देश में वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों में 25% यानी एक चौथाई के पीछे घरेलू प्रदूषण एक कारक है। साइंस जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक अध्ययन में 2017 और 2019 के बीच हुई उन मौतों का विश्लेषण कर यह बात कही है जिनके पीछे वायु प्रदूषण एक कारण था। इस शोध में खाना पकाने और हीटिंग के लिये घरों में इस्तेमाल ठोस बायो फ्यूल के जलने से निकलने वाले 15 प्रदूषकों को एक-चौथाई (25%) पीएम 2.5 के लिये ज़िम्मेदार माना गया। उद्योग करीब 15% और ऊर्जा क्षेत्र 12.5% पार्टिकुलेट मैटर के लिये ज़िम्मेदार है।
इस अध्ययन के मुताबिक साल 2017 में कुल 8,66,566 लोगों के मरने के पीछे पीएम 2.5 एक कारण था और साल 2019 में यह आंकड़ा 9,53,857 रहा। शोध कहता है कि अगर घरों में जलने वाले ठोस बायो फ्यूल के प्रदूषण को रोका जाता तो एक चौथाई मौतों को रोका जा सकता था। शोध बताता है कि साल 2017 में प्रदूषण से जुड़ी 10 लाख मौतों को टाला जा सकता था। दुनिया में पार्टिकुलेट मैटर से जुड़ी सभी मौतों में 58% हिस्सा भारत और चीन का है।
घरेलू धुंआं प्रदूषण से होने वाली 25% मौतों के लिये ज़िम्मेदार
अपने तरह के पहले अध्ययन में वायु प्रदूषण और मौसम के जानकारों ने पाया है कि मुंबई और पुणे के उन इलाकों में सबसे अधिक कोरोना के मामले सामने आये जहां वाहनों और उद्योगों का प्रदूषण सबसे अधिक था। इन्हीं इलाकों में कोरोना के कारण सबसे अधिक लोगों की जान भी गई। एयर क्वालिटी डाटा और कोरोना के प्रभाव को लेकर यह स्टडी उड़ीसा की उत्कल यूनिवर्सिटी, आईआईटी भुवनेश्वर और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी पुणे के विशेषज्ञों ने यह अध्ययन किया। विशेषज्ञों ने पिछले साल मार्च और नवंबर के बीच मुंबई और पुणे समेत देश के 16 ज़िलों में कोरोना के मामलों और इन इलाकों में पीएम 2.5 के स्तर का अध्ययन किया। यह पाया गया कि अधिक प्रदूषण वाले इलाकों का कोरोना के मामलों और उससे जुड़ी मौतों के साथ स्पष्ट संबंध था।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलेगा ओजोन प्रदूषण का पता
अमेरिका के ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में विकसित की गई टेक्नोलॉजी से अब धरती पर ओजोन के स्तर सटीक पूर्वानुमान दो सप्ताह पहले किया जा सकेगा। धरती की सबसे निचली सतह जिसमें हम रहते हैं उसे ट्रोपोस्फीयर कहा जाता है। ओजोन इसके ऊपर की सतह स्ट्रेटोस्फियर या समताप-मंडल में होती है। वहां ओजोन की होना हमारे लिये लाभकारी है लेकिन अगर ओजोव ट्रोपोस्फियर में आ जाये तो मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है। अब वैज्ञानिकों यह मुमकिन किया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से दो सप्ताह पहले ओजोन के प्रदूषण का पता लगाया जा सकेगा इससे इस दूसरे दर्जे के प्रदूषण से लड़ने में मदद मिलेगी। ओजोन एक रंगहीन गैस है और अगर पृथ्वी की सतह के पास अधिक मात्रा में हो तो फेफड़ों और दूसरे अंगों पर ज़हरीला प्रभाव डाल सकती है।
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