छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित पारसा ईस्ट केते बासन (पीईकेबी) कोयला खनन परियोजना के लिए 3.68 लाख से अधिक पेड़ काटे जाने की संभावना है। यह क्षेत्र देश के आखिरी बचे प्राचीन वनों में से एक है।
केंद्र सरकार ने संसद में यह जानकारी दी कि पहले ही इस परियोजना के तहत दो लाख से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं। विपक्ष ने स्थानीय विरोध, आदिवासी अधिकारों और संवेदनशील इकोसिस्टम को नजरअंदाज कर पर्यावरण मंजूरी दिए जाने पर सवाल उठाया है।
जनवरी 2022 में पर्यावरण मंत्रालय ने विरोध के बावजूद हसदेव अरण्य के 1,136 हेक्टेयर हिस्से में कोयला खनन को मंजूरी दी थी।
कोयला खदानों को दी गई वन मंजूरी खनन की अवधि तक रहेगी वैध
केंद्र सरकार ने नियमों में बदलाव कर कोयला खदानों को मिलने वाली फॉरेस्ट क्लीयरेंस, यानी वन भूमि के उपयोग की मंजूरी की समय सीमा बढ़ा दी है। पहले यह मंजूरी अधिकतम 30 वर्षों के लिए दी जाती थी। लेकिन सरकार ने कोयला धारक क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 में संशोधन कर इसकी वैधता कोयला खदान का पट्टा वैध रहने तक बढ़ा दी है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने वन (संरक्षण एवं संवर्धन) नियम, 2023 के तहत दी गई मंजूरियों की वैधता को लेकर स्पष्टता मांगी थी। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति में यह मुद्दा उठाया गया।
चर्चा में बताया गया कि राज्य की स्वामित्व वाली कंपनियों को दी गई कोयला खनन लीज तबतक वैध रहती है जबतक खदान उपयोग में रहे। इसका मतलब यह है कि खदानों को मिलने वाली फॉरेस्ट क्लीयरेंस भी तबतक वैध रहेगी जबतक उससे खनन होता रहेगा।
4 सालों में 78,135 हेक्टेयर वन भूमि की गई डाइवर्ट
केंद्र सरकार के अनुसार अप्रैल 2021 से मार्च 2025 के बीच देशभर में 78,135 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को गैर-वानिकी कार्यों के लिए स्वीकृत किया गया।
केंद्रीय मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा को बताया कि वर्ष 2025 की पहली छमाही में ही 12,324 हेक्टेयर भूमि के उपयोग की अनुमति दी गई।
इसमें मध्य प्रदेश (17,393 हेक्टेयर) शीर्ष पर रहा, इसके बाद ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल रहे। पर्यावरण मंत्रालय ने इससे पहले बताया था कि 2014 से 2024 के बीच 1.73 लाख हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग स्वीकृत हुआ था।
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