उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश, बादल फटने और भूस्खलन से तबाही मची हुई है। उत्तराखंड में सोमवार को देर रात हुई मूसलाधार बारिश से देहरादून, नैनीताल और पिथौरागढ़ में 15 लोगों की मौत हो गई, 16 लापता हैं जबकि करीब 900 लोगों को सुरक्षित बचाया गया है। राज्य में कई नदियां उफान पर हैं और कई पुल और सड़कें बह गए हैं।
हिमाचल प्रदेश में मंडी और शिमला सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। मंडी में एक मकान ढहने से तीन लोगों की मौत हुई और दर्जनों बसें व दुकानें बह गईं। शिमला में 142 मिमी बारिश से भूस्खलन हुआ, जिससे कई वाहन दब गए। अब तक राज्य में 417 लोगों की जान जा चुकी है और 45 लापता हैं।
पंजाब में भी बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। राज्य में कम से कम 56 लोगों की मौत हुई है और सरकार ने किसानों को मुआवजा और ऋण राहत देने का ऐलान किया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल पश्चिमी विक्षोभ और मानसूनी हवाओं की टकराहट ने बारिश को और भी तीव्र बना दिया है, जिससे आपदाओं का खतरा बढ़ा है।
कृत्रिम रूप से ग्लोबल वार्मिंग रोकने के प्रयास खतरनाक: वैज्ञानिक
वैज्ञानिकों ने आर्कटिक और अंटार्कटिक के पर्यावरण से छेड़छाड़ कर जलवायु परिवर्तन से निपटने की योजनाओं को खतरनाक और अव्यावहारिक करार दिया है। फ्रंटियर्स इन साइंस में प्रकाशित एक नए आकलन में 40 से अधिक पोलर वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि इस “जियोइंजीनियरिंग” से गंभीर पर्यावरणीय नुकसान हो सकता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह के प्रयास ग्लोबल वार्मिंग कम करने के वास्तविक उपाय, जैसे जीवाश्म ईंधन का प्रयोग खत्म करने की दिशा से ध्यान भटका सकते हैं। अध्ययन के अनुसार समुद्री बर्फ को कृत्रिम रूप से मोटा करना या वायुमंडल में रिफ्लेक्टिव पार्टिकल छोड़ने जैसी तकनीकें कारगर नहीं हैं।
वैज्ञानिकों ने ज़ोर देकर कहा कि वैश्विक तापन रोकने का एकमात्र भरोसेमंद तरीका नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करना है।
मानसून पैटर्न पर इंसानी गतिविधियों का गहरा असर: शोध
आईआईटी मद्रास के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि इंसानी उत्सर्जन हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों (एयरोसॉल्स) को गहराई से प्रभावित करता है। गौरतलब है कि यह वही कण हैं जो बादल और बारिश बनने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाते हैं। अध्ययन में पाया गया कि हवा में मौजूद यह कण इंसानी गतिविधियों के कारण तेजी से बदलते हैं। खास तौर पर क्लाउड कंडेन्सेशन न्यूक्लिआई (सीसीएन) की संख्या लॉकडाउन के बाद 80 से 250 फीसदी तक बढ़ गई। सीसीएन वह कण हैं जिनपर जलवाष्प जमा होकर बादल बनते हैं। इसका मुख्य कारण था नए कणों का तेजी से बनना।
लॉकडाउन के दौरान जब प्रदूषण घटा और फिर धीरे-धीरे इंसानी गतिविधियां शुरू हुईं, तो इंसानी उत्सर्जन के साथ ही नए कण बड़ी मात्रा में बनने लगे और उन्होंने बादलों के बनने की प्रक्रिया को प्रभावित किया। यह दर्शाता है कि इंसानी गतिविधियां जलवायु प्रणाली पर सीधा असर डालती हैं। लॉकडाउन के बाद साफ समुद्री हवा की जगह प्रदूषित जमीनी हवा का हावी होना बताता है कि मानव गतिविधियों और एयरोसॉल्स का रिश्ता कितना जटिल है।
विशेषज्ञों के मुताबिक यह खोज बेहद अहम है, क्योंकि अब तक जलवायु मॉडल मुख्य रूप से कंप्यूटर सिमुलेशन पर आधारित रहे हैं। यह अध्ययन असली आंकड़े उपलब्ध कराता है, जो इन मॉडलों को और सटीक बना सकते हैं और भविष्यवाणियों में अनिश्चितता को घटा सकते हैं। इससे मौसम और जलवायु को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
दिल्ली में अतिरिक्त मौतों का कारण बढ़ता तापमान: रिपोर्ट
ग्रीनपीस इंडिया ने एक रिपोर्ट में जून से अगस्त के दौरान दिल्ली में होनेवाली अतिरिक्त मौतों को बढ़ते तापमान और लू से जोड़ा है। अध्ययन के अनुसार 2015-2024 के दौरान इन महीनों में लगातार उच्च ‘यूनिवर्सल थर्मल क्लाइमेट इंडेक्स’ दर्ज हुआ है, जिससे लंबे समय तक हीट स्ट्रेस बना रहता है।
रिपोर्ट में बताया गया कि 2019 में मौतों का आंकड़ा 5,341 था जो 2022-24 में बढ़कर 11,819 तक पहुंच गया। 2024 में केवल 11-19 जून के बीच 192 बेघर लोग हीट स्ट्रोक से मरे, जो दो दशकों में सबसे ज़्यादा है।
क्लाइमेट चेंज के कारण डेंगू के 46 लाख अतिरिक्त मामले
एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन से बढ़ते तापमान के कारण एशिया और अमेरिका में डेंगू संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध के अनुसार 1995 से 2014 के बीच दर्ज डेंगू मामलों में लगभग 18% का संबंध जलवायु परिवर्तन से था। अध्ययन में कहा गया कि इससे हर साल लगभग 46 लाख अतिरिक्त मामले सामने आ रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि 2050 तक डेंगू के मामलों में 25% तक वृद्धि हो सकती है। विशेषज्ञों ने इसे मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट प्रभाव बताया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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