देश की सबसे बड़ी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने घोषणा की है कि वह अगले कुछ साल में सोलर पैनल निर्माण क्षेत्र में एक हज़ार करोड़ अमेरिकी डालर यानी करीब 74,000 करोड़ रुपये निवेश करेगी। रिलायंस का कहना है कि वह सौर ऊर्जा से जुड़े उपकरणों को बनाने के लिये गुजरात के जामनगर में 4 ‘गीगाफैक्ट्री’ लगायेगी। इन कारखानों में सोलर पैनलों के अलावा इलैक्ट्रिक बैटरियां, ग्रीन हाइड्रोजन और हाइड्रोजन फ्यूल सेल बनाये जायेंगे। माना जा रहा है कि अलग यह योजना सही तरीके और सही भावना से लागू हुई तो नेट ज़ीरो लक्ष्य में भारत की कोशिशों के लिये काफी उपयोगी होगी। विश्लेषकों ने रिलायंस की इस घोषणा का स्वागत किया लेकिन चेताया है कि कंपनी अभी भी गैस और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) में निवेश कर रही है जो साफ ऊर्जा की कोशिशों को बेकार कर देगा। महत्वपूर्ण है कि रिलायंस ग्रुप का सालाना राजस्व 50 हज़ार करोड़ रुपये का है और वह दुनिया के सबसे बड़े आइल रिफाइनरों में भी गिना जाता है।
महामारी के बावजूद क्लीन एनर्जी का ग्राफ बढ़ना जारी
इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (इरीना) की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि सौर और पवन ऊर्जा की दरें कोरोना महामारी के व्यापक असर के बावजूद कम होती रहीं। पिछले साल साफ ऊर्जा के जितने संयंत्र लगे उसका करीब 62% (162 गीगावॉट) क्षमता के संयंत्रों में साफ ऊर्जा के की दरें सबसे सस्ते जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस इत्यादि) से कम रही। ‘रिन्यूएबल पावर जनरेशन कॉस्ट इन 2020’ नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि साफ ऊर्जा की कीमतें लगातार गिर रही हैं। रिपोर्ट ये कहती है कि छतों पर सबसे सस्ती सोलर (रूफ टॉप) पावर के मामले में भारत एक मानक बन गया है। साल 2013 और 2020 के बीच घरों में छतों पर सोलर की कीमत में 73% की गिरावट हुई है।
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