फोटो: Bloomberg NEF

रूफटॉप सोलर की मांग बढ़ने से इनवर्टर की कमी, बढ़ सकते हैं दाम

इस साल फरवरी में पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना शुरू होने के बाद से स्ट्रिंग इनवर्टर की मांग काफी बढ़ गई है। इंस्टॉलरों का कहना है कि मांग के हिसाब से सप्लाई कम है। स्ट्रिंग इनवर्टर निर्माताओं के अनुसार, आवासीय रूफटॉप सोलर कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से मांग 300% तक बढ़ गई है। इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का लक्ष्य 2026-27 तक एक करोड़ घरों की छतों पर सौर प्रणाली स्थापित करना है।

स्ट्रिंग इनवर्टर रूफटॉप सोलर प्रणाली का एक अनिवार्य घटक हैं। यह सौर इन्वर्टर सौर पैनलों से उत्पन्न डायरेक्ट करंट को प्रयोग करने योग्य अल्टेरनेटिंग करंट में बदलता है।

एक सप्लायर ने कहा कि सभी भारतीय कंपनियां चीन से इनवर्टर मंगाती हैं और भारत में उन्हें असेम्बल करती हैं। उसने बताया कि रूफटॉप सोलर योजना शुरू होने के बाद 3.3 किलोवाट और 5.3 किलोवाट सिस्टम की बिक्री अचानक बढ़ गई है, और चीन से भी सप्लाई धीमी है। ऐसे में आनेवाले समय में इनवर्टर के दाम बढ़ सकते हैं।

भारत में रूफटॉप सोलर क्षमता 26 प्रतिशत बढ़ी: रिपोर्ट

भारत ने इस वर्ष जनवरी से जून की अवधि में 1.1 गीगावाट रूफटॉप सोलर क्षमता जोड़ी, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान जोड़ी गए 873 मेगावाट से 26 प्रतिशत अधिक है। 2024 की दूसरी तिमाही में 731 मेगावाट की रूफटॉप सोलर सिस्टम स्थापित किए गए। अमेरिका-स्थित अनुसंधान फर्म मेरकॉम कैपिटल ने एक रिपोर्ट में कहा कि यह पिछले साल अप्रैल-जून में स्थापित किए गए 388 मेगावाट से 89 प्रतिशत अधिक है। 

‘इंडिया रूफटॉप सोलर मार्केट रिपोर्ट’ में मेरकॉम कैपिटल ने कहा कि जून 2024 तक भारत में 11.6 गीगावॉट की संचयी स्थापित रूफटॉप सोलर क्षमता थी। पिछली तिमाही के दौरान संचयी स्थापित रूफटॉप सोलर क्षमता के मामले में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, केरल और कर्नाटक सबसे आगे रहे।

भारी उद्योग कंपनियों ने केवल 6% बिजली नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त की

थिंकटैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स (सीआरएच) ने एक अध्ययन में पाया है कि भारत के सीमेंट, इस्पात, एल्यूमीनियम, टेक्सटाइल और फ़र्टिलाइज़र सेक्टर की प्रमुख कंपनियों ने केवल 6 प्रतिशत बिजली नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त की। जिंदल स्टील, अल्ट्राटेक सीमेंट,हिंडाल्को और 30 अन्य कंपनियों के पब्लिक डिस्क्लोज़र में दिए गए आंकड़ों के आधार पर यह स्टडी तैयार की गई है।

बिजली की खपत के विश्लेषण से पता चला कि इन इन कंपनियों ने 169 अरब यूनिट बिजली प्रयोग की जिसमें से केवल आठ अरब यूनिट नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त की। इनमें से कई कंपनियों ने अपने नेट-जीरो टारगेट घोषित किए हैं, लेकिन डीकार्बनाइज़ेशन की दिशा में इस छोटे से प्रयास में भी उनका प्रदर्शन ख़राब रहा है। विश्लेषण में कहा गया है कि औद्योगिक प्रक्रियाओं में हीट उत्पन्न करने के लिए भारी उद्योग अधिक ऊर्जा की खपत करते हैं। लेकिन इस ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा बिजली के उपयोग में जाता है, जो नवीकरणीय स्रोतों से भी प्राप्त किया जा सकता है।

राजस्थान में विंडमिलों से नष्ट हो रही चरागाहों की भूमि

पश्चिमी राजस्थान में थार रेगिस्तान में बसे स्थानीय समुदायों का कहना है कि पवन ऊर्जा के लिए लगाई गई विंडमिलों के कारण चरागाहों की भूमि नष्ट हो रही है और पवित्र वनों को भी नुकसान पहुंच रहा है, जिन्हें यहां “ओरण” नाम से जाना जाता है। एजेंस फ्रांस प्रेस की एक रिपोर्ट में एक स्थानीय किसान के हवाले से कहा गया है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों ने यहां पवन चक्कियां बनाई हैं, “लेकिन वे हमारे लिए बेकार हैं”।

यह विंडमिलें देश के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक पवन ऊर्जा की आपूर्ति करती हैं। लेकिन चरवाहों का कहना है कि भारी निर्माण ट्रक जल स्रोतों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे घास के मैदान कम हो जाते हैं और भूमि सूखी हो जाती है। सदियों से इन समुदायों द्वारा संरक्षित रेगिस्तानी मरूद्यान, ऊंटों, मवेशियों और बकरियों की पशुधन-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण पानी इकठ्ठा करते हैं।

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