 662 मिलियन टन उत्पादन का उद्देश्य तय किया है। वह कोकिंग कोल और थर्मल कोयले की आपूर्ति के लिए भारत के साथ एक समझौता भी करना चाहता है। भारत के बढ़ते इस्पात उद्योग से कोयले की मांग बढ़ी है, और दोनों देशों ने सहयोग को बढ़ावा देने की योजना बनाई है, जिसके तहत भारत 2035 तक 40 मिलियन टन रूसी कोकिंग कोल का आयात कर सकता है।
सस्ते कोयले के प्रयोग से पहले बिजली संयंत्रों को लेनी होगी मंजूरी
नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने बिजली संयंत्रों द्वारा बिना मंजूरी के मनमाने ढंग से सस्ते कोयले का प्रयोग शुरू करने पर रोक लगा दी है। यह नीति पिछले पांच वर्षों से चली आ रही थी, जिसके तहत थर्मल पावर संयंत्र ऐश कंटेंट, कैलोरिफिक वैल्यू या संभावित पर्यावरणीय खतरों पर विचार किए बिना “कोयले का स्रोत” बदल सकते थे।
न्यूज़क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने 2020 में यह नीति वैज्ञानिक आकलन और हितधारकों से चर्चा किए बिना जारी की थी। नीति को रद्द करते हुए ट्राइब्यूनल ने कहा कि अधिक बेहतर तरीके से जवाबदेही सुनिश्चित करने की बजाय, मंत्रालय सुधारों के नाम पर नियमों को कमजोर कर रहा है।
भारत ने बिजली कंपनियों के लिए कोयला आपूर्ति के नियम बदले, पीपीए की बाध्यता खत्म
भारत ने नियमों में बदलाव कर निजी बिजली उत्पादकों को दीर्घकालिक कोयला आपूर्ति अनुबंधों की अनुमति दे दी है। रॉयटर्स ने बताया कि भारत ने अपनी कोयला-संचालित बिजली क्षमता बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया है। सरकार ने कंपनियों के लिए कोयला-आधारित बिजली बेचने से पहले पॉवर पर्चेज़ एग्रीमेंट (पीपीए) करने की अनिवार्यता भी समाप्त कर दी। कंपनियों को यह समझौते राज्य के बिजली बोर्ड जैसे खरीदारों के साथ करने होते थे, जिनके तहत बिजली की निश्चित दर तय की जाती थी। इस नियम के हटने से कोयला बिजली उत्पादक अब एक निश्चित समझौते के बिना खुले बाजार (जैसे पावर एक्सचेंज) पर बिजली बेच सकते हैं।
अब उत्पादक पीपीए के साथ या उसके बिना नीलामी के माध्यम से कोयला प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें तय कीमत पर एक प्रीमियम का भुगतान करना होगा। बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत अपनी कोयला-आधारित बिजली क्षमता को 2031-2032 तक 80 गीगावाट तक बढ़ाना चाहता है।
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